दुर्गा की आराधना से पूर्ण होती है मनोकामना : आचार्य
संवाद सूत्र करजाईन बाजार (सुपौल) सनातन धर्म के अद्भुत ग्रंथ श्रीदुर्गासप्तशती के कलौ चंडी वि
संवाद सूत्र, करजाईन बाजार (सुपौल): सनातन धर्म के अद्भुत ग्रंथ श्रीदुर्गासप्तशती के ''कलौ चंडी विनायकौ'' के अनुसार कलियुग में चंडी दुर्गा एवं विनायक-गणेश जी की प्रधानता सिद्ध है। सर्वप्रथम दुर्गाजी का ही वर्णन है। वस्तुत: जगतजननी माता दुर्गा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थ को एक साथ प्रदान करने वाली है। अखिल ब्रह्मांडनायिका मातेश्वरी श्री दुर्गा परमेश्वरी ही उन प्रधान शक्तियों में से एक है, जिनको समय-समय पर अपनी आवश्यकता अनुसार प्रकट कर परब्रह्म परमात्मा ने विश्व कल्याण किया है। श्रद्धा-भक्ति पूर्वक इनकी आराधना करने से अल्प प्रयास से ही भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है। चैती नवरात्र के मौके पर दुर्गा सप्तशती एवं स्तोत्रों के महात्म्य पर प्रकाश डालते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि परमात्मा की आदी शक्ति दुर्गा की उत्पत्ति एवं महात्म्य का वर्णन महर्षि वेदव्यास रचित मार्कण्डेय पुराण के सार्वणिक-मन्वन्तर कथा के अन्तर्गत देवी महात्म्य में किया गया है। वहीं, अंश जगत प्रसिद्ध श्री दुर्गा सप्तशती के नाम से प्रत्येक आस्तिकजन के मानस में कामधेनु के समान व्याप्त है। इसलिए किसी प्रकार की महामारी, प्रलय, विपत्ति, संकट, उपद्रव होने पर सभी को एकमात्र इसी का आश्रय ग्रहण करना चाहिए। इस दुर्गासप्तशती में मातेश्वरी श्री दुर्गा का चरित्र-चित्रण, कार्य-कौशल एवं देवी महात्म्य का वर्णन सात सौ श्लोकों में किया गया है। इसके पाठ-पूजन एवं अनुष्ठान-आराधना द्वारा देवी की कृपा से मनुष्य को सारी सिद्धियां स्वत: प्राप्त हो जाती है। दुर्गासप्तशती ग्रंथ में भगवती की महिमा के साथ-साथ बड़े-बड़े गूढ़ साधन एवं रहस्य भरे पड़े हैं। कर्म, भक्ति और ज्ञान की त्रिविध मंदाकिनी बहाने वाला श्री दुर्गासप्तशती भक्तों के लिए वान्छाकल्पतरू है। अत: ऐसे ग्रंथों का पाठ एवं श्रवण प्रत्येक मानव का परम कर्तव्य एवं परम धर्म भी है।