ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड::::::गौरवशाली अतीत को बचाने की जद्दोजहद में सुमरित कन्या मध्य विद्यालय
--विद्यालय अपने पुराने जर्जर भवन में ही चल रहा है -जमीन उपलब्धता के बावजूद बना है विभागीय उपे
--विद्यालय अपने पुराने जर्जर भवन में ही चल रहा है
-जमीन उपलब्धता के बावजूद बना है विभागीय उपेक्षा का शिकार
संवाद सूत्र, प्रतापगंज(सुपौल): सुमरित कन्या मध्य विद्यालय प्रतापगंज आज अपने गौरवशाली अतीत को बचाने की जद्दोजहद में जुटा है। विद्यालय अपने पुराने जर्जर भवन में ही चल रहा है। जमीन उपलब्धता के बावजूद विभागीय उपेक्षा का शिकार बना है। विद्यालय की स्थापना वर्ष 1955 में की गई थी जब लोगों को खासकर बालिका शिक्षा के लिए काफी जहमत उठानी पड़ती थी। बालिका विद्यालय नहीं होने की वजह से उस वक्त बेटियां शिक्षा से वंचित रह जाती थी। बालिका शिक्षा की महत्ता के मद्देनजर क्षेत्रीय जमीन दाता सुमरित पूर्वे ने न सिर्फ 4 बीघा 19 धूर जमीन दान दिया बल्कि दाता ने विद्यालय भवन का निर्माण भी करवाया था। उस वक्त यह विद्यालय गर्ल्स मिडिल स्कूल के नाम से जाना जाता था। इस विद्यालय में मात्र छात्राएं ही पढ़ा करती थी। आज भी अधिकांश छात्राएं अपना नामांकन कराने व पठन-पाठन के लिए इसी विद्यालय को उपयुक्त मानती आ रही है। हालांकि आज के समय में वर्ग 1-5 तक की कक्षा में छात्रों का भी नामांकन है, लेकिन पांचवीं कक्षा उत्तीर्ण पश्चात छात्र स्वत: दूसरे विद्यालय में अपना नामांकन करवा लेते हैं। विद्यालय का ऐतिहासिक मूल भवन बीते कुल वर्षों पूर्व बाढ़ व आंधी की चपेट में आने से पूरी तरह से जर्जर हो चुका है। लेकिन विभाग को बारंबार ध्यान आकृष्ट कराने के बावजूद आज तक कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी। परिणामस्वरूप सर्व शिक्षा अभियान के तहत अतिरिक्त स्थल पर बनाए गए कुछ कमरों के भवन में ही विद्यालय के पठन-पाठन सहित सभी शैक्षणिक कार्यों को करने की घोर विवशता है। विद्यालय के पास सभी मूलभूत सुविधाओं सहित चाहरदीवारी भी उपलब्ध है। ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड के तहत जब शुक्रवार को उक्त विद्यालय का जायजा लिया गया। विद्यालय में 1- 8 वीं कक्षा के कुल 618 छात्र-छात्रा नामांकित हैं। कोरोना संक्रमण के बाद से बंद की गई कक्षा अब तक शुरू नहीं की जा सकी है। विद्यालय में सभी शिक्षक भी मौजूद थे।
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कहते हैं प्रधान
विद्यालय प्रधान कृष्ण देव रजक ने बताया कि कोरोना संक्रमण के मद्देनजर सरकार के निर्देश पर बच्चे स्कूल नहीं आते हैं। ऐतिहासिक विद्यालय के अनुरूप सरकार द्वारा इस विद्यालय के साथ विकास की अनदेखी की गई। विद्यालय के अनदेखी का आलम है कि उक्त विद्यालय को पर्याप्त जमीन रहते हुए भी आवश्यकता के अनुरूप भवन नहीं है।
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कहते हैं अभिभावक
विद्यालय के मूल भवन के निर्माण की अनदेखी किया जाना सरकार की उदासीनता है। ऐसे में उक्त विद्यालय को पुराने जर्जर भवन के स्थल पर नवनिर्मित भवन को बनाकर विद्यालय के ऐतिहासिक धरोहर को कायम रखने की दिशा में पहल किए जाने की जरूरत है ताकि आने वाली पीढ़ी इस विद्यालय के गौरवशाली अतीत को बरकरार रख सके।