अभियान अच्छे पौध-बुरे पौधे:::::::::फलदार पौधे ने बदल दी विजय की जीवनशैली

जागरण संवाददाता सुपौल अनुकूल जलवायु और भौगोलिक बनावट के बाद भी कोसी का यह इलाका शुरुअ

By JagranEdited By: Publish:Fri, 03 Jul 2020 12:45 AM (IST) Updated:Fri, 03 Jul 2020 06:14 AM (IST)
अभियान अच्छे पौध-बुरे पौधे:::::::::फलदार पौधे ने बदल दी विजय की जीवनशैली
अभियान अच्छे पौध-बुरे पौधे:::::::::फलदार पौधे ने बदल दी विजय की जीवनशैली

जागरण संवाददाता, सुपौल: अनुकूल जलवायु और भौगोलिक बनावट के बाद भी कोसी का यह इलाका शुरुआती काल से ही वन क्षेत्र मामले में गरीब रहा है। परंतु इसका मतलब यह भी नहीं कि यहां पेड़-पौधे का अकाल रहा है। कोसी के इस इलाके के लोगों का पेड़ पौधे से जुड़ाव बहुत पुराना है। आज भी पूर्वजों के द्वारा लगाए गए पेड़ों की निशानी इस बात का गवाह है कि उन लोगों का पौधरोपण से कितना जुड़ाव था। बावजूद वन संपदा मामले में इस इलाके की जो पहचान होनी चाहिए थी वह उन्हें नहीं मिल पाई। परंतु बदलते समय के साथ पर्यावरण संरक्षण की हो रही चिता से अब सुपौल जिले के लोग भी पौधे के मर्म को समझने लगे हैं। जिसके कारण हाल के दिनों में पौधरोपण को गति मिली है। जिले के कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने पौधरोपण को अपना रोजगार और जीविका का ही साधन बना लिया है। अब बड़ी संख्या में लोग पौधरोपण को भविष्य की पूंजी बता कर इस कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं। इधर सरकार ने भी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से पौधरोपण करने वाले लोगों को प्रोत्साहित किया है। इतने के बावजूद भी कुछ ऐसे लोग भी हैं जो आज तक एक पौधे तो नहीं लगाए परंतु अपने पूर्वजों के इस धरोहर को भुनाने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो पेड़-पौधे से पर्यावरण को होने वाले लाभ के बारे में तो नहीं जानते परंतु भविष्य की संपत्ति बता कर इस काम में लगे हैं। इन्हीं में से एक है पिपरा प्रखंड के दीनापट्टी निवासी विजय मुखिया। पौधरोपण का जुनून इसके सिर इस तरह चढ़ा कि अपने जीविका का माध्यम ही बना लिया। कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद आज उनका इस मामले में तजुर्बा इतना बढ़ गया है कि वे पौधे लगाने से लेकर उसके रखरखाव, पौधों में लगने वाली बीमारी व उसका उपचार तक उनके जेहन में रहता है। विजय ने बताया कि पिता के गुजरने के बाद जब घर की जिम्मेवारी उनके ऊपर आई तो पहले तो समझ में नहीं आया कि क्या करें। फिर उन्होंने स्वयं के 10 कट्ठा जमीन में पौधे लगाए। करीब 8 वर्ष के बाद ही एक व्यापारी आया और उनसे 5 वर्षों के लिए डेढ़ लाख रुपये में यह बागान खरीद लिया। फिर क्या था उनका लगाव पौधरोपण के प्रति बढ़ गया। उन्हीं पैसों से उन्होंने तीन एकड़ खेतों में फिर पौधे लगाए और स्वयं की नर्सरी लगाकर पौधे लगाने के लिए लोगों को प्रेरित करने लगे। आज स्थिति ऐसी है कि पौधा बेचना ही उनका जीविका का साधन बन चुका है। उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी है। विजय मुखिया नाम लेते ही लोग पौधे वाले समझ लेते हैं। कुछ ऐसा ही कर रहा है बसहा गांव का राजेश मंडल। जिन्हें पुश्तैनी पेड़ों का बागान था। राजेश ने बताया कि उन्हें बेटी की शादी करनी थी, रुपये पैसे की कमी थी। फिर उन्होंने करीब 17 कट्ठा में लगे पेड़ों को बेचकर बेटी की शादी कर ली। परंतु उन्होंने उसी दिन प्रण कर लिया कि वे भी अपने आने वाली पीढ़ी के लिए यह संपत्ति बनाएंगे। फिर उन्होंने तो पहले स्वयं के तीन एकड़ जमीन में कई प्रकार के पौधे लगाए। पौधों के प्रति उनका प्रेम इस प्रकार बढ़ चला कि अब वह प्रत्येक रविवार को एक पौधा लगाने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करते हैं। इसके लिए वे और दूसरों के खेतों में पौधरोपण कर रहे हैं। वे सिर्फ पौधा लगाते ही नहीं बल्कि उनका संरक्षण भी करते हैं। इन्हीं लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं जो सिर्फ पूर्वजों के द्वारा लगाए गए पेड़ों का उपयोग तो कर रहे हैं। परंतु स्वयं का एक भी पौधा नहीं लगाए हैं। पथरा के शिव चंद्र यादव जिनकी उम्र लगभग 70 वर्ष के करीब है बताते हैं कि पूर्वजों के लगाए वृक्षों से वे काफी मजबूत हुए हैं। परंतु नए पौधे लगाए जाने के सवाल पर कहा कि अब तो उनकी उम्र एक पड़ाव पर आ चुकी है। अब पौधे लगाकर क्या फायदा। उनका यह भी कहना था कि अब जमीन भी टुकड़ों में बंट चुका है और जहां पौणे लगना चाहिए वहां बसावट बस चुका है। करीब 70 की उम्र पार कर चुके पथरा उत्तर पंचायत के सोहन साह के चेहरे पर पौधरोपण नहीं करने का कसक स्पष्ट रूप से दिख रहा था। पूछने पर उन्होंने बताया कि यदि कुछ दिन पहले पौधे के इस मर्म को समझते तो निश्चित ही पौधरोपण करते। उनका कहना था कि भले ही वे जीवन में पौधे नहीं लगाए लेकिन अपने बच्चों को वे पौधे लगाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

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