जगत का पालन, उत्पत्ति व लय भी करती हैं भगवती : आचार्य

करजाईन बाजार संवाद सूत्र (सुपौल) श नाम ऐश्वर्य का और शक्ति नाम पराक्रम का है। ऐश्वर्य-प

By JagranEdited By: Publish:Mon, 11 Oct 2021 12:26 AM (IST) Updated:Mon, 11 Oct 2021 12:26 AM (IST)
जगत का पालन, उत्पत्ति व लय भी करती हैं भगवती : आचार्य
जगत का पालन, उत्पत्ति व लय भी करती हैं भगवती : आचार्य

करजाईन बाजार, संवाद सूत्र (सुपौल): 'श' नाम ऐश्वर्य का और शक्ति नाम पराक्रम का है। ऐश्वर्य-पराक्रम दोनों स्वरूपों को प्रदान करने वाली को शक्ति कहते हैं। इसी आदिशक्ति प्रकृति-देवी की विकृति रूप ही जगत् है। नवरात्र के मौके पर माता जगतजननी दुर्गा की महिमा बताते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि जिस प्रकार प्रकृति अपने विकृति रूप से जगत की रचना करती है। यह संक्षेप में प्रकृति शब्द के अर्थ द्वारा दर्शाया जाता है। 'प्र' का अर्थ है प्रकृष्ट (उत्कृष्ट) और कृति का अर्थ सृष्टि है। अर्थात जो सृष्टि रचने में प्रकृष्ट है उसे प्रकृति कहते हैं। 'प्र' शब्द तीन गुणों से व्यवस्थित है। इन तीन गुणों के द्वारा ही तीन देवताओं को अर्थात सत्य से श्री विष्णु को, रज से ब्रह्मा को और तम से रूद्र को उत्पन्न कर भगवती जगत् का पालन, उत्पत्ति और लय करती है। धर्म शास्त्रों में इसी प्रकार का स्वरूप बताया गया है। सृष्टि की आदि में एक देवी ही थी। उसने ही ब्रह्मांड उत्पन्न किया। उससे ही ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र उत्पन्न हुए। यही परा शक्ति है। रहस्य ग्रंथों में भी इसका वर्णन है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश अपने अर्धांगीभूत त्रिविध शक्ति सरस्वती, लक्ष्मी और गौरी की सहायता से ही जगत का जनन, पालन और लय करते हैं। बिना शक्ति के आत्मदेव सृष्टि रचना नहीं कर सकते। ज्ञान, समृद्धि, संपत्ति, यश और आत्मा का नाम ही भगवान है। स्वेच्छा मय होने से भगवान कभी आकार और कभी निराकार होते हैं। वहीं जगदंबा जब-जब दानव जन्यबाधा उपस्थित होगी, तब तक मैं अवतीर्ण होकर दुष्टों का नाश करूंगी। अपनी इस प्रतिज्ञानुसार समय-समय पर दुर्गा, भीमा, शाकंभरी आदि नामों से अवतार लेकर जगत का क्षेम करती है। ब्राह्मणी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नारसिंही, एंद्री, शिवदूती और चामुंडा यही देवी की नौ शक्तियां मानी गई है। ''कलौ चंडी विनायको'' के अनुसार कलियुग में चंडी (दुर्गा) एवं विनायक (गणेश जी) की प्रधानता सिद्ध है। उसमें सर्वप्रथम शक्ति दुर्गा का ही उल्लेख है। यह देवी चारों पुरुषार्थों को प्रदान करती है। ऐसी दुर्गा की अराधना साधना करने से जिस जिस कामना से जिन जिन वस्तु की इच्छा करता है, उसे अल्प प्रयास से ही सभी मनोरथों की प्राप्ति होती है। यही आधा शक्ति भगवती दुर्गा अपने उपासक भक्तों को सदैव सकल पदार्थ प्रदान करती है।

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