जागरण विशेष::::धान के कटोरे में पड़ेंगे भात के लाले
सुपौल। धान की फसल को पानी की अधिक आवश्यकता होती है। कोसी के इलाके में पानी की अधिकता क
सुपौल। धान की फसल को पानी की अधिक आवश्यकता होती है। कोसी के इलाके में पानी की अधिकता के कारण यहां की मुख्य फसल धान है। इसलिए इसे धान का कटोरा भी कहा जाता है। 86 हजार हेक्टेयर में इस साल धान लगाने का लक्ष्य था जिसमें 83 हजार हेक्टेयर में किसानों ने फसल लगाया। बाढ़ और बारिश के कारण गहरी जमीनों की फसल गल गई। फसल गलने से किसान चितित हैं कि उत्पादन प्रभावित हो सकता है। खासकर तटबंध के अंदर के किसानों का कहना है कि इस बार भात के लाले पड़ेंगे।
धान की खेती किसानों के लिए सस्ती है। धान को अधिक सिचाई की आवश्यकता होती है जो यहां की नदियां और बारिश पूरी कर देती है। इसलिए किसान धान की खेती जमकर करते हैं। इस बार भी जमकर खेती हुई तो बारिश भी उससे जमकर हुई। नतीजा हुआ कि फसल गल गई। मरौना में तो किसानों ने तीन-तीन बार धान की रोपाई की। गिदराही के जगदेव यादव कहते हैं कि दो बार फसल गल तो तीसरी बार रोपाई की है। इधर सरायगढ़ प्रखंड के कोसी प्रभावित कटैया, ढोली, लौकहा पलार, कोढ़ली, कबियाही, उग्रीपट्टी, बलथरबा पलार आदि गांवों में धान की फसल लगभग चौपट हो गई। कटैया के संतोष कुमार सिंह कहते हैं बाढ़ में धान की फसल पूरी तरह तबाह हो गई है। वहीं कोसी से बाहर झिल्ला डुमरी, माकर गढि़या, सदानंदपुर, कल्याणपुर, बैसा, पिपरा खुर्द, गढिया, भपटियाही, छिटही हनुमाननगर, शाहपुर, कुसहा आदि गांव में भी बारिश के कारण फसल बर्बाद हुई है। किसान सियाराम यादव, विनय कुमार यादव, ज्ञानदेव मेहता आदि का कहना है कि उन्होंने समय से रोपाई की लेकिन अत्यधिक बारिश होने के कारण पौधे गल गए। पानी घटने पर जहां-जहां पौधे गले वहां फिर से लगाया गया लेकिन वह भी काम नहीं आया। किसानों का कहना है कि इस साल पैदावार में काफी कमी आएगी।
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जिले में 86 हजार हेक्टेयर धान लगाने के लक्ष्य के मुकाबले 83 हजार हेक्टयर में धान की फसल लगाई गई। अत्यधिक बारिश और बाढ़ के कारण फसल के नुकसान की बात किसान बता रहे हैं। अभी तक सर्वे का निर्देश प्राप्त नहीं हुआ है। मुख्यमंत्री फसल बीमा के लिए किसानों का पंजीयन किया जा रहा है।
समीर कुमार, जिला कृषि पदाधिकारी