मुंशी प्रेमचंद ने साहित्य को इतना कुछ दे दिया जिसे पढ़ते, समझते, गुनते-बुनते तमाम सदियां गुजर जाए
सीतामढ़ी। आज कथाकार मुंशी प्रेमचंद की 141वीं जयंती पर हम याद कर रहे हैं उस जीवन यात्रा
सीतामढ़ी। आज कथाकार मुंशी प्रेमचंद की 141वीं जयंती पर हम याद कर रहे हैं उस जीवन यात्रा को, जो खुद खुरदुरे रास्तों और कांटों से भरी थी, लेकिन उसी ऊबड़-खाबड़ यात्रा से उपजा था वो साहित्य, जिसे हमारी सबसे समृद्ध विरासत होना था, जिसे एक दिन इतिहास में अमर हो जाना था। ये अल्फाज हैं शहर के आरएसएस महिला कॉलेज में हिदी विभागध्यक्षा डॉ. पंकज वासनीजी के, जो उनकी जीवनी पर प्रकाश डाल रहे थे। यह कार्यक्रम कॉलेज के हिदी विभाग और एनएसएस शाखा द्वारा आयोजित हुआ। उन्होंने बताया कि धनपत राय से अपना नाम प्रेमचंद तो उन्होंने बाद में खुद रखा, जब उन्होंने इस नाम से लिखना शुरू किया। उर्दू में लिखी पहली किताब सोजे वतन को जब अंग्रेजों ने जब्त कर लिया था तो उसके बाद वो नाम बदलकर प्रेमचंद नाम से हिदी में लिखने लगे थे। आखिरकार 8 अक्तूबर, 1936 को उन्होंने दुनिया को आखिरी बार भरी नजरों से देखा और रूख्सत हो गए। उस वक्त उनकी उम्र महज 56 साल थी। लेकिन, 56 साल की उम्र में उस शख्स ने हिदी को विरासत में इतना कुछ दे दिया था कि जिसे पढ़ते, समझते, गुनते-बुनते हुए तमाम सदियां गुजर जानी थी। 18 उपन्यास, 300 से ज्यादा कहानियां, 3 नाटक, बाल साहित्य, अनगिनत निबंध, लेख और दो संस्मरण। कहते हैं जीवन की आंकलन वर्षों में नहीं होता। प्रेमचंद के जीवन से बेहतर इसका पैमाना और क्या हो सकता है। एनएसएस प्रोग्राम ऑफिसर डॉ. अर्पणा कुमारी ने कहा कि प्रेमचंद ने लिखा था-''''मेरा जीवन सपाट समतल मैदान है जिसमें गड्ढे तो कहीं-कहीं पर हैं, परंतु टीलों, पर्वतों, घने जंगलों, गहरी घाटियों और खंडहरों का स्थान नहीं है।'''' उन्होंने भले अपने जीवन की यात्रा को खुद ऐसे नहीं देखा कि उसमें कहीं गहरी खाइयां तो कहीं ऊंचा पहाड़ भी है। लेकिन उनका लिखा हुआ साहित्य अंत में वही ऊंचा पहाड़ हो गया, जिसे अपने जीवन काल में वो खुद तो देखने से चूक गए। लेकिन आज हम सब जिसे सिर उठाकर गर्व से माथा ऊंचा करके देखते हैं। प्रेमचंद के काम का कद खुद प्रेमचंद से कहीं ऊंचा हो गया है। इस अवसर पर महाविद्यालय के सभी शिक्षक एवं शिक्षकेतर कर्मचारी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन एनएसएस प्रोग्राम ऑफिसर डॉ. अर्पणा कुमारी ने किया। प्राचार्य टीपी सिंह, डॉ. उपेंद्र चौधरी, डॉ. अर्पणा कुमारी, अमजद अली, आरती पांडेय, रविद्र कुमार ने अपने उदगार व्यक्त किए।