सारण में रमजान के दूसरे जुमे पर भी मस्जिदें रहीं वीरान

रमजान उल मुबारक के इस पाक महीने में दूसरे जुमा पर भी लोगों को मस्जिदों में नमाज अदा करने का मौका नहीं मिला। रोजेदरों ने घरों में ही नमाज-ए-जोहर (दोपहर की समान्य नमाज) अदा की और वैश्विक महामारी कोरोना से जल्द दुनिया को निजात देने की दुआ मांगी।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 23 Apr 2021 10:22 PM (IST) Updated:Fri, 23 Apr 2021 10:22 PM (IST)
सारण में रमजान के दूसरे जुमे पर भी मस्जिदें रहीं वीरान
सारण में रमजान के दूसरे जुमे पर भी मस्जिदें रहीं वीरान

सारण। रमजान उल मुबारक के इस पाक महीने में दूसरे जुमा पर भी लोगों को मस्जिदों में नमाज अदा करने का मौका नहीं मिला। रोजेदरों ने घरों में ही नमाज-ए-जोहर (दोपहर की समान्य नमाज) अदा की और वैश्विक महामारी कोरोना से जल्द दुनिया को निजात देने की दुआ मांगी। आम तौर पर जुमा में मस्जिदें गुलजार हो उठती थीं। रमजान के जुमा में तो जगहें कम पड़ जाती थीं। कोरोना काल में पाबंदी के कारण मस्जिदें वीरान और उनको जाने वाले रास्ते सूने रहे। रोजेदार घरों में ही अकीदत और शिद्दत से इबादत कर रहे हैं। मस्जिदें बंद रहने के कारण पांच वक्त की नमाज के साथ ही रमजान की विशेष तरावीह की नमाज मस्जिद की बजाय घरों से ही अदा की जा रही है। पहले जुमा के साथ ही इस जुमे पर भी उलमा-ए-कराम ने लोगों को समझाया था कि वह जुमा की नमाज के लिए मस्जिदों में न जाएं। नमाजों के बाद अल्लाह से दुआ करें कि जल्द से जल्द कोरोना का खात्मा हो। सभी की सेहत के लिए भी दुआएं करें। क्या है जुमा की अहमियत

जिस तरह हिन्दू धर्म में सोमवार और बुधवार, यहूदी मजहब में शनिवार को और ईसाई मजहब में रविवार को इबादत के लिए हफ्ते का खास दिन माना जाता है। वैसे ही इस्लाम में शुक्रवार इबादत और इज्तिमाई नमाज (सामूहिक प्रार्थना) के लिए खास दिन है। जुमा का शाब्दिक अर्थ है एक जगह इकठ्ठा होना। आम तौर पर जो लोग रोजाना के पांच बार की नमाज अदा नहीं कर पाते वे भी जुमा की नमाज जरूर अदा करते हैं। मान्यता है कि एक जगह जमा होने से आपसी प्रेम बढ़ता है और किसी सामाजिक या व्यक्तिगत समस्या का समाधान भी होता है। ओलेमा खुतबा (तकरीर) में कुरान और हदीस की रोशनी में जीवन गुजारने का सूत्र भी देते हैं। हदीस-शरीफ में है कि जुमा के दिन ही हजरत आदम को जन्नत से दुनिया में भेजा गया। उन्हें वापस जन्नत भी जुमा के दिन ही मिली। उनकी तौबा (प्रायश्चित) भी जुमा के दिन अल्लाह ने कुबूल की और सबसे बड़ी बात तो यह कि हजरत मोहम्मद (सल्ल) की जिदगी का आखिरी हज जुमे के दिन ही था। कुरआने-पाक में सूरह ''जुमा'' नाजिल की गई। शुरू हुआ मगफिरत का दूसरा अशरा

रमजान का पहला अशरा (पहला दस दिन) गुरुवार को समाप्त हो गया।. मंगलवार से दूसरा अशरा शुरू हो गया है।. उलेमा-ए-कराम फरमाते हैं. कि पहला अशरा अल्लाह की रहमत का, दूसरा मगफिरत का और तीसरा अशरा जहन्नम की आग से निजात का है।. दारुल ओलूम रजविया के प्रधानाचार्य मौलाना रज्जबुल कादरी के अनुसार मगफिरत के इस अशरे में हमें अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगनी चाहिए और बेहतर तरीके से रोजा इबादत के साथ दुनिया के महामारी से मगफिरत की भी दुआ करनी चाहिए।.

chat bot
आपका साथी