प्रभार में परियोजना, अधर में कुपोषण से जंग

जिले में कई बाल विकास परियोजना प्रभार के अधिकारियों द्वारा संचालित हो रहा है जिससे कुपोषण से जंग अधर में नजर आता है। यहां 11 परियोजनाओं में से पांच प्रभार में संचालित हो रहे हैं। और तो और तीन परियोजनाएं ऐसे अधिकारियों के प्रभार में हैं जो इस विभाग के अधिकारी नहीं है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 23 Sep 2020 09:43 PM (IST) Updated:Wed, 23 Sep 2020 09:43 PM (IST)
प्रभार में परियोजना, अधर में कुपोषण से जंग
प्रभार में परियोजना, अधर में कुपोषण से जंग

सुपौल। जिले में कई बाल विकास परियोजना प्रभार के अधिकारियों द्वारा संचालित हो रहा है जिससे कुपोषण से जंग अधर में नजर आता है। यहां 11 परियोजनाओं में से पांच प्रभार में संचालित हो रहे हैं। और तो और, तीन परियोजनाएं ऐसे अधिकारियों के प्रभार में हैं जो इस विभाग के अधिकारी नहीं है। एक अधिकारी को एक से अधिक जगहों का प्रभार देकर परियोजना का कार्य को संचालित किया जा रहा है।

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70 कर्मियों की जगह कार्यरत हैं मात्र नौ

जिले में 11 परियोजना के लिए 11 सीडीपीओ का पद सृजित है। इसमें किशनपुर, पिपरा, सरायगढ़, राघोपुर तथा मरौना परियोजना प्रभार में संचालित हो रही है। प्रभार वाले परियोजना सरायगढ़, राघोपुर तथा मरौना का प्रभार वैसे अधिकारियों के जिम्मे है जो विभागीय नहीं हैं। इन तीनों परियोजनाओं को संबंधित वीडीओ देख रहे हैं जबकि किशनपुर का प्रभार बसंतपुर के सीडीपीओ तथा पिपरा का प्रभार सुपौल के सीडीपीओ के जिम्मे है। इसके अलावा कार्यालय कर्मियों का भी इन परियोजनाओं में अकाल पड़ा हुआ है। जिले के इन सभी परियोजनाओं में अन्य 70 पद सृजित हैं, जिसमें से महज 09 कर्मी ही उपलब्ध हैं। इसके अलावा आदेशपाल की भी कमी है। जिले के इस परियोजना को 15 आदेशपाल का पद सृजित है जिसमें मात्र एक आदेशपाल कार्यरत है। कर्मियों की कमी के कारण दैनिक कार्य निपटाने में भी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। खासकर विभागीय अधिकारी नहीं होने के कारण केंद्र का निरीक्षण भी सही ढंग से नहीं हो पाता है। ऐसे में कुपोषण के खिलाफ जारी में फतह पाने की संभावना कम ही नजर आती है।

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दिन-व-दिन बढ़ती जा रही है कुपोषित बच्चों की संख्या

दूसरी ओर आलम है कि जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या घटने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। एक सर्वे के मुताबिक जहां 2018 में कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या 8625 थी वही 2019 में यह बढ़कर 9078 हो गई। चालू वित्तीय वर्ष में ऐसे बच्चों के सर्वे का कार्य चल ही रहा है परंतु दो वर्षों के आंकड़े इस बात को बताने के लिए काफी है कि सरकार की यह महत्वपूर्ण योजना भी कुपोषण को दूर भगाने में सफल नहीं हो पा रही है।

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उठ रहे सवाल

बच्चों को स्कूल पूर्व शिक्षा देने के साथ-साथ उन्हें कुपोषण से बचाने के लिए आंगनबाड़ी संचालित हो रही है। इसके लिए सरकार प्रतिमाह करोड़ों रुपये खर्च भी कर रही है। ऐसे में तो सवाल उठना लाजमी है कि इतनी बड़ी जिम्मेवारी का वहन करने वाले विभाग में जब अधिकारी और कर्मियों का अकाल पड़ा हो तो कुपोषण मुक्त बचपन और कुपोषण मुक्त समाज का निर्माण कैसे हो पाएगा।

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