नरेंद्र दास महात्यागी बाबा के अंतिम दर्शन को परसौनी में उमड़ा जनसैलाब, बंद रहा बाजार

सीतामढ़ी। काली शंकर व हनुमान मंदिर सहित दर्जनों मंदिर के निर्माता सह गौ तस्करी से परसौनी

By JagranEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 12:34 AM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 12:34 AM (IST)
नरेंद्र दास महात्यागी बाबा के अंतिम दर्शन को परसौनी में उमड़ा जनसैलाब, बंद रहा बाजार
नरेंद्र दास महात्यागी बाबा के अंतिम दर्शन को परसौनी में उमड़ा जनसैलाब, बंद रहा बाजार

सीतामढ़ी। काली, शंकर व हनुमान मंदिर सहित दर्जनों मंदिर के निर्माता सह गौ तस्करी से परसौनी को मुक्त कराने वाले श्रीश्री 108 श्री नरेंद्र दास महात्यागी बाबा का सोमवार की रात करीब 8 बजे इलाज के दौरान मुजफ्फरपुर एसकेएमसीएच में देहावसान हो गया। विगत जून माह में अपने गुरु रामानन्द आश्रम रिग बांध सीतामढ़ी के महंत राजेश्वर दास जी महाराज से मिलकर अपने निजी गाड़ी से लौट रहे थे। तभी एक ट्रैक्टर ने उनकी गाड़ी को जबरदस्त टक्कर मार दी। जिससे उनके माथे में अधिक चोट आई थी। वे तब से बीमार चल रहे थे। उनके देहावसान की खबर सुनते ही उनके अनुयायियों व भक्तों में शोक की लहर दौड़ गई। उनके निधन पर शोकाकुल लोगों ने परसौनी बाजार की अपनी-अपनी दुकानें बंद रखीं।

दोपहर में काली मंदिर बलहा से निकली बाबा की अंतिम यात्रा

दोपहर में काली मंदिर बलहा से त्यागी बाबा की अंतिम यात्रा निकली, जो बाबा द्वरा निर्मित शंकर मंदिर परसौनी चौक, हनुमान मंदिर बेलसंड रोड, हनुमान मंदिर मुशहरी, बलहा हनुमान मंदिर, थाना परिसर में स्थापित मंदिर के बाद वापस काली मंदिर पहुँची। यात्रा में आग्नेय कुमार, अजय चौधरी, मिठु कुमार, मुखिया कमलेश कुमार, सुनील कुमार, भाग्यनारायण शर्मा, अरविद कुमार, रवि गुप्ता, रवि जयसवाल, राजू गुप्ता, उमेश कुशबहा प्रमोद साह सहित हजारों लोगों के साथ बाजारवासियों ने भी भाग लिया।

पार्थिव शरीर को दर्शन के लिए आम वो खास हर कोई पहुंचा

निधन के खबर सुनने के बाद उनके गुरु रामानंद आश्रम रिग बांध सीतामढ़ी के महंत राजेश्वर दास जी महाराज भी काली मंदिर पहुंचे। उनकी देखरेख में एनएच-104 स्थित बलहा काली मंदिर परिसर में भू-समाधि दी गई। इससे पूर्व उनके पार्थिव शरीर के दर्शन के लिए रखा गया था। बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचे और दर्शन कर पुष्प अर्पित किया। त्यागी बाबा को पशु पंक्षियो में काफी प्रेम था। वे तोता, मोर, घोड़ा, गाय, कुत्ता आदि पालकर अपना खाली समय इनके साथ बिताते थे। उनकी सबसे बड़ी कीर्ति है परसौनी से निकलने वाली सभी जगहों पर मंदिर का निर्माण व परसौनी को गौ तस्करी से मुक्त कराना। तस्कर से वे गायों को छुड़ाकर खुद पालते थे। इसलिए डर से कोई तस्कर एनएच-104 से गाय को लेकर नहीं जाता था।

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