ईश्वरीय तिथि है अक्षय तृतीया, शारीरिक दूरी का पालन करते हुए करें दान-पुण्य

संवाद सूत्र करजाईन बाजार (सुपौल) जिसका कभी नाश नहीं होता है या जो स्थाई है वही अक्षय क

By JagranEdited By: Publish:Thu, 13 May 2021 05:57 PM (IST) Updated:Thu, 13 May 2021 05:57 PM (IST)
ईश्वरीय तिथि है अक्षय तृतीया, शारीरिक दूरी का पालन करते हुए करें दान-पुण्य
ईश्वरीय तिथि है अक्षय तृतीया, शारीरिक दूरी का पालन करते हुए करें दान-पुण्य

संवाद सूत्र, करजाईन बाजार (सुपौल): जिसका कभी नाश नहीं होता है या जो स्थाई है, वही अक्षय कहलाता है। स्थाई वही रह सकता है जो सर्वदा सत्य है। सत्य केवल परमपिता परमेश्वर ही है, जो अक्षय, अखंड व सर्वव्यापक है। अक्षय तृतीया की तिथि ईश्वरीय तिथि है। इस बार यह तिथि 14 मई यानि शुक्रवार को है। अक्षय तृतीया का महात्म्य बताते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि अक्षय तृतीया का दिन परशुरामजी का जन्मदिन होने के कारण परशुराम तिथि भी कहलाती हैं। परशुरामजी की गिनती चिरंजीवी महात्माओं में की जाती है। इसलिए इस तिथि को चिरंजीवी तिथि भी कहते हैं। उन्होंने कहा कि भारतवर्ष धर्म-संस्कृति प्रधान देश है। हमारी संस्कृति में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व है। क्योंकि व्रत एवं त्योहार नई प्रेरणा एवं स्फूर्ति का परिपोषण करते हैं। भारतीय मनीषियों द्वारा व्रत-पर्वों के आयोजन का उद्देश्य व्यक्ति एवं समाज को पथभ्रष्ट होने से बचाना है। आचार्य ने बताया कि अक्षय तृतीया तिथि को आखा तृतीया अथवा आखातीज भी कहते हैं। साथ ही अक्षय तृतीया तिथि को ही वृंदावन में श्री बिहारीजी के चरणों के दर्शन वर्ष में एक बार होते हैं। उन्होंने बताया कि भारतीय लोकमानस सदैव से ऋतु पर्व मनाता आ रहा है। अक्षय तृतीया का पर्व बसंत और ग्रीष्म के संधिकाल का महोत्सव है। इस तिथि में गंगा स्नान, पितरों का तिल व जल से तर्पण और पिडदान भी पूर्ण विश्वास से किया जाता है, जिसका फल भी अक्षय होता है। इस तिथि की गणना युगादि तिथियों में होती है। क्योंकि सतयुग का कल्पभेद से त्रेतायुग का आरंभ इसी तिथि से हुआ है।

------------------------------------ दान-पुण्य से मिलती है आध्यात्मिक ऊर्जा

आचार्य ने बताया कि अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे कलश, पंखे, खरांव, जूता, छाता, गौ, भूमि, स्वर्णपात्र आदि का दान पुण्यकारी माना गया है। साथ ही उन्होंने श्रद्धालुओं से अपील की कि लॉकडाउन का पालन करते हुए शारीरिक दूरी बनाकर ही दान-पुण्य करें। इस प्रकार के दान के पीछे यह लोक विश्वास है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा वे समस्त वस्तुएं स्वर्ग में गर्मी की ऋतु में प्राप्त होगी। साथ ही अक्षय तिथि का पर्व मनाने से आध्यात्मिक ऊर्जा की प्राप्ति भी निश्चित होती है।

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