सारण के श्मशानों घाटों पर शवों के अंतिम संस्कार में भी तोल-मोल

कोविड वायरस की दूसरी लहर ने कहर बरपा रखा है। सारण का शहर व गांव इस महामारी की चपेट में है। संक्रमितों की संख्या ही नहीं मौत का आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा है। कोराना संक्रमितों की ही नहीं लोगों के स्वाभाविक मौतों में भी इजाफा हो गया है। पिछले एक सप्ताह में सेमरिया घाट पर 11 सौ से अधिक शवों के दाह संस्कार के लिए रसीद काटा गया है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 14 May 2021 10:35 PM (IST) Updated:Fri, 14 May 2021 10:35 PM (IST)
सारण के श्मशानों घाटों पर शवों के अंतिम संस्कार में भी तोल-मोल
सारण के श्मशानों घाटों पर शवों के अंतिम संस्कार में भी तोल-मोल

छपरा । कोविड वायरस की दूसरी लहर ने कहर बरपा रखा है। सारण का शहर व गांव इस महामारी की चपेट में है। संक्रमितों की संख्या ही नहीं मौत का आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा है। कोराना संक्रमितों की ही नहीं लोगों के स्वाभाविक मौतों में भी इजाफा हो गया है। पिछले एक सप्ताह में सेमरिया घाट पर 11 सौ से अधिक शवों के दाह संस्कार के लिए रसीद काटा गया है। घाट पर रसीद काटने वाला कहता है कि प्रतिदिन दर्जनों ऐसे शव भी जलते हैं, जिनका रसीद नहीं कटवाकर परिजन चुपके से निकल जाते हैं। कोरोना काल के पहले प्रति सप्ताह करीब दो सौ से तीन सौ के आसपास रसीद कटता था। आपदा की इस घड़ी में अवसर तलाशे जा रहे हैं। यह अवसर श्मशान घाटों पर तलाश लिए गए हैं। शवों को जलाने वाली लकड़ियों से लेकर धूप तक के दाम दुगने बढ़ गए हैं। शव लेकर पहुंचे लोगों को लकड़ी दुकानदारों से तोल-मोल करने पड़ रहे हैं। तोल-मोल तो कोरोना से मरे लोगों के शवों को जलाने के लिए भी की जा रही है। आठ सौ रुपये क्विटल बिकने वाली लकड़ी अब दो हजार में रिविलगंज के सेमरिया श्मशान घाट के पास लकड़ी व धूप बेचने वाले दुकानदार आपदा को अवसर बनाने से नहीं चूक रहे। यहां कोविड संक्रमण की दूसरी लहर के पूर्व शव जलाने वाली आम की लकड़ियां आठ सौ रुपये क्विटल बिकती थीं। अभी इस लकड़ी का रेट दो हजार रुपये प्रति क्विटल दुकानदारों ने कर दिया है। इसी तरह जो धूप पहले 20 रुपये प्रति किलो बिका करता था। वह अब 70 रुपये प्रति किलो की दर से बेचे जा रहे हैं। चंदन की लकड़ी व घी के दाम भी बढ़ा दिये गये हैं। यह हाल केवल रिविलगंज के सेमरिया श्मशान घाट पर ही नहीं। जिले के सभी श्मशानों घाटों का कमोबेश यही हाल है। हर श्मशान घाट पर लकड़ी, धूप आदि के रेट दुगने से भी अधिक कर दिये गये हैं। आइए, चंद उदाहरणों से देखते व समझते हैं सारण के श्मशान घाटों के हालात। केस: एक इसुआपुर में एक वृद्ध की स्वभाविक मृत्यु हुई हैं। गांव के कुछ लोगों के साथ परिजन शव लेकर रिविलगंज के सेमरिया घाट पर पहुंचे हुए हैं। दाह संस्कार के पूर्व ये लोग लकड़ी आदि खरीदने घाट के पास की दुकान पर जाते हैं। दुकानदार आम की लकड़ी दो हजार रुपये क्विटल और धूप 70 रुपये किलो बताता है। इनमें से एक बोल पड़ते हैं कि पिछले माह ही तो एक दाह संस्कार में यहां आया था। तब आपने ही आम की लकड़ी आठ सौ रुपये क्विटल व धूप 20 रुपये किलो दी थी। दुकानदार झट से बोल पड़ता है, तब की बात और थी। उस वक्त कोरोना का वक्त थोड़े ही था।

केस: दो जलालपुर के कोरोना संक्रमित की मौत अस्पताल में हो गयी है। परिवार के लोग शव लेकर मांझी श्मशान घाट पर दाह संस्कार के लिए पहुंचे हैं। परिजन स्वयं दाह संस्कार नहीं करना चाहते। वे वहां के डोम राजा से दाह संस्कार के लिए बोलते हैं। वह तैयार भी हो जाता है, लेकिन शव जलाने के एवज में 30 हजार रुपये की मांग करता है। परिवार के लोग कहते हैं कि वे गरीब हैं और इतनी रकम वे नहीं दे पायेंगे। इस तरह वहां तोल-मोल की शुरूआत होती है। घंटे भर मोल-तोल और मान-मनौव्वल का दौड़ चलता है। वह अपनी मांग पर अड़ा रहता है। कुछ स्थानीय लोग घाट की तरफ आए हैं और वे परिजनों और उसके बीच समझौता कराते हैं। आठ हजार पर सौदा तय होता है और फिर उस कोरोना संक्रमित शव को जलाया जाता है। इनसेट लकड़ी व धूप के दाम कोराना काल के पहले लकड़ी: 800 रुपये क्विटल धूप: 20 रुपये प्रति किलो घाटों पर वर्तमान में लकड़ी व धूप के मूल्य लकड़ी: 2000 रुपये क्विटल धूप: 70 रुपये प्रति किलो

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