सब्जियों पर चढ़ाया जा रहा रंग, हल्दी हुई बेरंग

-सब्जी हो या मसाले धड़ल्ले से चल रहा मिलावट का खेल -खोवा व छेना में भी संशय नहीं कसी जा र

By JagranEdited By: Publish:Fri, 05 Mar 2021 12:39 AM (IST) Updated:Fri, 05 Mar 2021 12:39 AM (IST)
सब्जियों पर चढ़ाया जा रहा रंग, हल्दी हुई बेरंग
सब्जियों पर चढ़ाया जा रहा रंग, हल्दी हुई बेरंग

-सब्जी हो या मसाले, धड़ल्ले से चल रहा मिलावट का खेल

-खोवा व छेना में भी संशय, नहीं कसी जा रही नकेल जागरण संवाददाता, सुपौल: हर जगह-जगह मिलावट ही मिलावट है। किचन के सब्जी में हल्दी रंग नहीं पकड़ रही तो मिर्ची तीखापन नहीं दिखा रही। अधिकांश हरी सब्जियां बाजारों में रंगी जाती है और तब जाकर लोगों के किचेन तक पहुंचती है। तेल में मिलावट, मसाले में मिलावट तो जैसे बाजारों में आम हो चली है। स्वीट कार्नरों के खोवा व छेना पर भी संशय की ही स्थिति है। यानि बाजार में आपूर्ति व संबंधित विभागों का नकेल नहीं दिख रहा और मिलावट का खेल धड़ल्ले से चल रहा है। न तो कभी आपूर्ति विभाग इस ओर झांकने की जहमत उठाता है और न ही स्वास्थ्य व फुड विभाग को इससे कोई लेना देना रहता है। नतीजा है कि उपभोक्ताओं की जेब ही नहीं कट रही बल्कि उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ भी हो रहा। ऐसा सुनने तक को नहीं मिलता है कि कभी किसी किराने की दुकान पर आपूर्ति विभाग ने या फिर स्वीट कार्नर पर स्वास्थ्य व फुड विभाग ने छापेमारी की हो। एक ओर टीवी चैनल व समाचार पत्रों के माध्यम से उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए प्रचार-प्रसार किया जाता है तो दूसरी ओर उपभोक्ता दिवस मनाकर भी लोगों को इस दिशा में जागरूक करने का प्रयास किया जाता है। बावजूद विभागीय लापरवाही से उपभोक्ताओं की हकमारी तो हो ही जा रही। सब्जी बाजार की ही स्थिति देखें तो सब्जी को ताजा दिखाने के लिए रंगों का प्रयोग कर उसे रंगा जाता है। खासकर हरी सब्जियां तो धड़ल्ले से रंग कर बेची जाती है। वहीं सब्जियां मजबूरन लोगों को खरीद कर घर ले जानी पड़ती है। इसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। किराने मंडी की स्थिति पर गौर करें तो तेल से लेकर अन्य खाद्य पदार्थो में मिलावट का खेल धड़ल्ले से चलता है। खासकर मसाले आइटम में तो मिलावट ही मिलावट है। पिसे हुए मसाले में तो मिलावट बेहिसाब है। अब देखिये किचेन में सब्जी में हल्दी रंग नहीं पकड़ती है तो मिर्ची अपना तीखापन नहीं दिखा पाती। आखिर यह सब क्या है। मिठाई दुकान व स्वीट कार्नरों की स्थिति और भी खराब है। आपके सामने परोसा जाने वाला मिठाई शुद्ध खोवा छेना का है या फिर सिथेटिक कुछ कहा नहीं जा सकता। इतना ही नहीं 15-15 दिन पुरानी मिठाई बाजारों में धड़ल्ले से बेची जाती है। आखिर ऐसे में स्वास्थ्य की क्या स्थिति होती होगी अंदाजा लगाया जा सकता है। सबसे बड़ी विडंबना है कि इस ओर कभी न तो आपूर्ति विभाग सजग होता है और न तो स्वास्थ्य और फुड विभाग ही। लोग इन्हीं मिलावटी खेल के बीच दिनचर्या गुजार रहे हैं।

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