लाचारों की खातिर खुले सामुदायिक रसोई खाने वालों की कमी

शेखपुरा। लॉकडाउन में बाहर और लाचार लोगों को मुफ्त भोजन देने के लिए जिला प्रशासन ने शेखपुरा और बरबीघा में सामुदायिक रसोई शुरू किया है। यहां दोपहर और रात में निशुल्क भोजन देने की व्यवस्था है। यहां के आंकड़ों के मुताबिक प्रतिदिन दोनों समय औसतन 60 लोगों को भोजन कराया जा रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 11 May 2021 11:33 PM (IST) Updated:Tue, 11 May 2021 11:33 PM (IST)
लाचारों की खातिर खुले सामुदायिक रसोई खाने वालों की कमी
लाचारों की खातिर खुले सामुदायिक रसोई खाने वालों की कमी

शेखपुरा। लॉकडाउन में बाहर और लाचार लोगों को मुफ्त भोजन देने के लिए जिला प्रशासन ने शेखपुरा और बरबीघा में सामुदायिक रसोई शुरू किया है। यहां दोपहर और रात में नि:शुल्क भोजन देने की व्यवस्था है। यहां के आंकड़ों के मुताबिक प्रतिदिन दोनों समय औसतन 60 लोगों को भोजन कराया जा रहा है। दिन में भोजन का समय 10 से 01 बजे तक निर्धारित है। इसी की जमीनी हकीकत परखने के लिए मंगलवार को शेखपुरा की सामुदायिक रसोई की ऑन स्पॉट रिपोटिग का प्रयास किया। --

10.20 बजे

डायट के छात्रावास भवन में चल रहे सामुदायिक रसोई में कोई चहल-पहल नहीं है। बाहर के गेट बंद है। भीतर घुसने पर दो रसोईये मिले। भीतर दिन के भोजन के लिए दाल और भात तैयार हो चुका है। चूल्हे पर आलू-बैंगन की सब्जी तैयार होने वाली है। रात में भी दाल-भात और सब्जी खिलाई जाती है।

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10.50 बजे

सामुदायिक रसोई से सटे ही लोगों को भोजन कराने की व्यवस्था है। शामियाना गाड़कर यहां टेबुल-कुर्सी लगाई गई है। एक साथ 20 लोगों को बैठाकर भोजन कराने की व्यवस्था है। भोजनालय से ही सटे एक कोने में पेयजल स्टाल है। वहां मिनरल वाटर के कई जार रखे हैं। देखने पर पूरी व्यवस्था टंच।

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11.25 बजे

भोजन का समय हो चुका है,मगर अभी तक कोई व्यक्ति भोजन करने नहीं पहुंचा है। दोनों रसोइया गेट पर खड़ा होकर भोजन को आने वालों की राह निहारता है। इसी दौरान बातचीत में रसोइया बताता है दो के अलावे यहां और कोई स्टाफ नहीं है। खाना बनाने के साथ यही दोनों लोगों को भोजन परोसने का भी काम करते हैं।

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12.05 बजे

अभी तक कोई लाचार व्यक्ति या राहगीर भोजन करने नहीं पहुंचा है। भोजनालय की कुर्सियां अभी भी खाली पड़ी है। इसी दौरान 10 मिनट बाद एक दर्जन बच्चों का एक झुंड गेट के बाहर आकर खड़ा होता है। इसमें सभी की उम्र 10 से 12 साल के बीच है। पूछने पर बताया बगल के मखदुमपुर मुसहरी के हैं। ये बच्चे रोज यहां भोजन करने आते हैं। खैर जो हो किसी गरीब का तो पेट इस रसोई से भर रहा है।

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