सहेज लो हर बूंद::::धरोहरों को बचाने के लिए जागरूकता जरूरी

-पोखरे आज कई जगहों पर अपने अस्तित्व की लड़ रहे हैं लड़ाई संवाद सूत्र सरायगढ़ (सुपौल)

By JagranEdited By: Publish:Sat, 17 Apr 2021 06:11 PM (IST) Updated:Sat, 17 Apr 2021 06:11 PM (IST)
सहेज लो हर बूंद::::धरोहरों को बचाने के लिए जागरूकता जरूरी
सहेज लो हर बूंद::::धरोहरों को बचाने के लिए जागरूकता जरूरी

-पोखरे आज कई जगहों पर अपने अस्तित्व की लड़ रहे हैं लड़ाई

संवाद सूत्र, सरायगढ़ (सुपौल): पोखर अथवा जलाशय लोगों के जीवन के लिए महत्वपूर्ण होता था। तालाब के पानी को लोग शुद्ध मानकर उससे अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति किया करते थे। वह पोखर आज कई जगहों पर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा हैं। सरायगढ़ भपटियाही प्रखंड क्षेत्र के पिपराखुर्द पंचायत अंतर्गत वार्ड नंबर 6 में तकरीबन 4 बड़े पोखर मौजूद हैं, लेकिन किसी में भी पानी दिखाई नहीं देता है। पोखर के चारों तरफ ऊंचे ऊंचे महाड़ तो हैं लेकिन सरजमीन से उसकी गहराई कम होने के कारण उसमें पानी नहीं रहता है। गर्मी का मौसम आते ही पोखर का पानी उसके तल में चला जाता है। फिर बरसात आने तक पोखर खुद पानी के लिए तरसता रहता है। पोखर की उपेक्षा एवं साफ-सफाई नहीं होने के कारण कई जगहों पर पोखर अपने स्वरूप को भी खोता जा रहा है। उधर सरकार द्वारा मनरेगा योजना से जल संरक्षण के ²ष्टिकोण से जगह-जगह पोखर खुदवाने का काम किया गया। हालात यह भी है कि मनरेगा योजना से जितने भी पोखर की खुदाई हुई सरकार के पैसे तो उस पर खर्च हो गए लेकिन स्थल पर देखने से प्रतीत होता है कि पैसे का कोई उपयोग नहीं हो सका। पोखर खुदाई के नाम पर कहीं खानापूरी हुई तो कहीं छोटे से रकबे में मेड़ बनाकर उसे पोखर का रूप दे दिया गया। पिछले बरसात में कई पोखर ने तो अपना स्वरूप ही खो दिया है। ऐसे पोखरों की जांच के लिए भी किसी के पास समय नहीं है। जल जीवन हरियाली अभियान के तहत पोखर का काफी महत्व बताया गया है क्योंकि जल संरक्षण के लिए उससे कारगर संसाधन दूसरा नहीं है। लेकिन ऐसे पोखरों के प्रति जनप्रतिनिधि से लेकर सरकार तक की उदासीनता एक बड़ा सवाल बना हुआ है। आज की तारीख में यदि सरकारी पोखर के हालात पर चर्चा हो तो वहां कुछ जगह मछली पालन होता है तो कुछ जगह घास उगा दिखाई देता है। निजी पोखर मालिक इसलिए उसकी सफाई नहीं करते कि वह भी सरकारी राशि के आस में टकटकी लगाए रहते हैं। निजी पोखर के कुछ मालिकों ने पूछने पर बताया कि पोखर में जो जल जमा रहता है वह पशुओं के काम आता है। पोखर के जल से खेतों की सिचाई होती है। कड़ाके की गर्मी के समय में लोग पोखर के शीतल जल में स्नान भी करते हैं। लेकिन उस पोखर के रखरखाव पर अकेले एक व्यक्ति राशि खर्च क्यों करे। पर्यावरण सुरक्षा की जिम्मेवारी सरकार की भी है और जब सरकार सरकारी पोखर के जीर्णोद्धार पर राशि देती है। मनरेगा योजना से नए नए पोखर का निर्माण कराती है। तो फिर निजी पोखर पर वृक्षारोपण, साफ सफाई और उसके जीर्णोद्धार के मद में राशि भी देनी चाहिए। इसी कारण निजी पोखर आज धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है।

प्रखंड क्षेत्र के कुछ अन्य पंचायतों में भी लोगों का मानना है कि पोखर के प्रति सभी को संवेदनशील होने की जरूरत है। वर्तमान समय में प्रकृति में जिस तरह बदलाव होता जा रहा है वैसे में यदि जल संरक्षण की दिशा में बड़े पैमाने पर काम नहीं हुआ तो स्थिति भयावह हो सकती है।

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