अब चांद हमारे भारत से कुछ ही कदम तो दूर है..

सदियों से अब तक कुदरत का बेनजीर बना जो नूर है अब चांद हमारे भारत से कुछ ही कदम तो दूर है। कवि रामस्वरूप सहनी रोसड़ाई द्वारा उक्त कविता प्रस्तुत करते ही तालियों की गड़गड़ाहट से कार्यक्रम स्थल गूंज उठा।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 22 Sep 2019 11:45 PM (IST) Updated:Sun, 22 Sep 2019 11:45 PM (IST)
अब चांद हमारे भारत से कुछ ही कदम तो दूर है..
अब चांद हमारे भारत से कुछ ही कदम तो दूर है..

समस्तीपुर । सदियों से अब तक कुदरत का बेनजीर बना जो नूर है, अब चांद हमारे भारत से कुछ ही कदम तो दूर है। कवि रामस्वरूप सहनी रोसड़ाई द्वारा उक्त कविता प्रस्तुत करते ही तालियों की गड़गड़ाहट से कार्यक्रम स्थल गूंज उठा। रोसड़ा स्थित कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय परिसर में साहित्य संगम रोसड़ा के तत्वावधान में आयोजित काव्य गोष्ठी में क्षेत्र के कवियों ने एक से बढ़कर एक रचनाएं प्रस्तुत की। यूआर कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. शिवशंकर प्रसाद सिंह द्वारा मां सरस्वती के तस्वीर पर माल्यार्पण कर प्रारंभ हुए कवि संगम की अध्यक्षता प्रो. प्रवीण कुमार प्रभंजन ने की। उनके द्वारा प्रस्तुत मैथिली कविता 'सभठा एक्के राज, बाहर कतई जाई छे बौआ' को भी श्रोताओं ने जमकर सराहा। जबकि कवि त्रिलोक नाथ ठाकुर ने 'बांध लिया करते हैं कच्चे धागे से मजबूत बंधन', तृप्ति नारायण झा ने कोलाहल से दूर-दूर तक फैला है वन प्रांत, कवि अनिरूद्ध झा दिवाकर की अपनी रचित कविता 'वे खून से सने हाथ और दलदल में फंसे पांव' पर भी तालियां बजती रहीं। स्कूल के निदेशक प्रो. सुरेश कुमार यादव 'सुनील' द्वारा प्रस्तुत 'एक अदब कवि का फूटा सर, मैं दौड़ा पहुंचा उनके घर' कविता पर हंसी से लोटपोट होते रहे श्रोता। इसके अलावा प्रो.उत्तम चंद्र दास ने कर्मशील की बात कहे पाया, मनोज कुमार झा ने हम पूजारी प्रजातंत्र के, गीत प्रेम का गाता हूं, संतोष कुमार राय ने बादल का अकाशक कोर, सत्य नारायण यादव ने देश रहे अक्षुण हमारा ध्येय यही अपनाता हूं और चंद्रभूषण कुमार ने साहित्य संगम संस्था के नाम पर रचित कविता का सस्वर पाठ किया। इससे पूर्व उद्घाटनकर्ता प्रो. शिव शंकर प्रसाद सिंह ने कवि गोष्ठी से हिदी और मैथिली साहित्य का निरंतर विकास होने की बात बताते हुए शिक्षा प्रेमियों को शहर से गांव तक ऐसे आयोजन की सलाह दी।

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