सुपौल : 10 हजार क्यूसेक की क्षमता वाली नहर में छोड़ा जा रहा 3600 क्यूसेक पानी
कुसहा-त्रासदी के बाद रेगिस्तान में तब्दील कृषि योग्य भूमि को नहरों के जाल रहने के बावजूद पानी नसीब नहीं हो पा रहा है।
सुपौल। कुसहा-त्रासदी के बाद रेगिस्तान में तब्दील कृषि योग्य भूमि को नहरों के जाल रहने के बावजूद पानी नसीब नहीं हो पा रहा है। जबकि धान जैसी मुख्य फसल को रोपाई के बाद लगातार पानी चाहिए। कोसी और पूर्णिया प्रमंडल के खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए नहरों का जाल बिछा हुआ है। इन नहरों को अंतिम छोर तक पानी पहुंचाने को लेकर जलवाहक का काम दस हजार क्यूसेक क्षमता वाली पूर्वी कोसी मुख्य नहर करती है। यह सिचाई प्रमंडल वीरपुर के जिम्मे है। दोनों प्रमंडल की नहरों के अंतिम छोर तक पानी पहुंचाने की जवाबदेही मुख्य अभियंता सिचाई सृजन सहरसा की है, लेकिन जब पूर्वी कोसी मुख्य नहर में ही पानी क्षमतानुसार नहीं रहेगा तो खेतों तक पानी कैसे पहुंच पाएगा। दस हजार क्यूसेक क्षमता वाली पूर्वी कोसी मुख्य नहर में कोसी बराज के हेड रेगुलेटिग से इतना ही पानी दिया जाता है कि मुख्य नहर की तलहटी दिखती है जबकि सिचाई प्रमंडल वीरपुर कागजी खानापूर्ति करते हुए 3600 क्यूसेक जलस्त्राव दिखाता है। इसलिए खेतों तक जाने वाली सभी छोटी-बड़ी नहरें सूखी पड़ी हैं। सिचाई प्रमंडल वीरपुर की विडंबना देखिए जब वह अपने कार्यक्षेत्र की मुख्य नहर समेत अन्य सभी प्रणालियों में पटवन हेतु पानी नहीं पहुंचा सकता तो अनुमान किया जा सकता है कि कैसे दोनों प्रमंडलों के खेतों तक पानी जाता होगा। एक तो सिचाई सृजन में सभी तबके के अभियंताओं का टोटा भी है। इस कारण जवाबदेह वरीय अभियंता कागजी खानापूर्ति करते हुए किसानों के अच्छी पैदावार के साथ खिलवाड़ करते हुए बेहाल कर रखा हुआ है। नहरों के सस्ते पटवन के लिए किसानों के बीच हाहाकार है लेकिन सूखी नहरें देखकर मायूसी का माहौल है।