वेंटिलेटर पर है सदर अस्पताल का वेंटिलेटर
-स्वास्थ्य विभाग के पास कोरोना से लड़ने के लिए नहीं हैं पर्याप्त संसाधन जागरण संवाददाता सुपौल क
-स्वास्थ्य विभाग के पास कोरोना से लड़ने के लिए नहीं हैं पर्याप्त संसाधन
जागरण संवाददाता, सुपौल: कोरोना की तीसरी लहर के आने की प्रबल संभावना व्यक्त की जा रही है। ऐसे में इस वायरस से लड़ने के लिए स्वास्थ्य विभाग के पास मुकम्मल संसाधन व तैयारी होनी चाहिए, जो सुपौल जिले में नहीं दिख रहा है। महीनों पूर्व सदर अस्पताल में आये वेंटिलेटर अब तक चालू नहीं हो पाए हैं और जो विभागीय रवैया है उसे देख तीसरी लहर के दौरान उसके चालू होने की संभावना भी नहीं दिख रही है। मालूम हो कि लगभग एक साल पूर्व पीएम केयर्स फंड के माध्यम से सदर अस्पताल को छह वेंटिलेटर उपलब्ध करवाए गए थे। कोरोना की दूसरी लहर जब अपने चरम पर थी तब उक्त वेंटिलेटर को चालू करने की दिशा में जमकर हाय-तौबा मची, बावजूद इसके वेंटिलेटरों का इस्तेमाल कोरोना मरीजों के लिए नहीं हो पाया। कोरोना की लहर जैसे-जैसे शांत पड़ती गई वेंटिलेटर को चालू करने का मामला भी ठंडा पड़ता गया। मौजूदा समय में छह के छह वेंटिलेटर यूं ही अस्पताल में पड़े हुए हैं।
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पर्यावरण मंत्री ने ली थी सुध
सदर अस्पताल में महीनों से धूल फांक रहे छह वेंटिलेटर की सुध वन, पर्यावरण एवं जलवायु मंत्री नीरज कुमार सिंह बबलू ने तब ली जब कोरोना की दूसरी लहर से हाहाकार मचा हुआ था। उन्होंने वेंटिलेटर को चालू करने के बाबत सुपौल के सिविल सर्जन से बात की। सिविल सर्जन ने जानकारी देते हुए मंत्री को बताया था कि वेंटिलेटर को चलाने वाले टेक्निशियन नहीं हैं और न ही डॉक्टर व अन्य कर्मी हैं। तत्पश्चात वन, पर्यावरण एवं जलवायु मंत्री ने इस बाबत स्वास्थ्य मंत्री से बात की। एक समय ऐसा लगा कि अब जल्द ही वेंटिलेटर काम करना शुरु कर देगा, लेकिन वेंटिलेटर के चालू होने की बात ढ़ाक के तीन पात होकर रह गई। वेंटिलेटर को चलाने के लिए टेक्नीशियन व चिकित्सक की बहाली निकाली गई लेकिन पद के अनुरूप आवेदन ही नहीं आए। बाद में टेक्नीशियन की तो व्यवस्था कर ली गई लेकिन जिस चिकित्सक का पदस्थापन यहां किया गया उन्होंने योगदान नहीं किया।
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झेल रहा व्यवस्था की मार
सदर अस्पताल में लगभग एक साल से छह के छह वेंटिलेटर धूल फांक रहे हैं। वेंटिलेटर की क्या अहमियत है यह बात कोरोना ने हर किसी को बता दिया है। व्यवस्था की मार के चलते कुछ साल तक यूं पड़े-पड़े सब के सब वेंटिलेटर में जंग लगने लगेगा और बाद में पता चलेगा कि सभी वेंटिलेटर कबाड़ बन गए। वैसे अस्पताल में वेंटिलेटर रहते उसका उपयोग मरीजों के लिए नहीं होना यह कोई सुपौल जिले के लिए पहला मामला नहीं है। इससे पहले सदर अस्पताल में आइसीयू के बनने को ले 2015 में दो वेंटिलेटर आया था। उक्त वेंटिलेटर कई वर्ष तक यूं ही अस्पताल के स्टोर में पड़ा रहा। अंतत: उस वेंटिलेटर को 2019 में डीएमसीएच भेज दिया गया।
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हवा-हवाई हो गया मंत्री का निर्देश
4 फरवरी 2018 को सूबे के स्वास्थ्य मंत्री समाहरणालय के टीसीपी भवन में विभागीय पदाधिकारियों के साथ समीक्षात्मक बैठक की थी। समीक्षात्मक बैठक में मंत्री ने यह घोषणा की थी कि सदर अस्पताल में आइसीयू की स्थापना की जाएगी। उन्होंने आइसीयू के लिए सभी जरूरी सामान जल्द से जल्द मंगा और चालू करने का निर्देश भी दिया था, लेकिन स्वास्थ्य मंत्री के निर्देश को तबज्जो नहीं मिली और आइसीयू की बात हवा-हवाई बनकर रह गई। इधर कोरोना के कहर के चलते आनन-फानन में सदर अस्पताल के ऊपरी तले पर आइसीयू का बोर्ड तो लगा दिया गया है लेकिन यह आइसीयू कार्य करना शुरू भी नहीं किया।