सिवान में आज मनेगी देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद की पुण्यतिथि
भारत के इस नीलगगन पर दीप्ति नक्षत्र हजारों हैं उसमें से सूर्य-चंद्र सा आलोकित राजेंद्र बाबू हमारे हैं। उस साधु पुरुष महिमा का हम कैसे गुणगान करें जन -जन की अभिलाषा बाबू पुन अवतार लें। हीरा स्मारिका की यह पंक्ति बाबू की पुण्यतिथि के अवसर पर सुमन समर्पण का काम करती हैं। रविवार को उनकी पुण्यतिथि है।
सिवान । भारत के इस नीलगगन पर दीप्ति नक्षत्र हजारों हैं, उसमें से सूर्य-चंद्र सा आलोकित राजेंद्र बाबू हमारे हैं। उस साधु पुरुष महिमा का हम कैसे गुणगान करें, जन -जन की अभिलाषा बाबू पुन: अवतार लें। हीरा स्मारिका की यह पंक्ति बाबू की पुण्यतिथि के अवसर पर सुमन समर्पण का काम करती हैं। रविवार को उनकी पुण्यतिथि है। राजेन बाबू का जन्म 3 दिसंबर 1884 को जीरादेई में हुआ। अपने को इतिहास में अमर कर बाबू 28 फरवरी 1963 को इस लोक को त्याग दिए। डॉ. राजेंद्र प्रसाद आधुनिक भारत के प्रमुख निर्माताओं में से एक थे। वह एक अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी, एक प्रख्यात विधिवेत्ता, एक वाक्पटु नेता, एक सुयोग्य प्रशासक, परमसंत व मानवतावादी नेता थे। महात्मा गांधी के पक्के अनुयायी होने के साथ-साथ वह भारतीय संस्कृति, सभ्यता की सभी उत्तम विशेषताओं से युक्त थे। वे बौद्ध दर्शन से भी प्रभावित थे तथा बोधगया के मंदिर विकास व समस्याओं की समाधान में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। संविधान सभा के अध्यक्ष तथा तत्पश्चात लगातार दो कार्यकाल तक भारत के राष्ट्रपति के रूप में देशरत्न और हमारे राष्ट्रीय जीवन व शासन व्यवस्था पर अपने व्यक्तित्व की अमिट छाप छोड़ते हुए महान त्यागी, संतोषी एवं महान योगी के रूप में जीवन को संभालते हुए भगवान बुद्ध की जीवन लीला का अधिकांश रूप अपने में समाहित करने में सक्षम दिखे। बाबू भगवान कृष्ण के भी परम भक्त थे। उनकी पैतृक संपत्ति के प्रबंधक बच्चा सिंह, प्रफुल्ल चंद वर्मा जो राजेंद्र बाबू के सानिध्य पा चुके हैं, ने बताया कि बाबू हम लोगों के लिए भगवान श्रीराम थे। आजीवन उनके आदर्शों पर चल देश की सेवा किया, इसलिए जीरादेई में कोई उनका नाम रखकर नहीं पुकारता है, सभी बाबू ही कहते हैं। डॉ. राजेंद्र प्रसाद अपने आप में उच्चकोटि के साहित्यकार थे। हिदी के अलावा वह संस्कृत, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी व भोजपुरी के भी ज्ञाता थे। कुछ समाचार पत्रों के संपादन करने के अतिरिक्त उन्होंने अंग्रेजी व हिदी में कई पुस्तकें भी लिखी थीं। 1920 के दशक के आरंभिक वर्षों में हिदी साप्ताहिक देश और अंग्रेजी पाक्षिक सर्च लाइट का संपादन किया। वास्तव में बाबू बहुमुखी प्रतिभा के धनी व अपरिमेय मूल्य के रत्न थे। फिर भी इनके पुण्यतिथि पर प्रशासन द्वारा कोई कार्यक्रम नहीं करने से ग्रामीणों में क्षोभ रहता है।