गुजर गए कई साल, इंटरस्तरीय एलएम उच्च विद्यालय अब भी बेहाल

सरकार व जनप्रतिनिधियों द्वारा विकास का दावा किया जाता है। खासकर शिक्षा के क्षेत्र में लंबे-चौड़े दावे किए जाते है। इस सबसे अलग विकास का दूसरा चेहरा बदहाली की कहानियां लिख रही है। ज्वलंत मुद्दे पर अब तक चुप्पी साधने वाले जनप्रतिनिधि भी कुछ बोल नही रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 29 Sep 2020 01:55 AM (IST) Updated:Tue, 29 Sep 2020 05:13 AM (IST)
गुजर गए कई साल, इंटरस्तरीय एलएम उच्च विद्यालय अब भी बेहाल
गुजर गए कई साल, इंटरस्तरीय एलएम उच्च विद्यालय अब भी बेहाल

सीतामढ़ी । सरकार व जनप्रतिनिधियों द्वारा विकास का दावा किया जाता है। खासकर शिक्षा के क्षेत्र में लंबे-चौड़े दावे किए जाते है। इस सबसे अलग विकास का दूसरा चेहरा बदहाली की कहानियां लिख रही है। ज्वलंत मुद्दे पर अब तक चुप्पी साधने वाले जनप्रतिनिधि भी कुछ बोल नही रहे हैं। बात हो रही है पुपरी अनुमंडल मुख्यालय स्थित इंटर स्तरीय एलएम उच्च विद्यालय का। यह विद्यालय इस क्षेत्र के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है।

पिछले विधानसभा चुनाव में जीत कर आए विधायक ने इसके जीर्णोद्धार को मुद्दा बनाया था। इन पांच साल में काफी प्रयास के बाद भी दो कमरों के निर्माण के नाम पर खानापूरी हुई। अब चुनाव सिर पर आया है तो विधायक एक बार फिर जनता के बीच पहुंचेंगे। उनके वादों और काम का हिसाब जनता करेगी। सुरसंड विधानसभा विधायक सैयद अबू दोजाना ने चुनाव पूर्व जनता से कई वादे किए थे। शहर स्थित इस ऐतिहासिक विद्यालय को नए सिरे से भवन उपलब्ध कराने का वादा अधूरा रह गया।

आठ दशक पुराना है विद्यालय : शहर स्थित लालचंद मदन (एलएम) उच्च विद्यालय की स्थापना वर्ष 1932 में हुई थी। तब से अनुमंडल की लाखो की आबादी के लिए यह एक मात्र ऐसा विद्यालय रहा है, जहां मैट्रिक औऱ अब इंटर तक कि पढ़ाई के लिए नामांकन कराते है। इतना ही नही आजादी की लड़ाई के दौरान इस विद्यालय के शिक्षक व छात्रों के अलावे स्थानीय क्रांतिकरियो ने भारत छोड़ो आंदोलन के समय 1942 मे इस विद्यालय पर झंडोतोलन कर अंग्रेज सिपाहियों को खुली चुनौती दी थी। इस विद्यालय में पढ़ने वाले छात्र न सिर्फ राजनीतिक में पंचायत से लेकर संसद तक प्रतिनिधित्व करते रहे है, बल्कि देश के कई बड़े पदों पर आसीन है।

जर्जर भवन बना विद्यालय की पहचान : जनकपुर रोड रेलवे स्टेशन के सामने स्थित इस विद्यालय को सूबे की सरकार द्वारा शिक्षा में सुधार नीति के तहत 3 जून 2008 की विभाग के पत्र के आलोक में उत्त्क्रमित कर माध्यमिक से प्लस टू का दर्जा दिया गया था। इसके बाद इलाके के छात्र व अविभावकों में शिक्षा के प्रति काफी उम्मीदें बढ़ गई। खासकर अनुमंडल में अबतक एक भी डिग्री कॉलेज नही रहने के कारण छात्रों को लगा कि चलो कम से कम इंटर तक कि पढ़ाई के लिए सोचना नही होगा। लेकिन समय व आवश्यकता के हिसाब से व्यवस्था अधूरी रह गई। पिछले एक दशक से विद्यालय उद्धारक की बाट जोह रहा है। जर्जर भवन किसी बड़े हादसे को आमंत्रित कर रहा है बावजूद पढ़ाई मजबूरी बनी हुई है। यहां हर सत्र में 12वीं तक करीब 2000 छात्रों द्वारा नामांकन किया जाता है। हैरत की बात यह है कि इन छात्रों को नामांकन के समय सभी प्रकार के सुविधा शुल्क वसूली जाती है, लेकिन सुविधा तो दूर बैठने की व्यवस्था भी नही है। यहां के छात्रों को न तो नियमित बिषय वार वर्ग का संचालन होता है और ना ही इंटर के छात्रों को प्रयोगशाला व कम्प्यूटर शिक्षा का लाभ मिल पा रहा। विद्यालय में पढ़ाने के लिए 25 शिक्षक, सारा उपस्कर व व्यवस्था रहने के बावजूद यहां के बच्चे खुद की मेहनत, घर व ट्यूशन की पढ़ाई के बल पर ही मैट्रिक व इंटर की परीक्षा पास करते है।

भूमि बना भवन निर्माण में बाधक : बताया जाता है इस विद्यालय के पास 4 कट्ठा से अधिक जमीन है। समय के हिसाब से कमरो की संख्या बढ़ाने की जरुरत महसूस होने के बाद वर्ष 2006-07 में भवन निर्माण विभाग द्वारा इस विद्यालय भवन निर्माण के लिए भूमि की तलाश शुरु की गई। इसके लिए विद्यालय भवन निर्माण के लिए 1.11 करोड़ से अधिक राशि विभाग की ओर से उपलब्ध कराई गई। बताते है विद्यालय का 2.50 डी. जमीन राजबाग छात्रावास मैदान के पास है, लेकिन वहां तकनीकी पेच यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा पुपरी के जनसभा में खिलाड़ियों की मांग पर खेल मैदान में स्टेडियम निर्माण किए जाने की घोषणा कर दी गई थी। इसके बाद से स्टेडियम निर्माण की कवायद जारी है। फिलहाल भवन निर्माण विभाग को प्राक्कलन के अनुरुप जो भवन निर्माण किया जाना है उसके तहत इस विद्यालय परिसर में पुराने भवन को तोड़े बिना असंभव है।

कहते है लोग : नगर के वार्ड 7 निवासी सुशील मिश्र कहते है कि सिस्टम की लापरवाही व जनप्रतिनिधियों के उपेक्षा के कारण विद्यालय की ऐसी दुर्दशा है। कहा कि इस विद्यालय के अध्यक्ष विधायक होते है। हालत देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इनके द्वारा क्या प्रयास हुआ।

हरदिया गांव निवासी कमलेश मिश्र बताते है कि जर्जर भवन से कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। भवन के अभाव में बच्चों को सही से शिक्षा नही मिल पा रही है। यह विद्यालय नामांकन तक ही सीमित है।

सिगियाही रोड निवासी मुकेश कुमार का कहना है कि हर पांच साल पर नए जनप्रतिनिधि से लोगों की उम्मीदें बढ़ जाती है, लेकिन समय आस संजोए बीत जाता है।

नरेंद्र कुमार झा बताते है कि विद्यालय के मुद्दे पर अविभावकों को एक जुट होकर चुनाव में सबक सिखाने की जरूरत है। जनप्रतिनिधियों के कारण ही विद्यालय बदहाल है।

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