अभियान सड़क सुरक्षा सप्ताह : गाड़ियों की अपनी रफ्तार, विभाग की अपनी चाल

--सरकार की ओर से लाख निर्देश आ जाए लेकिन सरजमीन पर कम और कागजों पर ही सुरक्षित याताय

By JagranEdited By: Publish:Mon, 30 Nov 2020 12:00 AM (IST) Updated:Mon, 30 Nov 2020 12:00 AM (IST)
अभियान सड़क सुरक्षा सप्ताह : गाड़ियों की अपनी रफ्तार, विभाग की अपनी चाल
अभियान सड़क सुरक्षा सप्ताह : गाड़ियों की अपनी रफ्तार, विभाग की अपनी चाल

--सरकार की ओर से लाख निर्देश आ जाए लेकिन सरजमीन पर कम और कागजों पर ही सुरक्षित यातायात संबंधी काम होता है अधिक

जागरण संवाददाता, सुपौल: सुरक्षित यातायात को लेकर जब कोई सरकारी निर्देश अथवा कोई तय कार्यक्रम आता है तो विभागीय गतिविधियां दिखाई देती है अन्यथा सड़कों पर गाड़ियों की अपनी रफ्तार होती है और विभाग अपनी चाल से चलता है। सरकार की ओर से लाख निर्देश आ जाए लेकिन सरजमीन पर कम और कागजों पर ही सुरक्षित यातायात संबंधी काम अधिक हुआ करता है। कहना गलत नहीं होगा कि कार्यक्रमों की महज औपचारिकता ही पूरी की जाती है। ट्रैफिक लाइट तो दूर की बात तीखे मोड़ों पर संकेतक का अभाव लोगों को खटकता है।

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विभाग को संसाधनों का अभाव

परिवहन विभाग के पास हमेशा से संसाधनों का रोना है। जब से जिले की स्थापना हुई, विभाग उधार के कर्मियों के भरोसे ही चलता रहा। पहले तो डीटीओ का पद प्रभार में रहता था और कई जिले मिलाकर एक एमवीआइ हुआ करते थे लेकिन डीटीओ की पदस्थापना की गई और एमवीआइ भी जिले के लिए अलग से पदस्थापित किए गए। अन्य संसाधनों का भी अभाव बना हुआ है। जिले में फिटनेस जुगाड़ तकनीक से ही दिया जाता है। ड्राइविग लाइसेंस देने का अपना सिस्टम है।

------------------------------------------- नियमित नहीं होती है वाहनों की जांच

जहां तक वाहनों की जांच की बात है तो यह यदा-कदा ही होती है। वाहनों की नियमित जांच नहीं होने का नतीजा होता है कि अनफिट वाहन भी सड़कों पर दौड़ लगाते रहते हैं। सीट बेल्ट लगाना, हेलमेट पहनना, क्षमता से अधिक सवारियों को बैठाना या सामान लोड करना चालक या सवारी की मर्जी पर निर्भर करता है। जब जांच हुई तो इन वाहनों से जुर्माना वसूल कर सरकारी कोष में जमा कर दिया है और विभाग का काम पूरा हो जाता है। लापरवाही के कारण होती है दुर्घटनाएं

चकाचक हो चली सड़कों पर दुर्घटनाएं आम बात हो चुकी हैं। कब, कौन और कहां यात्रा के दौरान दुर्घटना का शिकार हो जाए कहना मुश्किल है। जिले की विभिन्न सड़कों पर हाल के कुछ माह में हुई दुर्घटना इस बात का गवाह है कि अनियंत्रित रफ्तार से दौड़ती गाडिय़ां सड़कों पर मौत बांट रही है। न तो रफ्तार पर कोई लगाम है और न कोई प्रतिबंध। सत्यता यह है कि हर माह सड़क दुर्घटना में औसतन 10 मौतें हो ही जाती है। अधिकांश घटनाओं के पीछे लापरवाही ही कारण होती है।

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नहीं होता यातायात नियमों का पालन

यातायात के मद्देनजर बनाए गए नियमों का पालन सड़कों पर नहीं के बराबर हो रहा है। इसके लिए कोई टोकने वाला भी नहीं है। स्थिति यह है कि चालक नशे की हालत में भी वाहन चलाने से बाज नहीं आते। चार चक्के वाहन वालों के सीट बेल्ट का प्रयोग आवश्यक है बावजूद चालकों द्वारा इस बेल्ट का प्रयोग नहीं किया जाता। 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों का वाहन चलाना गैर कानूनी है लेकिन आश्चर्य की बात है कि सरेआम निर्धारित उम्र से कम के किशोरों को दो चक्के वाहन चलाते शहर में देखा जा सकता है। इसके अलावा ऑटो पर भी नाबालिग फर्राटे भरते हैं। वाहन चलाते समय चालकों द्वारा मोबाईल फोन का प्रयोग भी धड़ल्ले से किया जाता है। अधिकांश चालकों को तो सड़क के किनारे लगे संकेतक की भी जानकारी नहीं है। इसके अतिरिक्त दो चक्के वाहन वालों के लिए यात्रा के दौरान हेलमेट अनिवार्य है। बावजूद अधिकांश चालक ऐसा नहीं करते। वाहन चलाते समय संगीत सुनना यहां एक फैशन सा हो गया है।

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नहीं है पार्किंग की व्यवस्था

शहर में पार्किंग की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में लोग जहां-तहां बेतरतीब ढंग से गाड़ियां खड़ी कर देते हैं। जो दुर्घटना का एक बड़ा कारण बन जाता है। हाईवे पर भी इस पर कोई खास प्रतिबंध दिखाई नहीं देता। होटलों के आसपास यत्र-तत्र गाड़ियां खड़ी कर दी जाती है। जो अमूमन दुर्घटना का कारण साबित होती है। शहर में जगह की कमी पार्किंग व्यवस्था को दुरुस्त करने के आड़े आती है।

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