एनएच 104 से गुजरना मुनासिब नहीं समझते हैं लोग

शिवहर - सीतामढ़ी एनएच 104 की पहचान इन दिनों धूल के गुबार से हो रही है। खासकर बागमती नदी के दोनों तटबंधों के बीच की तो पूछिए ही मत।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 18 Dec 2018 01:44 AM (IST) Updated:Tue, 18 Dec 2018 01:44 AM (IST)
एनएच 104 से गुजरना मुनासिब नहीं समझते हैं लोग
एनएच 104 से गुजरना मुनासिब नहीं समझते हैं लोग

शिवहर। शिवहर - सीतामढ़ी एनएच 104 की पहचान इन दिनों धूल के गुबार से हो रही है। खासकर बागमती नदी के दोनों तटबंधों के बीच की तो पूछिए ही मत। गाड़ी गुजरने के बाद पीछेवाले का धूल स्नान होना तय है। सबसे बड़े खतरे की बात यह है कि ऐसे में दुर्घटना की संभावना बन रही है। कई लोग दुर्घटना ग्रस्त हो भी चुके हैं। बड़े बड़े धूल भरे गड्ढे खतरे का सबब बने हैं। नतीजतन साइकिल, बाइक एवं छोटे- बड़े वाहनों का चलना दुश्वार हो गया है। सड़क पर उड़ रहे धूल घने कोहरे का आभास दिलाते हैं। अब तो हाल यह है कि शिवहर- सीतामढ़ी की लाइफ लाइन इस सड़क से लोग अब जाना मुनासिब नहीं समझते। लोगों ने पिपराही पुरनहिया होकर वैकल्पिक रास्ता ढूंढ निकाला है। हालांकि इस होकर सीतामढ़ी की दूरी बढ़ जाती है। लेकिन इन परेशानियों से निर्माण कंपनी का कोई वास्ता नहीं है। न उनके निर्माण कार्य की गति बदल रही है और न ही उन सड़कों पर पानी छिड़काव को जरुरी समझते हैं। दूसरी ओर धूल से प्रदूषण का खतरा अलग है। सबसे बुरा हाल सड़क किनारे बसे लोगों का है। जो धीमे- धीमे अस्थमा के शिकार हो रहे हैं। क्योंकि घर से लेकर बाहर तक धूलकण की एक परत सी जम गई है। इस समस्या की मूल वजह निर्माण कार्य की धीमी गति है। बीते करीब आठ वर्षों से एन एच 104 का निर्माण किया जा रहा है जो अभी भी मुकम्मल नहीं हुआ है। करीब आधे दर्जन पुलों का बनना बाकी है। अगर यही रफ्तार रही तो इसे पूरा होने में अभी वर्षों लगेंगे। - गर्मी में धूल तो बरसात में कीचड़ से परेशानी निर्माणाधीन एनएच 104 पर गर्मी के दिनों में जहां धूल समस्याएं खड़ी करती हैं वहीं बरसात के दिनों में राहगीरों को कीचड़ से जूझना पड़ता है। हालांकि जिला प्रशासन की बैठकों में इस बाबत अक्सर दिशा निर्देश दिए जाते हैं। कई दफा निर्माण कंपनी को हिदायत भी दी जा चुकी हैं। इतना ही नहीं समन्वय समिति की बैठकों में शिवहर सांसद भी निर्माण की धीमी गति को लेकर फटकार लगा चुकी हैं। बावजूद इसके कोई परिवर्तन नहीं दिखता। अलबत्ता जब ज्यादा हारती दिखती है तो कुछेक मजदूर काम करते दिख जाते हैं फिर वही ढ़ाक के तीन पात वाली स्थिति होती है।

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