जितिया व्रत के पीछे महाभारत की कथा, पुत्र के दीर्घायु होने के लिए माताएं करतीं यह व्रत

सीतामढ़ी। हिदू धर्म में संतान प्राप्ति व पुत्र के दीर्घायु होने तथा सुखमय जीवन के लिए माताओं द्वारा किए जाने व्रत में से एक प्रमुख पर्व जीवित्पुत्रिका अथवा जितिया व्रत है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 27 Sep 2021 12:19 AM (IST) Updated:Mon, 27 Sep 2021 12:19 AM (IST)
जितिया व्रत के पीछे महाभारत की कथा, पुत्र के दीर्घायु होने के लिए माताएं करतीं यह व्रत
जितिया व्रत के पीछे महाभारत की कथा, पुत्र के दीर्घायु होने के लिए माताएं करतीं यह व्रत

सीतामढ़ी। हिदू धर्म में संतान प्राप्ति व पुत्र के दीर्घायु होने तथा सुखमय जीवन के लिए माताओं द्वारा किए जाने व्रत में से एक प्रमुख पर्व जीवित्पुत्रिका अथवा जितिया व्रत है। हिदी पंचांग के अनुसार, जितिया व्रत हर साल आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान के दीर्घायु, आरोग्य और सुखमय जीवन के लिए निर्जला व्रत रखकर भगवान की पूजा-अर्चना करती हैं। जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण अगले दिन यानी नवमी तिथि को किया जाता है। जितिया व्रत भी छठ पूजा की तरह नहाए खाए से आरंभ होता है। यह व्रत मिथिला की माताएं बड़ी श्रद्धा-भक्ति से मनाती हैं। इस वर्ष यह व्रत 28-29 सितंबर को रखा जाएगा। पंडित पारसनाथ आचार्य के अनुसार, महाभारत युद्ध के दौरान चारों तरफ यह खबर फैल गई थी कि अश्वत्थामा मारा गया यह सुनकर उनके पिता द्रोणाचार्य ने पुत्र शोक में अपने अस्त्र डाल दिए तब द्रौपदी के भाई ने उनका वध कर दिया। पिता की मृत्यु के बाद अश्वत्थामा के मन में प्रतिशोध की ज्वाला भड़क रही थी। पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए वे रात के अंधेरे में पांडवों के शिविर में जा पहुंचे और उन्होंने पांडव समझ कर पांच लोगों का वध कर दिया। लेकिन, पांडव जीवित थे। जिस कारण पांडवों को अत्यधिक क्रोध आ गया। अर्जुन ने अश्वत्थामा से उसकी मणि छीन ली थी। इसका बदला लेने के लिए अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को मारने का षड्यंत्र रच डाला। उन्होंने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। भगवान श्रीकृष्ण इस बात से भली-भांति परिचित थे कि ब्रह्मास्त्र को रोक पाना असंभव होगा। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल गर्भ में पल रहे शिशु को दिया। जिसके के कारण उत्तरा के गर्भ में पल रहा शिशु पुनर्जीवित हो गया। उसके पुनर्जीवित हो जाने के कारण इसका नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा। और तब से यह व्रत मनाया जाता है। उधर, डुमरा कैलाशपुरी के रहनेवाले आचार्य शिवशंकर झा ने बताया कि उदय व्रत बुधवार 29 तारीख को व्रत एवं गुरुवार 30 तारीख को सुबह 6:30 पर व्रति पारण करेंगी। उन्होंने यह भी बताया कि 28 सितंबर मंगल को तिरहुत क्षेत्र में व्रती अन्न छोड फलाहार, दूध आदि का सेवन करें तो पूर्ण अष्टमी व्रत हो जाएगा। मंगल को व्रत करनेवाली व्रति बुधवार को सायं 5:30 पर पारण करें।

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