सरकारी दावा हवा-हवाई, वेंटिलेटर पर आइसीयू

सुपौल। कोरोना का खतरा दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है और इस खतरे से निपटने के लिए सरका

By JagranEdited By: Publish:Mon, 03 Aug 2020 06:37 PM (IST) Updated:Tue, 04 Aug 2020 06:10 AM (IST)
सरकारी दावा हवा-हवाई, वेंटिलेटर पर आइसीयू
सरकारी दावा हवा-हवाई, वेंटिलेटर पर आइसीयू

सुपौल। कोरोना का खतरा दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है और इस खतरे से निपटने के लिए सरकार से लेकर प्रशासन तक बुनियादी ढांचे यानी आइसोलेशन बेड, वेंटिलेटर व आइसीयू की कवायद तेज कर दी है। लेकिन कागजी वेंटिलेटर पर पडे़ वर्षों पूर्व सदर अस्पताल में बनने वाले आइसीयू को गतिशील करने की दिलचस्पी कोई नहीं दिखा रहा है।

सबसे दुखद पहलू यह है कि इस सदर अस्पताल में आईसीयू काम करना शुरु करे इसको ले लगभग दो साल पूर्व स्वास्थ्य मंत्री ने भी संबंधित पदाधिकारियों को आदेश दिया था। लेकिन यह आदेश हवा-हवाई बनकर रह गयी। मालूम हो कि आइसीयू यानी इंटेसिव केयर यूनिट जिसे गहन चिकित्सा इकाई कहा जाता है और जहां गंभीर मरीज को गहन देखभाल, उपचार व चिकित्सा प्रदान की जाती है। सुपौल जिले की आबादी 25 लाख के करीब है और इतनी बड़ी आबादी के लिए सरकारी अस्पतालों में एक भी आइसीयू नहीं है। जब भी कोई अति गंभीर मरीज इलाज के लिए यहां के सरकारी अस्पतालों में आते है तो उसे चिकित्सक सिर्फ और सिर्फ रेफर ही करते हैं।

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फरवरी 2018 में दिया गया था निर्देश

4 फरवरी 2018 को सूबे के स्वास्थ्य मंत्री समाहरणालय के टीसीपी भवन में विभागीय पदाधिकारियों के साथ समीक्षात्मक बैठक की थी। समीक्षात्मक बैठक में मंत्री ने यह घोषणा की थी कि सदर अस्पताल में आइसीयू की स्थापना की जाएगी। उन्होंने आइसीयू के लिए सभी जरूरी सामान जल्द से जल्द मंगा और चालू करने का निर्देश भी दिया था। बावजूद इसके इस दिशा में कुछ भी नहीं हुआ।

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वेंटिलेटर चला गया डीएमसीएच

आइसीयू नहीं बनने के बाबत जब पडताल की गई तो एक और चौंकाने वाली बात सामने आई। सदर अस्पताल में आइसीयू के बनने को ले वर्ष 2015 में दो वेंटिलेटर आया था। उक्त वेंटिलेटर कई वर्ष तक यूं ही अस्पताल के स्टोर में पड़ा रहा। अंतत: उस वेंटिलेटर को पिछले साल डीएमसीएच भेज दिया गया। उसके बाद किसी ने भी आइसीयू बनाने की कार्रवाई को आगे बढ़ाने की जहमत नहीं उठाया।

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निजी क्लीनिक में है आइसीयू

भले ही यहां के सरकारी अस्पतालों में आइसीयू न हो, लेकिन जिले के दो निजी क्लीनिक में इसकी व्यवस्था है। परंतु उस आइसीयू में भी वह व्यवस्था नहीं है जो होनी चाहिए। ऊपर से मरीज के परिजन को आइसीयू के लिए अच्छे-खासे पैसे खर्च करने पड़ते हैं। ये खर्च सभी मरीज के परिजन के द्वारा उठाना संभव नहीं हो पाता।

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