सुपौल : तब चुनाव में नहीं होता था तामझाम ना झूठा प्रचार

आजादी के बाद संविधान के निर्माण में ग्रामीण स्तर पर पंचायत चुनाव कराए जाने का प्रविधान किया गया।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 05 Sep 2021 11:49 PM (IST) Updated:Sun, 05 Sep 2021 11:49 PM (IST)
सुपौल : तब चुनाव में नहीं होता था तामझाम ना झूठा प्रचार
सुपौल : तब चुनाव में नहीं होता था तामझाम ना झूठा प्रचार

सुपौल। आजादी के बाद संविधान के निर्माण में ग्रामीण स्तर पर पंचायत चुनाव कराए जाने का प्रविधान किया गया। बाद में ग्रामीण स्तर पर सरकार के गठन करने हेतु संविधान में संशोधन कर उसके दायरे को समय-समय पर विस्तार भी किया गया। लेकिन आज के बदलते चुनाव के इस दौर में तामझाम अत्यधिक है। लेकिन उस वक्त के चुनाव में न कोई तामझाम न झूठा प्रचार-प्रसार। तबके चुनाव में मुखिया व सरपंच के पद ही मुख्य रूप से हुआ करते थे। हर समाज में एक प्रबुद्ध लोग हुआ करते थे वही लोग तय करते थे किसे पंचायत का मुखिया व सरपंच बनाया जाना है। उनकी बातों को मान लोग चुनाव कर लिया करते थे। पूर्व के चुनाव की तस्वीर पेश करते हुए 87 बर्षीय बुजुर्ग पूर्व मुखिया संपत राज जैन बताते हैं कि उस वक्त प्रतापगंज को प्रखंड का दर्जा नहीं मिला था। तब राघोपुर प्रखंड के अधीन प्रतापगंज प्रखंड हुआ करता था। प्रतापगंज प्रखंड बनने के साथ ही पंचायतों का परिसीमन कर छातापुर प्रखंड की कुछ पंचायत व राघोपुर प्रखंड की कुछ पंचायतों को मिलाकर नया प्रखंड का निर्माण हुआ। परिसीमन के बाद कुल 9 पंचायत बनाई गई। परिसीमन में इतनी पंचायत बनाए गई। इससे पूर्व इतनी पंचायत नहीं थी। समय बीतता गया, चुनाव की परिपाटी भी बदलती गई। पहले के चुनाव में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं था। आरक्षण व पंचायतों के बढ़ने से सत्ता का विकेंद्रीकरण भी हुआ है। विकेंद्रीकरण में कुछ बुराईयां हावी होती जा रही है। पहले के दौर में पंचायती प्रथा बहुत ही मजबूत स्थिति में हुआ करती थी। उस वक्त भी जनप्रतिनिधि सामाजिक शांति व गांव के विकास को ले चितित रहा करते थे जो आज भी हैं, लेकिन आज के जनप्रतिनिधियों को विकास के नाम पर पैसा बहुत मिलता है तो चुनाव जीतने के लिए उन्हें तामझाम भी बड़े-बड़े करने पड़ते हैं। परिणामस्वरूप आज के दौर का चुनावी जीत पश्चात भ्रष्टाचार भी सिर चढ़कर बोलता है।

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