सारण में लॉकडाउन में सादगी से मनी ईद

ईद-उल-फितर का वह त्योहार जिसका तीस दिनों से इंतजार था वह शुक्रवार को लॉकडाउन की बंदिशों के बीच सादगी से मनाया गया। मस्जिदों में अजान तो हुई मगर कोई नमाज पढ़ने नहीं पहुंचा। शहर से गांव तक मस्जिद व ईदगाह जाने वाले रास्तों पर सन्नाटा पसरा रहा। सिर पर टोपियां लगा कर नए कुर्ता-पजामा पहले लोगों की भीड़ नहीं दिखी।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 14 May 2021 10:38 PM (IST) Updated:Fri, 14 May 2021 10:38 PM (IST)
सारण में लॉकडाउन में सादगी से मनी ईद
सारण में लॉकडाउन में सादगी से मनी ईद

सारण। ईद-उल-फितर का वह त्योहार, जिसका तीस दिनों से इंतजार था वह शुक्रवार को लॉकडाउन की बंदिशों के बीच सादगी से मनाया गया। मस्जिदों में अजान तो हुई मगर कोई नमाज पढ़ने नहीं पहुंचा। शहर से गांव तक मस्जिद व ईदगाह जाने वाले रास्तों पर सन्नाटा पसरा रहा। सिर पर टोपियां लगा कर नए कुर्ता-पजामा पहले लोगों की भीड़ नहीं दिखी। कोई चहल-पहल नहीं थी। नमाजियों की बढ़ी तादाद से मस्जिदों में जगह की कमी इसबार नहीं पड़ी। केवल अजान देने वाले मोअज्जिन, इमाम व एक-दो खदीम ने ही वहां नमाज पढ़े। रोजेदार दिल मसोस कर अफसोस करते रहे और अपने घरों में ही चास्त या शुकरानी नमाज अदा की। इस नमाज के साथ अफजल व नेकी का महीना रमजान रूखसत हो गया। न कोई गया ईदगाह और न गया मस्जिद बंदिशों ने रोजदारों को ईदगाह व मस्जिद नहीं जाने दिया। लेकिन इससे उनकी खुशी में कोई कमी नहीं रही। उन्होंने घरों में नमाज पढ़ कर अल्लाह का शुक्र अदा किया। साथ ही कोरोना से मुक्ति की दुआ घर-घर में मांगी गई। एदार-ए-शरिया, इमारत-ए-शरिया, बरेली शरीफ, खानकाह मुजबिया जैसे इस्लामिक धार्मिक संस्थानों समेत स्थानीय दारूल ओलूम नईमिया, दारूल ओलूम रजकवया, अहले हसीद मस्जिद व शिया इमाम-ए-जुमा आदि ने लोगों से अपील की थी कि ईद की नमाज घरों में ही अदा करें। लॉकडाउन के नियमों का पालन करते हुए मस्जिदों को पहले से ही बंद कर दिया गया था। वहीं ईदगाह को भी बंद रखने का एलान किया गया था। अपील की गई थी कि सभी लोग घरों में ही नमाज अदा करेंगे। कोई भी ईदगाह व मस्जिद नहीं जाएगा। कोरोना से लड़ने के लिए शारीरिक दूरी बनाए रखने को कहा गया था। शहर व देहात में पुलिस ने भी लगातार माइक से एलान करते हुए लोगों से अपील किया था कि नमाज घरों में ही अदा करें। इस अपील को लोगों ने माना और घर से कोई नहीं निकला। बदले-बदले रहे शहर व गांव के हालात ईद जैसा बड़ा त्योहार लोगों को लॉकडाउन की बंदिशों के बीच मनाना पड़ा। लोगों ने घरों में ही चास्ता या शुकरान की नमाज अदा की। ईद की नमाज के बाद खुत्बा सुनने का मौका लोगों को नहीं मिला। खुत्बा ईद की नमाज का अहम हिस्सा माना जाता है। कहा जाता है कि इसको सुने बिना ईद की नमाज मुकम्मल नहीं होती। यही वजह रही कि लोगों को घरों में नमाज-ए-ईद की बजाय चास्ता या शुकराना पढ़ना पड़ा। ओलेमा व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कोविड के खतरे को देखते हुए किसी के घर नहीं आने-जाने और गले मिलकर मुबारकवाद न देने की सलाह दी थी। संस्थाओं ने गरीब जरूरतमंदों को पहुंचायी राहत लॉकडाउन में गरीबों की ईद फीकी न हो और उन्हें भी ईद की खुशी में शामिल होने का पूरा मौका मिले, इसका भी ख्याल रखा गया। लोगों ने निजी तौर पर अपने आसपास के मजबूर और जरूरतमंदों की मदद की। वहीं शहर के कई संस्थानों ने भी बढ़चढ़ कर गरीबों की मदद की। न्याय संस्था के सचिव सुल्तान इद्रीशी व पीएपफआइ ने अपने सचिव परवेज आलम के नेतृत्व में राशन, सेवई, दूध, कपड़े व मिठाइयां आदि तकसीम कर गरीब लोगों के बीच खुशियां बांटने का प्रयास किया। वहीं अन्य संस्थाओं ने भी इस नेक काम में पहल की।

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