साधकों को चित्त विशुद्ध चक्र में स्थिर कर करनी चाहिए स्कंदमाता की पूजा

संवाद सूत्र करजाईन बाजार(सुपौल) शारदीय नवरात्र के दौरान रविवार को नवरात्र के चौथे दिन

By JagranEdited By: Publish:Mon, 11 Oct 2021 12:25 AM (IST) Updated:Mon, 11 Oct 2021 12:25 AM (IST)
साधकों को चित्त विशुद्ध चक्र में स्थिर कर करनी चाहिए स्कंदमाता की पूजा
साधकों को चित्त विशुद्ध चक्र में स्थिर कर करनी चाहिए स्कंदमाता की पूजा

संवाद सूत्र, करजाईन बाजार,(सुपौल): शारदीय नवरात्र के दौरान रविवार को नवरात्र के चौथे दिन श्रद्धालुओं ने मां कुष्मांडा की पूजा-अर्चना की। माता के उपासक भक्त कुष्मांडा देवी की पूजा-अर्चना के लिए सुबह से ही मंदिरों में पहुंचने लगे। करजाईन बाजार, रतनपुर पुरानी, नया बाजार, गोसपुर, साहेबान, मोतीपुर हरिराहा आदि स्थानों में स्थित माता के मंदिरों में श्रद्धालु श्रद्धा-भक्ति के साथ माता की आराधना की। साथ ही संध्या बेला में दीप जलाकर आराधना की। इस दौरान करजाईन बाजार दुर्गा मंदिर में आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र के वेद मंत्रोच्चार से माहौल भक्तिमय हो गया। वहीं यजमान के रूप में करजाईन पैक्स अध्यक्ष विदेश्वर मरीक स्वजनों के साथ निष्ठा से जुटे हुए हैं।

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आज होगी स्कंदमाता एवं कात्यायिनी की पूजा

नवरात्र के पांचवें दिन सोमवार को देवी मां दुर्गा का पंचम रूपांतर श्रीस्कंदमाता की पूजा होगी। साथ ही षष्ठी तिथि के क्षय होने के चलते माता कात्यायिनी की भी पूजा होगी। श्रीस्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। इस बारे में आचार्य पंडित ने बताया कि श्रीस्कंदमाता की निष्ठापूर्वक आराधना करने से भक्तों को इस मृत्युलोक में ही परम शांति एवं सुख का अनुभव होने लगता है। स्कंदमाता के भक्तों के लिए मोक्ष का द्वार स्वयमेव सुलभ हो जाता है। साथ ही स्कंदमाता की उपासना से स्कंद भगवान (कुमार कार्तिकेय) की उपासना भी स्वयमेव हो जाती है। यह विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है। इसलिए साधक, उपासक को श्री स्कंदमाता की पूजा-अर्चना विशेष ध्यान देकर नियमपूर्वक करनी चाहिए। इनके पूजन से सभी मनोवांछित फलों की प्राप्ति संभव है। आचार्य ने बताया कि स्कंदमाता की पूजा के दौरान साधकों को अपना चित्त विशुद्ध चक्र में स्थिर कर अपनी साधना करनी चाहिए। इससे विशुद्ध चक्र जागृत होनेवाली सिद्धियां स्वत: प्राप्त हो जाती है।

साथ ही माँ कात्यायिनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आदिशक्ति श्री दुर्गा का षष्ठम् रूपांतर श्री कात्यायिनी है। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म ली थी। इसलिए वे देवी श्री कात्यायिनी कहलाती हैं। इस दिन साधक को अपना चित्त आज्ञा चक्र में स्थिर करके साधना करनी चाहिए। श्री कात्यायिनी की उपासना से आज्ञा चक्र स्वत: जागृत हो जाती है। श्री कात्यायिनी की भक्ति और उपासना के द्वारा साधक को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों फलों की प्राप्ति होती है। वह साधक इस लोक में स्थिर रहकर अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है। उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। इनका उपासक निरंतर इन के सानिध्य में रहकर परम शांति, सुख एवं ऐश्वर्य का अधिकारी बन जाता है।

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