अतिक्रमण में विलुप्त हो रहे प्राकृतिक जलस्रोत, तेजी से घट रहा जलस्तर

तालाब और पोखर जैसे जल स्रोत हमारे पूर्वजों की अनमोल धरोहर है। जिसका अस्तित्व खत्म होने से तेजी से जलस्तर घट रहा है। लेकिन जल संरक्षण की ओर कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 06 Jul 2019 01:04 AM (IST) Updated:Sat, 06 Jul 2019 06:41 AM (IST)
अतिक्रमण में विलुप्त हो रहे प्राकृतिक जलस्रोत, तेजी से घट रहा जलस्तर
अतिक्रमण में विलुप्त हो रहे प्राकृतिक जलस्रोत, तेजी से घट रहा जलस्तर

समस्तीपुर । तालाब और पोखर जैसे जल स्रोत हमारे पूर्वजों की अनमोल धरोहर है। जिसका अस्तित्व खत्म होने से तेजी से जलस्तर घट रहा है। लेकिन जल संरक्षण की ओर कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। एक ओर घर से लेकर बाहर तक पानी की बर्बादी जारी है, वहीं जल स्रोतों के संरक्षण की ओर भी कोई सार्थक प्रयास नहीं किया जा रहा है। तालाबों को पाट कर घर बनाने की प्रक्रिया आज भी जारी है। स्थानीय निकाय और सामान्य प्रशासन के साथ-साथ सरकार की उदासीनता और अनदेखी के कारण तालाब-पोखरों का लगातार अतिक्रमण जारी है। हालांकि इसे सुरक्षित रखना केवल शासन-प्रशासन का ही काम नहीं, बल्कि इसके लिए आमलोगों को भी आगे आना होगा। वरना भविष्य में महाजलसंकट को रोक पाना संभव नहीं हो सकेगा। क्षेत्र के कई ऐसे तालाब थे जो कभी सूखते नहीं थे, आज वहां भी दरारें पड़ी है। और इसे देखकर लोग हतप्रभ हैं। अतिक्रमण का शिकार तालाब और पोखरा

शहर से लेकर गांव तक तालाब और पोखरे का अतिक्रमण लगातार जारी है। कई जगह पोखरे को पाट कर मकान निर्माण का कार्य किया जा रहा है। तो कहीं उसे भरकर व्यवसायिक उपयोग में लगाया जा रहा है। पोखरा सरकारी हो या निजी, लोग जल संरक्षण की अनदेखी कर उसे अपने उपयोग में ला रहे हैं। लेकिन भविष्य में उत्पन्न होने वाले जल संकट की ओर किसी की भी नजर नहीं है। और तो और सरकार की जमीन पर स्थित पोखरों पर अतिक्रमण प्रशासन के लिए एक खुली चुनौती है। बावजूद, इसकी अनदेखी और उदासीनता निरंतर जारी है। जो स्पष्ट रूप से जनहित के विपरीत और न्यायालय के आदेश का भी उल्लंघन है। जल संरक्षण के उपाय

- वर्षा के पानी के जलाशयों तक ले जाने की हो पहल

- तालाब और कुंओं को अतिक्रमण मक्त बनाएं

- मकान के छतों से जल संचयन की हो प्रक्रिया

- घर में पानी का नहीं हो रिसाव

- आवश्यकतानुसार जल का उपयोग करें

- इस्तेमाल के बाद पानी के नलों को बंद करना करें

- नहाने के लिए व्यर्थ न करें अधिक जल

- कम पानी खपत वाले वाशिग मशीन का उपयोग करें

- पानी को नाली में बहाने के बजाय सफाई या सिचाई कार्य में करें उपयोग

- पानी के हौज को खुला नहीं छोड़ें

- तालाबों एवं नदियों में कचड़ा फेंकने से करें परहेज सूखी बागमती नदी की उड़ाही की उठ रही मांग

अनुमंडल के रोसड़ा और शिवाजीनगर प्रखंड से गुजरने वाली बागमती नदी अधिकांश स्थानों पर सूख चुकी है। स्थिति यह है कि कल तक स्नान और मवेशियों को पानी पिलाने का स्त्रोत आज बच्चों के लिए क्रीडास्थल बन चुका है। नदी के सूखने के कारण हजारों एकड़ भूमि में पटवन की समस्या उत्पन्न हो गई है। वहीं दर्जनों गांव के पशुपालकों को भी मवेशियों को पीने और नहाने के लिए जल का संकट उत्पन्न हो गया है। स्थानीय लोगों ने नदी के उड़ाही की मांग की है। कलवाड़ा के रवीन्द्र कुंवर ने कहा कि नदी के सूख जाने के कारण खेती पर विपरीत असर पड़ा है। आमलोगों को भी स्नान करने का एक साधन समाप्त हो चुका है। सरकार द्वारा इसे उड़ाही कराकर पुर्नजीवित किया जा सकता है। वहीं मुरादपुर के राजेश कुमार ने नदी को अपनी संस्कृति और पहचान बताते हुए कहा कि सूख जाने के कारण शुभ कार्यों में कई रीति-रिवाज निभाने में भी परेशानी हो रही है। इसको जीवंत करने के लिए सरकार को आगे आना चाहिए। बलुआहा निवासी राम खेलावन रजक ने पानी सूखने के बाद रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न होना बताया। उन्होंने कहा कि कपड़ा धोने का कार्य उक्त नदी में ही करते थे। जब से पानी सूख गया है, कपड़ा की धुलाई बंद हो गई और इससे कमाई पर पूरा असर पड़ा है। इसके अलावा एरौत के शिव कुमार, ठाहर के नंद कुमार, बाघोपुर निवासी दिलीप कुमार, बंधार के धीरज कुमार समेत विभिन्न गांव के दर्जनों लोगों ने मृत बागमती नदी को इस क्षेत्र का एक मात्र महत्वपूर्ण जल स्त्रोत बताते हुए हर हाल में इसकी उड़ाही कर जीवंत करने की मांग जल संसाधन विभाग से की है। स्थानीय कई लोगों ने विभाग के कई मंत्री से पत्राचार कर अविलंब जनहित के इस समस्या पर ध्यान देने की मांग की है। पानी का दुरूपयोग रोकने को बने कानून

