सोनपुर से पहलेजा तक उमड़ी आस्था की भीड़

संवाद सहयोगी सोनपुर धर्म-कर्म का स्वरूप कभी नहीं बदलता। आधुनिकता के दौड़ में भी आस्था औ

By JagranEdited By: Publish:Fri, 19 Nov 2021 11:10 PM (IST) Updated:Fri, 19 Nov 2021 11:10 PM (IST)
सोनपुर से पहलेजा तक उमड़ी आस्था की भीड़
सोनपुर से पहलेजा तक उमड़ी आस्था की भीड़

संवाद सहयोगी, सोनपुर :

धर्म-कर्म का स्वरूप कभी नहीं बदलता। आधुनिकता के दौड़ में भी आस्था और श्रद्धा अपने मूल स्वरूप में ही बना रहता है। यह ²श्य शुक्रवार को हरिहरक्षेत्र सोनपुर के चप्पे-चप्पे पर दिखाई पड़ रहा था। कार्तिक पूर्णिमा स्नान के लिए ब्रह्म मुहूर्त से ही श्रद्धालु नर-नारियों का जो सैलाब उमड़ा वह संध्या बेला तक जरा भी कम होने का नाम नहीं ले रहा था। यहां के कालीघाट, गजेंद्र मोक्ष घाट, नमामि गंगे घाट, पुल घाट सवाईच घाट के अलावा पहलेजा घाट धाम के पावन दक्षिण मुखी गंगा में लाखों श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई। यहां के नारायणी तट पर लोक आस्था तथा लोक संस्कृति के अनेक रंग दिख रहे थे। कहीं महिलाओं का जत्था लोक आस्था के मंगल गीत गा रही थीं तो कहीं मांदर की थाप पर लोक संस्कृति के गीत गाए जा रहे थे।

सबसे पहले बाबा हरिहर नाथ को संपूर्ण वैदिक विधि-विधान के साथ गुरुवार की मध्यरात्रि दिव्य स्नान कराया गया। ढोल, मंजीरे, नगाड़े और शंख ध्वनि के बीच बाबा के प्रतीक रूप को नारायणी नदी तक ले जाया गया। वहां पंडितों के वेद मंत्रों के बीच उन्हें स्नान कराया गया तत्पश्चात श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के साथ बाबा को पुन: मंदिर में प्रतिष्ठित कर दिया गया। इसके बाद मंदिर न्यास समिति के तत्वावधान में बाबा का महारुद्राभिषेक अनुष्ठान संपन्न हुआ। अपने पूरे परिवार के साथ सारण के डीएम राजेश मीणा अनुष्ठान में शामिल हुए। मुख्य पुजारी आचार्य सुशील चंद्र शास्त्री, मद्रासी बाबा एवं बमबम बाबा ने विधि-विधान के साथ वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ महाअनुष्ठान को पूरा कराया। तत्पश्चात आम श्रद्धालुओं के जलाभिषेक तथा पूजन दर्शन का जो सिलसिला शुरू हुआ वह शाम तक चलता रहा। कोरोना को लेकर इस बार मंदिर के गर्भगृह में श्रद्धालुओं का प्रवेश वर्जित था। अरघा से जलाभिषेक कराया गया।

कार्तिक पूर्णिमा स्नान एवं बाबा हरिहरनाथ मंदिर में जलाभिषेक एवं पूजा-अर्चना को लेकर सुरक्षा की चाक-चौबंद व्यवस्था की गई थी। जिले के वरीय पदाधिकारी पुलिस बल के साथ वहां तैनात रहे। भीड़ की स्थिति ऐसी कि सड़क एवं मेला क्षेत्र में तिल रखने की भी जगह नहीं थी। गाड़ियां नियंत्रित गति में सीटी बजाते हुए धीरे-धीरे पार कर रही थीं। सोनपुर-हाजीपुर पुराने गंडक पुल पर केवल सिर ही सिर दिखाई पड़ रहे थे। स्थिति सोनपुर से हाजीपुर के रामाशीष चौक तक एक समान बनी हुई थी। भिन्न-भिन्न प्रकार की बोलियां और भाषाएं मिलकर अनेकता में एकता का एहसास करा रही थीं। कहीं, मिथिलांचल तो कहीं मगही तो कहीं भोजपुरी के साथ आंचलिक भाषा में मेले के बीच अपना सुख-दुख बांटा जा रहा था। जगह-जगह पर लिट्टी, सतुआ, मूली और प्याज की दुकानें अस्थाई रूप से सजी हुई थीं। मेले के प्रसाद रूप में अधिकतर श्रद्धालु चूड़ा, फरही और मकुनदाना की खरीदारी कर रहे थे।

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