मिट्टी के दीये की बिक्री घटी, नहीं घटी बनानेवालों की हिम्मत

फोटो फाइल नंबर-25एसयूपी-8 -चाइना मेड झालरों ने लगाया मिट्टी के दीये पर ब्रेक -प्रधानमंत्री न

By JagranEdited By: Publish:Tue, 26 Oct 2021 12:01 AM (IST) Updated:Tue, 26 Oct 2021 12:01 AM (IST)
मिट्टी के दीये की बिक्री घटी, नहीं घटी बनानेवालों की हिम्मत
मिट्टी के दीये की बिक्री घटी, नहीं घटी बनानेवालों की हिम्मत

फोटो फाइल नंबर-25एसयूपी-8

-चाइना मेड झालरों ने लगाया मिट्टी के दीये पर ब्रेक

-प्रधानमंत्री ने भी की है मिट्टी के दीये जलाने की अपील

संवाद सूत्र, राघोपुर (सुपौल): दीपावली यानी दीपों का त्योहार आने से कई माह पूर्व ही कुम्हार मिट्टी के दीप बनाने में जुट जाते थे, उनके चेहरे पर खुशी होती थी कि दीपावली में दीये को बेचकर वे अपनी आवश्यकता की पूर्ति करेंगे। लेकिन बदलते परिवेश एवं फैशन के इस दौर में धंधे में लगे लोगों का जीवन न केवल संकट में है, बल्कि इनके जीविका पर चाइनीज सामान ने ग्रहण लगा दिया है। प्रखंड के धरहरा महादेव स्थान, धरमपुर बरेवा, सरहोंचिया, रामपुर आदि कई गांवों के सैकड़ों की संख्या में कुम्हारों की जीविका के साधन मिट्टी के बर्तन थे। फैशन के दौर में मिट्टी के बर्तन बंद हो गए। दीपावली के मौके पर दीया से उनकी आस बची थी जिसपर भी चाईनीज आइटम के आने से बिक्री कम हो गई है। हालांकि मिट्टी से बने बर्तन के उपयोग करने के लिए समय-समय पर राजनेताओं ने भी लोगों से अपील की। प्रधानमंत्री ने भी दीपावली में मिट्टी के दीये जलाने की अपील लोगों से की बावजूद लोगों का झुकाव इस ओर नहीं हो पा रहा है। इन तमाम बातों के बाद भी दीपावली नजदीक आता देख कुम्हार दीये बनाने में मशगूल हो गए हैं। मिट्टी के दीये की बिक्री जरूर घट गई है लेकिन इसे बनाने वालों की हिम्मत नहीं घटी है।

--------------------------------------- क्या कहते हैं कुम्हार प्रखंड के धरहरा पंचायत के धरमपुर टोला निवासी, शत्रुघ्न पंडित, चुल्हाय पंडित, महादेव स्थान के शिबन पंडित ने कहा कि हमारे पूर्वज की पुस्तैनी धंधा मिट्टी का बर्तन गढ़ना है, इसी धंधे से न केवल हम अपने परिवार का भरण पोषण करते आ रहे हैं बल्कि हम पर्यावरण का भी पोषण करते आ रहे थे। लेकिन सरकार एवं राजनेता की उपेक्षा के चलते हमारे परिवार के साथ-साथ पर्यावरण पर भी ग्रहण लग गया है। लोगों ने कहा कि आज भी गांव एवं शहरी क्षेत्र के कई परिवार मिट्टी के कारोबार से जुड़े हुए हैं। कुछ वर्ष पहले तक वे एक से डेढ़ लाख तक दीयों का निर्माण करते थे वह हजार में सिमट गया है। बुजुर्ग बताते हैं कि वक्त के साथ परंपरागत चीजें भी गायब हो रही हैं। पहले मिट्टी के बर्तनों से लेकर मिट्टी के दीये तक हमारी परंपराओं में शामिल थे। मगर अब इन परंपरागत चीजों पर आधुनिकता ने चादर डाल दिया है। दीपावली पर चाइना की झालर और लाइट जल रही है। पूजा आदि धार्मिक कार्यक्रम में भी धीरे-धीरे मिट्टी के सामान का उपयोग हटता जा रहा है।

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