उदासीनता के सागर में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे तालाब

पुराने जमाने के लोगों में आज की पीढ़ी से अधिक वैज्ञानिक सोच थी। इसलिए उन्होंने पोखर व तालाबों को बचाने का काम किया।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 19 Apr 2021 10:03 PM (IST) Updated:Mon, 19 Apr 2021 10:03 PM (IST)
उदासीनता के सागर में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे तालाब
उदासीनता के सागर में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे तालाब

सुपौल। पुराने जमाने के लोगों में आज की पीढ़ी से अधिक वैज्ञानिक सोच थी। इसलिए उन्होंने पोखर व तालाबों को बचाने का काम किया। लेकिन आज का सभ्य समाज आधुनिकता की अंधी दौड़ में पड़कर प्रकृति पर ही वार शुरू कर दिया है। पोखर व तालाबों पर अतिक्रमण करके उनका नामोनिशान मिटा दिया है या जो कुछ बचा भी है तो वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। लेकिन इंसान को यह समझ नहीं आ रहा है कि पानी बैंक बैलेंस की तरह है। इसलिए इसके अंधाधुंध दोहन की कोशिश नहीं करनी चाहिए। जिस प्रकार बैंक खाते से पैसा निकालते रहेंगे और जमा नहीं करेंगे तो एक दिन वह खाता खाली हो जाएगा। उसी प्रकार धरती से पानी निकालते रहेंगे और उसमें संचय का उपाय नहीं करेंगे तो उसमें भी पानी खत्म हो जाएगा। पोखर व तालाब मानव की धार्मिक जरूरतों को पूरा करने के अलावा जल संचय का भी एक महत्वपूर्ण साधन है। बावजूद इसके इंसान पोखरों और तालाबों पर कब्जा करता चला जा रहा है, जिसका असर यह हो रहा है कि कोशी के कोख में भी जलस्तर नीचे खिसकता जा रहा है। धरती की कोख से पानी खींच तो रहे हैं, मगर डाल नहीं रहे। सूखते व सिकुड़ते तालाब आने वाले समय के लिये खतरे की घंटी बजा रही है। वैसे व्यक्तिगत तालाबों की स्थिति तो थोड़ी ठीक कही जा सकती है, लेकिन जिसको सामाजिक मान्यता सी मिल गई वैसे पोखर दिन व दिन सिकुड़ने लगे। या यूं कहे की पोखरों की स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होने लगी। सरकारी स्तर पर उदासीनता व जन सामान्य में जागरूकता के अभाव से तालाबों का अस्तित्व खतरे में है। क्षेत्र के विभिन्न ग्राम पंचायतों में अब तालाब कूड़े-करकट व जलकुम्भी के जंगल से घिरते जा रहे हैं तो अधिकांश जगह लापरवाही के चलते तालाब सूखे पड़े हैं। करजाईन पंचायत में स्थित प्रसिद्ध राजा पोखर एवं इसी पंचायत के जगदीशपुर गांव में स्थित प्राचीन तालाब उपेक्षा का शिकार होकर रह गया है! क्षेत्र के अन्य तालाबों की हालत भी ऐसी ही है। कुछ पानी के अभाव में सूख रहे हैं तो कहीं ये तालाब अतिक्रमण के शिकार हैं। ग्रामीणों की मानें तो सरकारी स्तर पर संचालित तालाब तो कई हैं। लेकिन इन तालाबों की सुध लेने की फुर्सत किसी को नहीं है। विभागीय अधिकारी तालाबों की सफाई व्यवस्था को लेकर गंभीर नहीं है। क्षेत्र के लोगों से जब इन तालाबों के अस्तित्व को लेकर बात की तो इन्होंने दैनिक जागरण के अभियान की सराहना करते हुए कहा कि गिरता जल स्तर चिता का विषय है। इसे जल संचय से ही रोका जा सकता है। जिसके लिये गांव में सफाई युक्त तालाब का होना जरूरी है। ग्रामीणों ने तालाबों की दुर्दशा पर चिता व्यक्त करते हुए तालाबों के जीर्णोद्धार की मांग की है।

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