बढ़ते जल संकट से भयभीत स्थानीय बुद्धिजीवियों ने अब इसका दुरूपयोग रोकने के लिए भी कानून बनाने की बात कर रहे हैं। विभिन्न स्तर पर जारी जागरूकता के बावजूद इस ओर कोई सार्थक सफलता नहीं मिलने की चर्चा करते हुए लोग अब इसके लिए भी कानून का सहारा ही लेना श्रेयस्कर समझ रहे हैं। लगातार बढ़ते जल संकट पर जारी चर्चाओं के बीच स्थानीय लोगों ने भी अपना-अपना विचार रखा। क्या कहते हैं लोग क्षेत्र में धीरे-धीरे जल संकट गहराता जा रहा है। सरकार एवं विभिन्न संगठनों द्वारा चलाया जा रहा जागरूकता अभियान भी केवल दिखावा और कागजी ही सिद्ध हो रहा है। इसे सार्थक रूप देने के लिए जमीनी स्तर से प्रयास करना आवश्यक है। इसके लिए प्रत्येक विद्यालयों में बच्चों को जल संरक्षण से संबंधित नसीहत देना अत्यंत ही श्रेयस्कर होगा।

रामेश्वर पूर्वे, सचिव, वरिष्ठ लोकमंच रोसड़ा

बढ़ती जनसंख्या और कृषि में विस्तार होने से जल की मांग बढ़ती जा रही है। और इसके विपरीत हमारे जल स्त्रोत दिनानुदिन कमते जा रहे हैं। पूर्वजों द्वारा दिये गए इस धरोहर को सहेजने की जरूरत है। इसके लिए प्रत्येक गांव स्तर पर युवाओं की एक ओली बनाकर जन जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। और लोगों को भविष्य में होने वाले इस महासंकट के संबंध में जानकारी देते हुए जल संरक्षण की अपील करने की जरूरत है।

कृष्ण कुमार लखोटिया, व्यवसायी, रोसड़ा

पोखर एवं तालाब समेत विभिन्न जल स्त्रोतों के संरक्षण के लिए प्रशासन और सरकार के साथ-साथ जन भागीदारी की भी जरूरत है। जब तक आम लोग अपनी इस गंभीर समस्या के प्रति जागरूक नहीं होंगे, तब तक सरकारी स्तर पर कभी भी परिणाम मिलना संभव नहीं है। निकाय और पंचायत सरकार को भी इस संबंध में अपने स्तर से प्रस्ताव लेकर विशेष कार्य योजना बनाना चाहिए।

लक्ष्मी महतो, शिक्षाविद्

पानी के संरक्षण और उसका दुरूपयोग रोकने के लिए वर्षों से कागजी कार्रवाई जारी है। सरकार द्वारा नियम तो अवश्य बनाया जा रहा है। लेकिन जमीनी स्तर पर इसका अनुपालन संभव नहीं हो सका है। लगातार तालाब, पोखरा एवं नदियों को अतिक्रमण करना तथा साफ-सफाई के बदले उसमें कूड़ा-कचड़ा भरना इसका स्पष्ट उदाहरण है। अब इसके लिए कानून बनाने की जरूरत आ गई है।

प्रभात कुमार सिंह, अधिवक्ता

तालाब एवं पोखरा की जमीन को अतिक्रमण करने वालों के विरूद्ध कार्रवाई होगी। पूर्व में भी सभी अंचलाधिकारी एवं नगर पंचायत के कार्यपालक पदाधिकारी को सरकारी भूमि को अतिक्रमण मुक्त करने से संबंधित निर्देश दिया जा चुका है। पुन: पदाधिकारियों को इससे संबंधित पत्र जारी किया जाएगा। हर हाल में प्राथमिकता के आधार पर सरकारी तालाब एवं पोखरा को अतिक्रमण मुक्त कराया जाएगा।

अमन कुमार सुमन, अनुमंडलाधिकारी जलस्रोतों के जीर्णोद्धार के लिए कार्य किया गया है। और आगे भी पंचायतों से योजना का प्रस्ताव मिलने पर इसे मूर्त रूप दिया जाएगा। वर्तमान में पौधरोपण कार्य को प्रगति देने की प्रक्रिया जारी है।

राजेश कुमार सिंह, मनरेगा कार्यक्रम पदाधिकारी

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