अच्छी मजदूरी की चाहत में पलायन कर रहे लोग

लोगों से बाहर न जाने की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व जिलाधिकारी अभिलाषा कुमारी शर्मा की अपील और सबको यहीं काम देने के आश्वासन के बावजूद भगदड़ मची हुई है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 05 Jun 2020 11:33 PM (IST) Updated:Sat, 06 Jun 2020 06:18 AM (IST)
अच्छी मजदूरी की चाहत में पलायन कर रहे लोग
अच्छी मजदूरी की चाहत में पलायन कर रहे लोग

सीतामढ़ी। लोगों से बाहर न जाने की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व जिलाधिकारी अभिलाषा कुमारी शर्मा की अपील और सबको यहीं काम देने के आश्वासन के बावजूद भगदड़ मची हुई है। उन्हें मुख्यमंत्री के वायदे पर भरोसा से इसलिए भी कोई वास्ता नहीं क्योंकि उनके लायक यहां काम नहीं है या फिर उसी काम के लिए उन्हें यहां जो पारिश्रमिक मिलेगा वह तुलनात्मक रूप से कम और उनके गुजारे के लिए अपर्याप्त है। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुरूप उन्हें काम दिए जाने की प्रक्रिया शुरू तो हुई है लेकिन सबको काम मिलने में अभी वक्त लगेगा। करीब एक लाख से अधिक प्रवासी जिले में आए हैं और अबतक पांच हजार से अधिक लोग लौट चुके हैं। बड़ी संख्या में लोग लौटने की तैयारी में भी हैं। उनके मालिकों का बुलावा आ रहा है, आने का खर्च भी देने को कह रहे हैं। लेकिन, उन्हें बस व ट्रेन से गंतव्य के लिए टिकट नहीं मिल पा रहा। प्रवासियों से पूछा गया कि क्या उन्हें मुख्यमंत्री के वायदे पर उन्हें भरोसा नहीं है तो उनका जवाब था-हम सरकार की बातों पर नहीं जाते, क्योंकि कहने को उसकी बहुत सारी योजनाएं हैं मगर लाभ सबको कहां मिल पाता है। वहां तीन माह की कमाई से सालभर का गुजारा

सहियारा थाने के मुसहरवा गांव के रवींद्र कुमार यादव, मेजरगंज थाने के सोनौल निवासी सत्येंद्र दास, सोनबरसा थाने के भूतही निवासी विभूति नुनिया का कहना है कि यहां न तो काम है न मजदूरों की कोई कद्र। बाहर अच्छी मजदूरी मिलती है और तीन माह में सालभर की कमाई भी हो जाती है। हमें हमारे मालिकों का बुलावा आया है। पंजाब के लिए सीधी रेलगाड़ी नहीं मिल रही तो दिल्ली जाउंगा। वहां से हमारा मालिक हमें अपनी सवारी से लुधियाना बुला लेगा। इन लोगों ने यह भी कहा कि पांच साल पहले मेरे बाप-दादा के पास राशन कार्ड था तो कोटा में राशन मिलता था। अब नहीं मिल रहा है। हम लोगों का राशन कार्ड नहीं बन पा रहा है। यहां महंगाई भी बहुत है तो जीएंगे कैसे? कोरोना काल में ही लौटकर आए लेकिन अब गुजारा मुश्किल हो गया है। पेट नहीं भर पाता। पंजाब में रोपनी का काम चल जाता है। एक बीघा जमीन पर रोपनी करने पर चार हजार रुपये मिलते हैं। चार-पांच आदमी का ग्रुप होता है। रोपने में दो से तीन दिन समय लगता है। ठेके पर काम लेते हैं। तीन महीने के लिए जाते हैं और काम बढि़या मिलने पर 20-25 हजार रुपये मिल गया नहीं तो 10 से 15 हजार रुपये जरूर लाते हैं। ग्रुप में काम करने वालों की संख्या वहां बहुत ज्यादा होती है। घूम-घूमकर काम खोजना होता है किसान के यहां, चार-पांच दिन बैठना भी पड़ जाता है। बावजूद तीन महीने की कमाई से सालभर का गुजारा हो जाता है।

------------- इनसेट सीधी ट्रेनें नहीं फिर भी कटे 15 दिन में 655 टिकट 22 मई से टिकटों की बुकिग शुरू है तब से 655 टिकट कटे हैं। उनसे रेलवे को 4 लाख 81 हजार रुपये आय हुए। अधिकतर टिकट लुधियाना, हरियाणा व दिल्ली के लिए कटे। ये तीनों वहीं शहर हैं जहां से मजदूर कोरोना संकट में भागकर आए थे। बीते दो दिनों में 200 से ज्यादा टिकट के लिए दिल्ली और पंजाब के लिए कटे हैं। अधिकतर लोगों को टिकटें इसलिए नहीं मिल पाई क्योंकि, उनके गंतव्य के लिए सीधी रेलसेवा उपलब्ध नहीं है। पंजाब जाने के लिए पहली ट्रेन 27 जून को है उसके बाद 12 जुलाई को ही है। इसलिए जाने वाले लोग उतना इंतजार करने के बजाय वाया दिल्ली होकर हरियाणा-पंजाब निकल जा रहे हैं। हरियाणा व पंजाब में खेतों में रोपनी का सीजन इसी 12 जून से आरंभ हो रहा है। 6 मई से 5 जून तक कुल 69 ट्रेनें आईं। जिनमें सीधा सीतामढ़ी के लिए 39 ट्रेनें थीं। इस प्रकार कुल 52277 प्रवासियों में सीधे 46971 प्रवासी सीतामढ़ी पहुंचे।

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