वानिकी को अपनाकर की जा सकती है पर्यावरण की रक्षा

भूमि उत्पादन प्रणाली की परिस्थिति की सुरक्षा के लिए सबसे किफायती टिकाऊ और स्थिर विकल्प वानिकी को बताया गया है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 04 Jul 2020 10:46 PM (IST) Updated:Sun, 05 Jul 2020 06:14 AM (IST)
वानिकी को अपनाकर की जा सकती है पर्यावरण की रक्षा
वानिकी को अपनाकर की जा सकती है पर्यावरण की रक्षा

जासं, सिवान : आज जलवायु परिवर्तन हो रहा है और ऐसी अवस्था में ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने जरूरी हैं व कृषि वानिकी को अपनाकर ही पर्यावरण की रक्षा की जा सकती है। भूमि उत्पादन प्रणाली की परिस्थिति की सुरक्षा के लिए सबसे किफायती, टिकाऊ और स्थिर विकल्प वानिकी को बताया गया है। हम सभी का फर्ज है कि पर्यावरण की रक्षा करें ताकि आने वाली पीढ़ी को सबकुछ अच्छी स्थिति में मिल सके। प्राचीन काल में पौधों की पत्तियों, जड़ों एवं मुलकन्दों को अपने आहार के रूप में, वृक्षों की छाल एवं पत्तियों से अपना तन ढ़कने में किया करते थे। उस समय जनसंख्या बहुत कम रहने के कारण आवश्यकताएं भी सीमित थी एवं वनों को उपयोग नगण्य मात्र था, अत: वन-प्रबंधन की आवश्यकता महसूस नहीं की गई। परंतु दिनों बढ़ती आबादी व विभिन्न विकास कार्यों के लिए वनों पर निर्भरता से, वनों के ऊपर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा है, इससे वनों के प्रबंधन की आवश्यकता भी महसूस की जाने लगी है।

डीएवी पीजी कॉलेज के वानिकी विभागाध्यक्ष डॉ. आशुतोष शरण ने बताया कि वनों का सृजन, प्रबंधन, उपयोग एवं संरक्षण की विधा ही वानिकी है। औद्योगिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी के विस्तार के बावजूद आम नागरिकों की समस्याएं कम नहीं हुई हैं। कृषि संबंधी विपदाओं में कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ की समस्याएं पहले से अधिक विकराल रूप धारण करने लगी है। मौसम चक्र में परिवर्तन के कारण बढ़ती गर्मी, कम बरसात, अलनीनों प्रभाव, प्रदूषित पर्यावरण, धरती के तापमान में वृद्धि, अम्लीय वर्षा, ओजोन परत में बढ़ता छिद्र तथा बिजली-पानी के संकट ने देश के सामने विकट चुनौतियां उत्पन्न की है। इसमें कमी लाने का सबसे बेहतर तरीका पौधारोपण है। लोगों को पौधारोपण के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए सबसे पहले तो हमें लोगों को जागरूक करना होगा। साथ ही जमीन की उपलब्धता भी अनिवार्य है।

जेडए इस्लामिया पीजी कॉलेज के प्राचार्य सह विभागध्यक्ष ने बताया कि वानिकी को बढ़ावा देने के लिए सबसे बड़ी विसंगति जलवायु कारक है। उसके बाद मृदा कारक है, इसमें जिन जगहों पर पौधारोपण किया जा रहा है, क्या उस जगह की मिट्टी पौधे के लिए उपयुक्त है या नहीं इसका भी ध्यान देना होगा। इसके साथ ही स्थानीय उपयोगिता को ध्यान में रखना होगा। कृषि वानिकी को प्रोत्साहित करने से किसानों की आमदनी तो बढ़ेगी ही, पर्यावरण असंतुलन में भी कमी लाई जा सकती है। इससे वर्षा अच्छी हो सकती है और किसानों को काफी सुविधा भी होगी। पर्यावरण को संतुलित करने के लिए पौधारोपण करना होगा।

राजा सिंह कॉलेज के प्राचार्य डॉ. उदय शंकर पांडेय ने बताया कि आज के समय में पर्यावरण का ध्यान रखना हर किसी की जिम्मेवारी और अधिकार होना चाहिए। खासकर आने वाले पीढि़यों के लिए पर्यावरण संरक्षण बहुत जरूरी है। पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया हुआ है। इस समस्या से निजात पाने के लिए वैश्विक स्तर पर एक साथ सम्यक प्रयास करने की जरूरत है। पेड़ ऑक्सीजन का सबसे बड़ा स्त्रोत है और हम इन्हें उगाने के बजाय काटने पर ज्यादा जोर देते हैं। पौधारोपण की तुलना में पौधों को काटने की संख्या कई गुणा बढ़ गया है। असंवेदनशील एवं तात्कालिक विकास की भूख ने हमें पेड़-पौधों से रिश्ता कम कर दिया है। हमें नियमित रूप से व्यक्तिगत, सामाजिक एवं सरकारी स्तर पर सामाजिक वानिकी एवं कृषि वानिकी हेतु प्रयासरत होने की जरूरत है।

chat bot
आपका साथी