इस दिपावली जलाएं मिट्टी के दीये
एक दौर वह भी था जब दीपावली मिट्टी से बने दीयों की थी। घी और तेल से दीपक जलाए जाते थे।
जागरण संवाददाता, छपरा : एक दौर वह भी था जब दीपावली मिट्टी से बने दीयों की थी। घी और तेल से दीेये जलाए जाते थे। तेजी से प्रचलन में आई मोमबत्ती और विद्युत झालरों के प्रयोग ने जहां कुम्हारों के हाथ से रोजगार छीन गया। वहीं घी तेल के दीये न जलने के कारण बरसात में पैदा होने वाले कीट-पतंगे भी नहीं मर पाते।
नतीजा यह है कि हम परेशान होते हैं। मिट्टी के दीये पर्यावरण के लिए भी नुकसानदायक नहीं होते थे। दीपावली पर इस पुरानी परंपरा को दैनिक जागरण फिर से जीवंत करने जा रहा है। इसके तहत हम इस दिपावली पर मिट्टी का दीया घी या तीसी के तेल में जरूर जलाएं। दीपावाली में शहरवासियों से मिट्टी का दीया खरीदने की अपील भी जागरण कर रहा है। इस अभियान में जिले के सभी संगठनों से जुड़ कर लोगों से मिट्टी का दीया जलाने का संकल्प दिलाया जाएगा। स्कूली - छात्र- छात्राओं को भी संकल्प दिलाया जाएगा कि वे एक मिट्टी का दीया तीसी या सरसो के तेल में जरूर इस दिपावली पर जलाएं।
--------------- पर्यावरण का होता है संरक्षण :
घी व सरसों के तेल से जलने वाले दीये से बारिश के मौसम में निकलने वाले हानिकारक कीट-पतंगे मर जाते हैं। इससे बहुत कम मात्रा में कार्बन डाई आक्साइड गैस बनती है, जिसे पेड़ पौधे भी ग्रहण करते हैं। जितना ग्रहण करते हैं, उतना आक्सीजन हम सभी को देते हैं।
डा. धनंजय आजाद
प्रध्यापक पीजी भूगोल विभाग, जेपी विश्वविद्यालय, छपरा
मिट्टी के दीपक से पर्यावरण शुद्ध, चर्म रोग नहीं होता
पारंपरिक मिट्टी के दीपक से पर्यावरण शुद्ध रहता है। बीमारियां नहीं होती हैं। चर्म रोग आदि का खतरा नहीं रहता है। घी का दीपक चार घंटे तक पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखता है, जबकि सरसों का दीपक आधे घंटे तक। बारिश के मौसम में पैदा होने वाले कीट पंतगे नष्ट हो जाते हैं। डा. राजेश रंजन, आयुर्वेदाचार्य रोजगार के अवसर बढ़ेंगे
दिपावली में मिट्टी का दीया जलाने से पर्यावरण का संरक्षण के साथ ही कुम्हार का रोगजार भी बढ़ेगा। कोरेाना संक्रमण में कुम्हार के व्यवसाय पर भी असर पड़ा है। मिट्टी का दीया जलाने से कई परिवारों में खुशियों के दीप चल जाएंगे। डा. आदित्य चंद्र झा, प्राचार्य, गंगा सिंह कालेज, छपरा
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सबको करना होगा प्रयास :
इस दिपावली में अधिक से अधिक मिट्टी का दीया जल सके, उसको लेकर हम सबको प्रयास करना होगा। तभी यह संभव हो सकता है। हमें अपने आस-पास के लोगों को बताना होगा कि इस बार मिट्टी का दिया जरूर जलाएं। डा.अनीता, विभागाध्यक्ष, पीजी हिन्दी विभाग, जेपी विश्वविद्यालय, छपरा।