सुपौल में साहस और समर्पण से कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहीं डॉ. रुकैया

योद्धा के रूप में कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहीं डॉ. रुकैया यासमीन ने तो यह साबित कर दिया है कि महामारी चाहे जितनी खतरनाक हो लेकिन इंसानियत अभी जिदा है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 19 Jun 2021 06:24 PM (IST) Updated:Sat, 19 Jun 2021 06:24 PM (IST)
सुपौल में साहस और समर्पण से कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहीं डॉ. रुकैया
सुपौल में साहस और समर्पण से कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहीं डॉ. रुकैया

सुपौल। कोरोना को योद्धाओं ने अपने समर्पण, साहस और जुनून के बूते एक बार फिर से घुटनों के बल आने को मजबूर कर दिया है। योद्धा के रूप में कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहीं डॉ. रुकैया यासमीन ने तो यह साबित कर दिया है कि महामारी चाहे जितनी खतरनाक हो, लेकिन इंसानियत अभी जिदा है।

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, प्रतापगंज की डॉ. रुकैया ने कोरोना की पहली लहर में क्वारंटाइन मरीजों की सेवा में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। वहीं दूसरी लहर में उनका सेवाभाव देखने लायक था। वह होम आइसोलेशन के मरीजों को देखने ससमय घर से निकलतीं और उनकी सेवा में जुट जाती। फिलहाल वे पूरे जोश के साथ टीका एक्सप्रेस की जिम्मेदारी संभाली हुई है। पिछले माह तो वे खुद भी संक्रमित हो गई थी, लेकिन उन्होंने कोरोना को मात देकर एक नए जज्बे के साथ फिर से ड्यूटी पर लौटीं। वे जिस प्रकार अपने साहस से कोरोना को हराया यह योद्धा होने की असली निशानी है। डॉ. रुकैया कहती हैं कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। अपनों से अधिक मुझे मरीजों की चिता है। मरीजों के इलाज के लिए हर संभव प्रयास करती हूं। मरीजों की सेवा करना ही मेरा धर्म और कर्तव्य दोनों हैं। कहा कि पहली बार जब कोरोना आया और उसके चलते जो परिस्थितियां पैदा हुई उसे देख मुझे एक जवाबदेही व जिम्मेदारी का एहसास हुआ। अंदर से एक मजबूत एहसास हुआ कि मरीजों की सेवा करनी है, जो होगा देखा जाएगा। तब से लेकर अब तक बिना छुट्टी लिए कोविड ड्यूटी कर रही हूं। कहा कि कोरोना को हराना उतना मुश्किल नहीं है जितना दिख रहा है। जरूरत है सही मायने में लोगों को जागरूक होने की। पिछले साल भी हमसबों ने कोरोना को हराया था और इस बार भी यह हारने की स्थिति में आ गई है।

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