सहेज लो हर बूंद::::जलकुंभी के जंगल में गुम हो गया बचनेश्वर तालाब

विमल भारती सरायगढ़ (सुपौल) बाबा वचनेश्वर स्थान भपटियाही के परिसर में 45 वर्ष पूर्व बनाया गया

By JagranEdited By: Publish:Thu, 15 Apr 2021 05:36 PM (IST) Updated:Thu, 15 Apr 2021 05:36 PM (IST)
सहेज लो हर बूंद::::जलकुंभी के जंगल में गुम हो गया बचनेश्वर तालाब
सहेज लो हर बूंद::::जलकुंभी के जंगल में गुम हो गया बचनेश्वर तालाब

विमल भारती, सरायगढ़ (सुपौल): बाबा वचनेश्वर स्थान भपटियाही के परिसर में 45 वर्ष पूर्व बनाया गया पोखर आज खुद पानी को तरस रहा है। वर्ष भर जल संचय कर रखने वाला वचनेश्वर पोखर की साफ-सफाई नहीं होती है। सफाई नहीं होने के कारण पोखर में जलकुंभी भर गया है और वह उसके स्वरूप को बदल कर रख दिया है। बरसात के दिनों को छोड़ बाकी समय पोखर में पानी का अकाल दिखाई देता है।

सरकार के जल-जीवन-हरियाली अभियान के दौरान भी किसी की नजर उस पोखर की ओर नहीं गई। भारत सरकार द्वारा जल संरक्षण की दृष्टिकोण से प्रत्येक गांव में मनरेगा योजना की राशि से पोखर खुदाई का काम शुरू करवाया गया। सरायगढ़-भपटियाही के प्रखंड क्षेत्र में कई जगहों पर पोखर का निर्माण हुआ भी, लेकिन अधिकांश पोखर उद्देश्य से काफी दूर रह गया। पोखर निर्माण पर जो राशि खर्च हुई उस हिसाब से जल संरक्षण के क्षेत्र में कोई खास उपलब्धि नहीं हुई। शिव मंदिर भपटियाही के प्रांगण में पोखर की यदि साफ-सफाई होती रहती तो आज उसमें पानी पर्याप्त रहता और मंदिर में पूजा-अर्चना करने पहुंचने वालों को चापाकल के पानी का सहारा नहीं लेना पड़ता। लेकिन पोखर के महत्व को आज की तारीख में न तो जनप्रतिनिधि और न ही पदाधिकारी में से कोई समझने को तैयार हैं। पोखर में जहां पहले लोग स्नान करते थे, पोखर के जल को पवित्र मानकर उसे मंदिरों में अर्पित करते थे आज वह पोखर सिर्फ दिखावा बनकर रह गया है। जो भी लोग मंदिर में पूजा करने आते वह चापाकल के पानी के सहारे पूजा के रस्म को पूरा कर चले जाते हैं। उन्हें भी याद नहीं रहता कि आखिर मंदिर के सामने बने पोखर किस काम के लिए बना था।

कहते हैं कि पहले लोग पोखर में दीप जलाया करते थे। पोखर का पानी हमेशा शुद्ध बना रहे इसके लिए उसमें चूना सहित अन्य दवाइयां डाली जाती थी। पोखर के प्रति लोगों की बड़ी आस्था थी और हर छोटे-बड़े आयोजन में लोग पहले पोखर के पास जाकर पूजा करते थे। बाद में पोखर को मछली पालन का केंद्र बनाया गया और धीरे-धीरे उसमें मछली पालन भी बंद हो गया। कई जगहों पर पोखर को भरकर उसमें लोग खेती-बारी करने लगे हैं। चाहे सरकारी पोखर हो या निजी सबका हाल लगभग एक जैसा दिखाई देता है। बीते वर्ष पदाधिकारियों ने सरकारी पोखर को चिन्हित कर उसका जीर्णोद्धार कराने का काम शुरू किया था लेकिन वह भी इक्के-दुक्के जगहों पर हुआ। निजी पोखर के साफ-सफाई के लिए राशि नहीं होने के कारण लोग उदासीन बने रहे। वर्तमान में जहां भी कहीं निजी पोखर है उसके अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है।

क्षेत्र के कुछ जानकारों का कहना है कि पोखर जल संरक्षण का सबसे बड़ा माध्यम है और उसके अस्तित्व को हमेशा बचा कर रखना होगा। पोखर के जल से अगल-बगल का क्षेत्र हरा भरा रहता है। पशु-पक्षी के लिए पोखर में जल होना बहुत जरूरी होता है क्योंकि पशु-पक्षी किसी के घर पर जाकर पानी नहीं पीते। जानकारों का कहना है कि लोगों को पोखर का महत्व समझना होगा और उसकी साफ-सफाई कर जल संचय करने लायक बनाना होगा। ऐसा नहीं होने पर एक दिन दूर-दूर तक पोखर दिखाई नहीं देगा और तब सुखाड़ जैसी भयंकर समस्याओं से सामना करना पड़ सकता है।

chat bot
आपका साथी