व्यवस्था के ठंडापन में गुम हो गई कंचनपुर की चादर की गर्माहट

लौकहा पंचायत के कंचनपुर कजहा वार्ड नंबर 14 में हस्तकरघा उद्योग लोगों के रोजगार का माध्यम था। यहां के सूत की चादरों के अलावा ऊनी चादरों की काफी मांग थी।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 29 Nov 2021 05:27 PM (IST) Updated:Mon, 29 Nov 2021 05:27 PM (IST)
व्यवस्था के ठंडापन में गुम हो गई कंचनपुर की चादर की गर्माहट
व्यवस्था के ठंडापन में गुम हो गई कंचनपुर की चादर की गर्माहट

शशि कुमार, लौकहा बाजार (सुपौल)। लौकहा पंचायत के कंचनपुर कजहा वार्ड नंबर 14 में हस्तकरघा उद्योग लोगों के रोजगार का माध्यम था। यहां के सूत की चादरों के अलावा ऊनी चादरों की काफी मांग थी। कारीगर चादर बनाने मामले में पुरस्कृत भी हुए। मशीनीकरण के दौर में इसे उचित सरकारी सहायता नहीं मिलने से यह बंद सा हो गया और इससे जुड़े लोग बेरोजगार हो गए। अगर इस उद्योग को उचित देखरेख मिले तो इससे जुड़े लोगों के हुनर को उचित सम्मान तो मिलेगा ही साथ में रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। अन्यथा व्यवस्था के ठंडापन में कंचनपुर की चादर की गर्माहट गुम हो गई है।

बुनकर कुंदन पाल और अनिल पाल बताते हैं कि इस कारोबार से यहां के 15-20 परिवार के 50 से अधिक लोग जुड़े हुए थे। कुसहा त्रासदी (2008) से पहले तक यहां कारोबार की तरह चादर बुने जाते थे। लोगों के लिए यह आजीविका का साधन था। चादर की मांग इतनी थी कि कारीगरों को बाजार नहीं खोजनी पड़ती थी। खरीदारी करने आमलोग से लेकर व्यापारी तक यहां आते थे। इसमें आसपास के गांव के लोगों के अलावा सहरसा और मधेपुरा जिले के व्यापारी शामिल होते थे।

कारोबारी राजेंद्र पाल ने बताया कि हस्तकरघा हाथ से चलाया जाता था। नतीजा होता था कि मांग के मुताबिक आपूर्ति नहीं हो पाती थी जिससे ये पीछे पड़ते गए। योगेंद्र पाल बताते हैं कि कच्चा माल के लिए पूंजी की आवश्यकता होती है पूंजी के अभाव में भी रोजगार बंद होता गया।

कारीगर प्रवीण मंडल ने बताया कि हमारे पूर्वज भी यह कारोबार करते थे। इन चादरों की मांग बहुत थी लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहने के कारण मांग पूरी कर पाना संभव नहीं होता था। कहा कि कुसहा त्रासदी में बाढ़ राहत कैंप में इन्होंने कैंप में लोगों को हथकरघा का 26 दिनों तक प्रशिक्षण दिया। इस काम में इनका करघा क्षतिग्रस्त हो गया बावजूद मुआवजा तक नहीं मिला। जानकारी दी कि ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार व ग्रामीण विकास विभाग बिहार सरकार द्वारा आयोजित वसंत सरस मेला (22 मार्च 2007) में इन्हें प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। बताया कि बुनकर आज सरकारी सहायता और प्रोत्साहन नहीं मिलने से दूसरे व्यवसाय की तरफ अपना रुख करने लगे हैं। अगर इन्हें सरकारी सहायता मिले तो यह कारोबार पुनर्जीवित हो सकता है।

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