रेत की धार पर हरियाली फैला रहे यूपी से आए किसान

सुपौल। आज जहां बंजर भूमि के क्षेत्र में लगातार हो रही बढ़ोतरी ने पर्यावरण और कृषि विशे

By JagranEdited By: Publish:Tue, 11 May 2021 06:11 PM (IST) Updated:Tue, 11 May 2021 06:11 PM (IST)
रेत की धार पर हरियाली फैला रहे यूपी से आए किसान
रेत की धार पर हरियाली फैला रहे यूपी से आए किसान

सुपौल। आज जहां बंजर भूमि के क्षेत्र में लगातार हो रही बढ़ोतरी ने पर्यावरण और कृषि विशेषज्ञों के माथे पर चिता की लकीरें खींच दी हैं। वहीं कोसी तटबंध के अंदर बसे गांवों के बालू के ढेर में उगती फल एवं सब्जियां मन में एक खुशनुमा अहसास जगा जाती हैं। प्रखंड क्षेत्र के कोसी तटबंध पर बसे दुबियाही पंचायत स्थित बेला गांव के बेकार पड़ी रेतीली जमीन पर उत्तरप्रदेश के किसान मीठे फल एवं सब्जियों की खेती कर रहे हैं। अपने इस सराहनीय कार्य के चलते ये किसान बिहार के अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बने हुए हैं। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश से आए किसान इस रेतीली जमीन पर सब्जियों की खेती कर जीविकोपार्जन कर रहे हैं। खेती कर रहे उत्तर प्रदेश के किसान को यहां आए छह माह हुए हैं। उत्तरप्रदेश के बागपत जिले के बाशिदे मु. नसीफ बताते हैं कि इससे पहले हमलोग यमुना नदी के किनारे रेतीली भूमि पर खेती-बाड़ी करते थे। मगर जब वहां के जमीन में खराबी आ गई तो वहां की भूमि फसल उपजने लायक नहीं रह गई। नतीजतन हमलोगों को बाहर का रूख करना पड़ा। जहां दिसंबर में यहां आकर जनवरी से सब्जी की खेती शुरू किए। इन लोगों के सब्जियों की खेती करने का अपना विशेष तरीका है।

वे कहते हैं कि इस विधि में मेहनत तो ज्यादा लगती है। लेकिन पैदावार भी अच्छी होती है। किसानों ने बताया कि यहां के जमींदार से छह सौ रुपए प्रति एकड़ की दर से जमीन लीज पर छह महीने के लिए मिल जाती है। इस रेतीली जमीन पर कांटेदार झाड़ियां उगी होती हैं। किसानों ने बताया कि आगे का काम इस जमीन की साफ-सफाई से शुरू होता है। पहले इस जमीन को समतल बनाया जाता है और फिर इसके बाद खेत में तीन गुना तीस फुट के आकार की डेढ़ से दो फुट गहरी बड़ी-बड़ी नालियां बनाई जाती हैं। इन नालियों में एक तरफ बीज बो दिए जाते हैं। नन्हें पौधों को तेज धूप या पाले से बचाने के लिए बीजों की तरफ वाली नालियों की दिशा में छतरी लगा दी जाती है।

----------------------------- शुरू से ही उचित देखरेख होने की वजह से अच्छी होती पैदावार

एक पौधे से 50 से 100 फल तक मिल जाते हैं। हर पौधे से तीन दिन के बाद फल तोड़े जाते हैं। उत्तर प्रदेश के ये किसान तरबूज, खरबूजा, खीरा, बतिया जैसी बेल वाली सब्जियों की ही काश्त करते हैं। इसके बारे में उनका कहना है कि गाजर, मूली या इसी तरह की अन्य सब्जियों के मुकाबले बेल वाली सब्जियों में उन्हें ज्यादा फायदा होता है। इसलिए वे इन्हीं की काश्त करते हैं। खेतीबाड़ी के काम में परिवार के सभी सदस्य हाथ बंटाते हैं। यहां तक कि महिलाएं भी दिनभर खेत में काम करती हैं।

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कहती हैं महिला किसान

बीबी रुखसाना, बीबी रसीदन, बीबी बानो कहती हैं कि वे सुबह घर का काम निपटाकर खेतों में आ जाती हैं और फिर दिनभर खेतीबाड़ी के काम में जुटी रहती हैं। ये महिलाएं खेत में बीज बोने, फल तोड़ने आदि के कार्य को बेहतर तरीके से करती हैं। यहां की सब्जियों को उत्तर प्रदेश, बंगाल, नेपाल और देश की राजधानी दिल्ली में ले जाकर बेची जाती है। दिल्ली में सब्जियों की ज्यादा मांग होने के कारण किसानों को फसल के यहां वाजिब दाम मिल जाते हैं। लेकिन इस बार कोरोना महामारी को लेकर हुए लॉकडाउन रहने के चलते फसल को बाहर नहीं भेज पाने से हम किसानों का काफी नुकसान हुआ है। मजबूरन हम लोग स्थानीय बाजार सुपौल, दरभंगा, पटना और फारबिसगंज के मंडी में औने-पौने दाम में बेच रहे हैं।

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कहते हैं प्रखंड कृषि पदाधिकारी

प्रखंड कृषि पदाधिकारी मिथिलेश कुमार का कहना है कि रेतीली जमीन में इस तरह सब्जियों की काश्त करना वाकई सराहनीय कार्य है। उपजाऊ क्षमता के लगातार ह्रास से जमीन के बंजर होने की समस्या आज देश ही नहीं विश्व के सामने चुनौती बनकर उभरी है। लिहाजा, बंजर भूमि को खेती के लिए इस्तेमाल करने वाले किसानों को पर्याप्त प्रोत्साहन मिलना और भी जरूरी हो जाता है।

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कहते हैं स्थानीय मुखिया

स्थानीय मुखिया शिवशंकर कुमार ने बताया कि यह किसान अन्य प्रदेश से आकर रेतीली भूमि पर फल व सब्जी उपजा रहे हैं। जहां केवल झाड़ उगा करता था। वहां आज स्वादिष्ट फल व सब्जी उगा हुआ है। इन लोगों कोई परेशानी न हो इसका पूरा ख्याल रखा जा रहा है।

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