ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक अलग प्रकार का प्रतिकार थी अगस्त क्रांति

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की श्रृंखला में 1942 की अगस्त क्रांति एक अलग प्रकार का समाजवादी हुकूमत के खिलाफ प्रतिकार था। 1857 से लेकर 1942 के क्रांति तक केवल भारत छोड़ो आंदोलन ही विद्रोही भी था रेवेलियन भी था और आंदोलन भी था।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 11 Aug 2020 01:36 AM (IST) Updated:Tue, 11 Aug 2020 06:11 AM (IST)
ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक अलग प्रकार का प्रतिकार थी अगस्त क्रांति
ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक अलग प्रकार का प्रतिकार थी अगस्त क्रांति

सीतामढ़ी । भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की श्रृंखला में 1942 की अगस्त क्रांति एक अलग प्रकार का समाजवादी हुकूमत के खिलाफ प्रतिकार था। 1857 से लेकर 1942 के क्रांति तक केवल भारत छोड़ो आंदोलन ही विद्रोही भी था, रेवेलियन भी था और आंदोलन भी था। बहुत सारे इतिहासकार इस आंदोलन को विभिन्न नामों से पुकारते हैं। जैसे एफजी हचिसन से लेकर स्टीफन कनिघम, मैक्स हारकोड, डीएलो, जेएस मैनसर्ग, केके दत्त और अंबा प्रसाद, गोविद प्रसाद प्रोफेसर बलदेव नारायण प्रसाद तक से लेकर बहुत सारे इतिहासकारों ने इसको जनता सरकार, जन सरकार, समानांतर सरकार, नरकट्टी सरकट्टी आंदोलन 42 रेवेलियन, अगस्त क्रांति और इतिहासकार पाणीग्राही ने इसे भारत छोड़ो आंदोलन के रूप में देखा। अखिल भारतीय पैमाने पर बिहार राज्य की भागीदारी इस विद्रोह में सर्वथा अलग था। भारत के किसी भी राज्य में आंदोलनकारियों पर हवाई जहाज से गोली नहीं बरसाई गई थी (मुंगेर)। दूसरा इस विद्रोह में आंचलिक भिन्नता भी बिहार में काफी थी। चाहे पूर्णिया किशनगंज, मुंगेर, बेगूसराय आदि जगहों पर भारतीय सेठ साहूकारों के गोदामों को आंदोलनकारियों ने लूट लिया था और दूसरी ओर बिहार में आजाद दस्ता सियाराम दल कोसी के दोनों तरफ हनुमानगढ़ी से लेकर बंगाल की सीमा तक अंग्रेजों की खजानों को आंदोलनकारी लूटते रहते थे। भिन्नताओं की श्रृंखला में उत्तर बिहार से लेकर दक्षिण बिहार तक समानांतर सरकार आंदोलनकारियों ने बनाया था। जिसका मुख्य केंद्र पसारा गंगिया, धन और सीतामढ़ी के बेलसंड क्षेत्र के 42 दिनों की सरकार भी बनी थी। जिसकी खूबसूरती थी उस दौरान। कोई भी आपराधिक घटना नहीं घटी थी। जेएस कॉलेज, बेलसंड के प्राचार्य डॉ. पंकज कुमार राय ने भारत छोड़ो आंदोलन बिहार के आईने में समझाने की कोशिश की है। इस लड़ाई में गांधी जी ने ''करो या मरो'' का नारा देकर अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए पूरे भारत के युवाओं का आह्वान किया था। यही वजह है कि इसे ''भारत छोड़ो आंदोलन'' या क्विट इंडिया मूवमेंट भी कहते हैं। इस आंदोलन की शुरुआत 9 अगस्त 1942 को हुई थी, इसलिए इसे अगस्त क्रांति भी कहते हैं। सीतामढ़ी और सारा में बनते थे हथियार

विद्रोह के दौरान बिहार के आंचलिक भिन्नता के क्रम में सीतामढ़ी और सारा में हथियार भी बनते थे। दूसरी ओर गांधी के करो या मरो के नारे के साथ-साथ मरेंगे या मारेंगे उत्तर बिहार के गांव में काफी जोर पकड़े हुए था। चूंकि, आज इस गोलीकांड के दौरान सचिवालय पर राष्ट्रीय झंडा फहराने के क्रम में 7 छात्रों ने अपना बलिदान दिया था जिनका सामाजिक आधार निम्न मध्यमवर्गीय था। बिहार में शहरी क्षेत्रों में छात्रों ने इस विद्रोह की अगुवाई की थी, जबकि उत्तर बिहार के गांव में मध्यमवर्गीय किसान इस विद्रोह को बल प्रदान कर रहे थे। इस क्रम में तब के छात्रों तब के छात्रों के आईने में आज के छात्र कहां तक ठहर पा रहे हैं? आज का युवा वर्ग अपने समक्ष किसी आदर्श को स्थापित नहीं कर पाते हैं क्योंकि, उनके समक्ष आज का जो सार्वजनिक जीवन है वह डाकू दल के रूप में कायम हो चुका है, जो भारतीय लोकतंत्र के लिए संकट का सबब बन सकता है। अत: आज हम पटना सचिवालय गोली कांड में शहीद छात्रों की याद में यह प्रण लें कि देश, राष्ट्र, राजनीति राजनीतिक सुविधा परस्त जीवन, अनैतिक महत्वाकांक्षी जीवन के आकांक्षी न बने। इसलिए खासकर मुजफ्फरपुर एवं सीतामढ़ी जिलों के लिए चुनौतीपूर्ण उदाहरण बने जो वर्तमान राजनीतिक जीवन में शुचिता एवं उच्च आदर्श स्थापित करने का आधार बन सकें।

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