सिर्फ 48 एंबुलेंस के सहारे लड़ी जाएगी कोरोने कीतीसरी लहर से जंग
समस्तीपुर। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का खौफनाक मंजर याद कर आज भी कई लोगों की आंखें नम हो जाती है। उन दिनों मरीजों को अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेंस की किल्लत भुलाए नहीं भुलती है।
समस्तीपुर। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का खौफनाक मंजर याद कर आज भी कई लोगों की आंखें नम हो जाती है। उन दिनों मरीजों को अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेंस की किल्लत भुलाए नहीं भुलती है। मरीजों को प्राइवेट वाहन से लेकर ऑटो पर अस्पताल पहुंचाने के मामले सामने आए थे। आलम यह था कि प्राइवेट एंबुलेंस सेवा लेने के लिए 15 से 20 हजार रुपये कराया चुकाना पड़ता था। कारण सरकारी एंबुलेंस की संख्या पूरी तरह से नाकाफी थी। फिर भी उपलब्ध सरकारी एंबुलेंस के जरिए जिले में व्यापक संख्या में लोगों को सुविधा उपलब्ध कराया गया। पर, जिले में कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर से निपटने के लिए एंबुलेंस की संख्या अब तक नहीं बढ़ाई गई है।
जिले में महज 48 एंबुलेंस की उपलब्ध है, जिसमें छोटे एंबुलेंस की संख्या 32 है। जबकि, शव वाहन दो तथा एडवांस लाइफ श्रेणी के महज तीन एंबुलेंस ही उपलब्ध है। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान उपलब्ध इन्हीं एंबुलेंस में से 20 को कोरोना संक्रमितों तथा उनके शव को पहुंचाने के लिए दो एंबुलेंस उपलब्ध कराया गया था। ऐसा भी नहीं है कि जिले में एंबुलेंस की संख्या लंबे समय से यथावत है। पर जिले की 50 लाख की आबादी के अनुरूप 28 एंबुलेंस की संख्या बेशक कम है। मुख्यमंत्री ग्राम परिवहन से मिले 8 एंबुलेंस
तीसरी लहर के दौरान मरीजों को गांव लेकर शहर तक कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़े इसके लिए मुख्यमंत्री ग्राम परिवहन से जिले में अब तक कुल आठ एंबुलेंस की खरीदारी हुई है। परिवहन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार प्रत्येक प्रखंड में दो एंबुलेंस खरीदे जाने हैं। मरीजों को सहज ऑक्सीजन व आइसीयू बेड की कमी के कारण मची अफरातफरी के बाद स्वास्थ्य महकमा तीसरी लहर की संभावना को देखते हुए सभी तैयारियां शुरू कर दी है। सदर अस्पताल परिसर में भी आक्सीजन प्लांट का निर्माण तेजी से चल रहा है। सदर अस्पताल को माडल अस्पताल के रूप में भी विकसित करने की दिशा में काम चल रहा है। एंबुलेंस कर्मियों का दर्द : नहीं मिलता नियमित मानदेय
मरीजों की सेवा में हमेशा तत्पर रहने वाले एंबुलेंस कर्मियों को नियमित मानदेय तक नहीं मिलता है। यही नहीं आठ घंटे के बदले इनसे 12 घंटे तक ड्यूटी ली जाती है और मानदेय भी कम है। इसके अलावा प्रमुख त्योहारों पर कर्मचारियों को छुट्टी तक नहीं मिलती है। इस बावत इन कर्मियों ने कई बार धरना, प्रदर्शन और हड़ताल तक किया लेकिन मामला अब भी जस का तस है।