अपनी दहलीज पर भावुक हो उठे परदेस से नाता तोड़ पहुंचे प्रवासी

देश के अलग-अलग राज्यों में फंसे प्रवासियों को लेकर दर्जन भर विशेष ट्रेनें गुरुवार को समस्तीपुर पहुंचीं। इनमें से अधिकतर ट्रेनों से प्रवासी उतरे। इसमें दानापुर से दरभंगा दादर से पूíणया बरौनी से दरभंगा मधुबनी से पटना आनंद बिहार से दरभंगा बरौनी से बेतिया सहरसा से जलालपुर दरभंगा से पूíणया समेत अन्य कई जगहों की ट्रेनें शामिल रहीं।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 29 May 2020 01:03 AM (IST) Updated:Fri, 29 May 2020 01:24 AM (IST)
अपनी दहलीज पर भावुक हो उठे परदेस से नाता तोड़ पहुंचे प्रवासी
अपनी दहलीज पर भावुक हो उठे परदेस से नाता तोड़ पहुंचे प्रवासी

समस्तीपुर । देश के अलग-अलग राज्यों में फंसे प्रवासियों को लेकर दर्जन भर विशेष ट्रेनें गुरुवार को समस्तीपुर पहुंचीं। इनमें से अधिकतर ट्रेनों से प्रवासी उतरे। इसमें दानापुर से दरभंगा, दादर से पूíणया, बरौनी से दरभंगा, मधुबनी से पटना, आनंद बिहार से दरभंगा बरौनी से बेतिया, सहरसा से जलालपुर, दरभंगा से पूíणया समेत अन्य कई जगहों की ट्रेनें शामिल रहीं। यहां समस्तीपुर के 2500 से अधिक प्रवासी उतरे। सभी को बस द्वारा गंतव्य तक पहुंचाया गया। सर्वाधिक 1500 प्रवासी ट्रेन संख्या 04564 से उतरे। वहीं 04566 से 500, 04858 से 600 प्रवासी उतरे। लॉकडाउन के कारण देश के अलग-अलग हिस्से से पैदल ही चले प्रवासियों को उत्तर प्रदेश व बिहार की सीमा पर कई जगहों पर रोका गया था। इसके अलावा एक जिले से दूसरे जिले में जाने वाले प्रवासियों को भी लोकल ट्रेनों से लाया गया। इसमें से कई पदयात्री तो कई साइकिल सवार भी थे। इन प्रवासियों के चेहरे पर अपने घर लौटने की खुशी साफ दिखाई दे रही थी। ऐसे प्रवासियों को उनके गृह प्रखंड तक पहुंचाने के लिए समस्तीपुर प्रशासन ने बसों की व्यवस्था कर रखी थी। चौकसी के साथ-साथ साफ-सफाई भी चकाचक

पूरे स्टेशन परिसर की सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद थी। दो ओर से प्रवासियों को बाहर निकाला जा रहा था। सभी प्रवासी पहले से ही सूचीबद्ध थे। इस कारण गिनती के बाद सभी गंतव्य तक जाने के बस पर बैठे। ट्रेन से पहुंचे प्रवासी हुए खुश

समस्तीपुर में स्पेशल ट्रेन से पहुंचे प्रवासियों ने बताया कि अब वो काफी खुश हैं। लॉकडाउन में उन्हें बहुत परेशानी हो रही थी, खाने-पीने के साथ-साथ रहने में भी काफी दिक्कतें हो रही थीं। ऐसे में सरकार ने देर से ही सही पर हमलोगों को अपने घर बुलाने में सराहनीय कार्य किया। कम से कम अपने घर पर तो रहेंगे

धनेशपुर से पैदल ही यात्रा कर सहरसा पहुंचे यात्री रामबुझावन ने कहा, वहां पर बहुत परेशानी थी। दिन काटना भी मुश्किल था। खाने-पीने के भी लाले थे। अब यहां आकर मैं बहुत खुश हूं। मुझे चौदह दिन क्वारंटाइन में ही क्यों न रहना पड़े। घर पहुंचने की जल्दी में थी चेहरे पर रौनक

प्रवासियों के चेहरे पर घर पहुंचने की जल्दी और जिदगी जीने एक उम्मीद दिखी। इस उम्मीद को लेकर सभी के चेहरे पर रौनक स्पष्ट दिख रही थी। खिड़की पर बाहर की दुनिया को निहारते हुए कुछ भावुक भी नजर आए। वैसे अधिकांश प्रवासियों को यह पता था कि सभी को क्वारंटाइन सेंटर में रखा जाएगा फिर भी वे खुश इस बात से थे कि वे अपने पंचायत नहीं तो कम से अपने प्रखंड में अपनों के बीच ही रहेंगे।

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