कहते अन्नदाता हैं खुद को, लेकिन हैं वे तो व्यापारी

समस्तीपुर। कुसुम पाण्डेय स्मृति साहित्य संस्थान के तत्वावधान में रविवार को काव्य गोष्ठी हुई। गोष्

By JagranEdited By: Publish:Mon, 26 Jul 2021 11:51 PM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 11:51 PM (IST)
कहते अन्नदाता हैं खुद को, लेकिन हैं वे तो व्यापारी
कहते अन्नदाता हैं खुद को, लेकिन हैं वे तो व्यापारी

समस्तीपुर। कुसुम पाण्डेय स्मृति साहित्य संस्थान के तत्वावधान में रविवार को काव्य गोष्ठी हुई। गोष्ठी का प्रारंभ डॉ. रामसूरत दास द्वारा मां सरस्वती की आराधना वर दे वीणा वादिनी से किया गया। गजल, हास्य व्यंग्य, भजन, रोमांटिक एवं पर्यावरण संबंधी रचनाओं सहित दहेज की करुण भोजपुरी गीत और बज्जिका की रचनाएं आकर्षण का केंद्र बनी रही। डॉ. राम सूरत दास, राज कुमार चौधरी, शिवेंद्र कुमार पांडेय, शंकर अज्ञानी, भुवनेश्वर मिश्र, दिनेश प्रसाद, रामाश्रय राय राकेश, राज कुमार राय राजेश, काविश जमाली, विष्णु कुमार केडिया, प्रवीण कुमार चुन्नू, कासिम सबा, आफताब समस्तीपुरी, डॉ. सुनील कुमार चंपारणी, दीपक कुमार श्रीवास्तव, डॉ. मुरलीधर देव ब्रजेश आदि की रचनाएं खूब पसंद की गई। समापन शैलजा कनिष्ठा द्वारा धन्यवाद ज्ञापन से की गई। विशिष्ट पंक्तियों को श्रोताओं ने काफी सराहा।

विष्णु कुमार केडिया ने कहा -

कहते अन्नदाता हैं खुद को, लेकिन हैं वे तो व्यापारी

देश के नेताओं की यूं ही मति गई है मारी। दीपक कुमार श्रीवास्तव ने कहा -

कोरोना की कहर क्या घटी , बाढ़ की तबाही शुरू हो गई

पहले मास्क से परेशान थे, अब बाढ़ से पैरों तले जमीन खिसक गई। शिवेंद्र कुमार पाण्डेय ने कहा -

सब लोग कहते हैं, हम हरदम लगते हैं मुस्कुराते

और हम परेशान हैं, अपने दिल का दर्द छुपाते। राज कुमार चौधरी ने कहा -

आप औलाद के लिए क्यों रोते हैं

अब तो बेटा नहीं बाप पैदा होते हैं। सुनील कुमार चंपारणी ने कहा -

अगर लगाया होता हर दिन एक पौधा यहां

आज ऑक्सीजन की किल्लत नहीं होती। डॉ. रामेश गौरीश ने कहा -

दिल बोला आंख से, तुम देखा करो कम

देखते हो तुम, और तड़पते हैं हम। प्रवीण कुमार चुन्नू ने कहा -

मतलब कहां है, हिन्दी या उर्दू से कुछ उन्हें

आंखें तो बात करती हैं, अपनी जुबान से। राज कुमार राय राजेश ने कहा -

दिलीप कुमार की सिने जगत में, सबसे अलग कहानी

अदाकारी से राज्यसभा तक, छोड़ी अमिट निशानी। आफताब समस्तीपुरी ने कहा -

प्यार मुहब्बत की बातों को आम किया जाय

नफ़रत का हर हाल में चक्का जाम किया जाय। कासिम सबा ने कहा -

किसी दिन पत्थरों पे ऐ सबा हम भी

लहू से सींच कर पौधे उगाएंगे।

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