चुनाव पेज: चाय की चुस्कियों के बीच होने लगा क्षेत्रवार आकलन
विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों के बीच गठबंधन की स्थिति अभी भी साफ नहीं हुई है। एनडीए और फिर महागठबंधन में कौन-कौन दल रहेंगे या फिर नहीं रहेंगे इसको लेकर मंथन शुरू है। लेकिन अंदरखाने में क्या हो रहा है यह जानकारी सार्वजनिक नहीं हो पाई है।
सुपौल। विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों के बीच गठबंधन की स्थिति अभी भी साफ नहीं हुई है। एनडीए और फिर महागठबंधन में कौन-कौन दल रहेंगे या फिर नहीं रहेंगे इसको लेकर मंथन शुरू है। लेकिन अंदरखाने में क्या हो रहा है यह जानकारी सार्वजनिक नहीं हो पाई है। बावजूद इसके राजनीति के क्षेत्र में छोटी कोलकाता कहा जाने वाला सरायगढ़ भपटियाही प्रखंड मुख्यालय में बीते एक सप्ताह से पौ फटते ही चाय पर चुनाव की चर्चा शुरू हो जाती है। सुबह-सुबह जहां पहले चुनावी चर्चा शुरू होती है वह है शिव मंदिर चौक भपटियाही। लक्ष्मी चाय दुकान खुलने से पहले ही वहां कुछ लोग पहुंच जाते हैं। मॉर्निंग वॉक के बहाने घर से निकलने वालों में अवध बाबू, केके सिंह, गोपाल बाबू, बिदेश्वर बाबू सहित अन्य कुछ लोग होते हैं जो हर बार के चुनाव में सुबह-शाम राजनीतिक विश्लेषण करते देखे जाते हैं। इस बार जैसे ही चुनावी बिगुल बजा कि ऐसे सभी लोगों को चर्चा का एक बड़ा विषय मिल गया है। गठबंधन और महागठबंधन का भविष्य क्या होगा चाय पर चर्चा का मुख्य विषय रहा करता है। कुछ लोग कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बिहार का एनडीए गठबंधन एक बार फिर भारी पड़ेगा तो उसी में से कुछ लोग इसमें सहमत दिखाई नहीं देते। दूसरे कहते हैं कि चुनाव की परिस्थिति हर बार अलग-अलग रहती है। इस कारण 2020 के चुनाव में क्या कुछ होगा यह वक्त पर निर्भर करेगा। चुनाव में गठबंधन भी मायने रखता है इसलिए जब तक एनडीए और महा गठबंधन के घटक दलों की स्थिति साफ नहीं हो जाती तब तक कुछ साफ-साफ नहीं कहा जा सकता। चाय पर चर्चा में निर्मली विधानसभा सहित सुपौल जिले के सभी 5 विधानसभा की समीक्षा हो जाती है। चर्चा के दौरान यह कहा जा रहा है कि निर्मली विधानसभा में एनडीए के तरफ से उम्मीदवार का चेहरा साफ है। सामने वाला कौन आता है आकलन उसपर निर्भर करेगा। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान निर्मली विधानसभा क्षेत्र में जो उथल-पुथल की स्थिति बनी थी उसका सीधा असर इस बार विधानसभा चुनाव में दिखाई देगा। कोविड-19 को लेकर चुनाव के दौरान खुले रूप से आम सभा का नहीं होना और छोटी-छोटी सभाओं के माध्यम से और फिर वर्चुअल रैली के द्वारा लोगों को मोटिवेट करना थोड़ा कठिन तो होगा।