दिव्यांग संगीता ने तीन दर्जन महिलाओं को बनाया सक्षम
सहरसा। कहते हैं कि मंजिल उन्हीं की मिलती है जिनके सपनों में जान होती है। अभी तो नापी है म
सहरसा। कहते हैं कि मंजिल उन्हीं की मिलती है जिनके सपनों में जान होती है। अभी तो नापी है मुट्ठीभर जमीन अभी तो पूरा आसमान बाकी है। बैजनाथपुर गांव निवासी दिव्यांग संगीता को देखकर ऐसा ही कुछ मन में आता है। खुद चलने में अक्षम यह महिला न सिर्फ अपने दम पर परिवार की गाड़ी खींच रही है बल्कि लगभग तीन दर्जन अन्य महिलाओं और लड़कियों को इस लायक बना दिया है। रोजगार का यह मिशन आज भी जारी है।
पैरों के बल चलने में लाचार संगीता सिलाई कताई में महारत हासिल है। इस कला को उसने रोजगार का साधन बनाया है। उसने बताया कि उनके पति उमेश पंडित रिक्शा चलाते थे, लेकिन बीमारी के कारण अब वह यह कार्य में सक्षम नही हैं। लिहाजा परिवार चलाने की चुनौती उनके ऊपर आ गई। कुछ दिनों पहले तक वो एक निजी स्कूल के छात्रावास में बच्चों के लिए भोजन बनाने का काम कर अपने परिवार का भरण पोषण करती थी, परंतु लॉकडाउन के कारण विद्यालय बंद हो जाने के बाद उसके सामने फिर जीविका की समस्या आ गई, लेकिन मुसीबत में हिम्मत नहीं हारने वाली इस दिव्यांग ने सिलाई कताई की कला को रोजगार का माध्यम बनाया। अब वह खुद अन्य महिलाओं को मुफ्त प्रशिक्षण देकर उन्हें भी रोजगारोन्मुख बना रही है। संगीता आसपास के गांव जा कर उन्हें सिलाई कताई का गुड सिखा रही है और आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करती हैं। पड़ोसी रामभजन पंडित ने बताया कि उनके पति रिक्शा चलाकर अपने पूरे परिवार का भरण पोषण किया करते थे, लेकिन कुछ दिन बाद उन्होंने रिक्शा चलाना बंदकर दिया कि उन्हें गुजारा करना मुश्किल हो गया था। एकबार उनका बेटा बीमार पड़ गया था और उनके पास बेटे की दवा का भी रुपये नहीं थे। तब उसने सस्ते दर में सूट सिलने का काम शुरू किया और उससे इलाज करवाया। संगीता ने बताया कि अभी तक करीब तीन दर्जन महिलाओं को मुफ्त में सिलाई सिखा चुकी हूं, जो इनदिनों सूटों की सिलाई कर अपना जीवन यापन कर रही हैं।