सांपों को बचाने में जुटे हैं महिषी के बैजनाथ
सहरसा। जहां सांपों के दर्शन होते ही बड़े बड़ों की रूह कांप जाती है। किंतु आमलोग सांप क
सहरसा। जहां सांपों के दर्शन होते ही बड़े बड़ों की रूह कांप जाती है। किंतु आमलोग सांप को देखते ही उसे मारने के लिए उतावले हो जाते हैं। ऐसे में महिषी निवासी बैजनाथ साह इन जहरीले सांपों को पकड़ कर उसे सुरक्षित जंगलों में छोड़ आते हैं। उनके द्वारा सांपों के प्राण रक्षा का यह मुहिम पिछले छह वर्षो से चलाई जा रही है। बैजनाथ का दावा है कि उनके द्वारा अबतक दो सौ से अधिक सर्पों की जान बचाई गई है। उनकी इच्छा है कि सांपों के लिए एक पार्क का निर्माण हो जिसमें सांपों के उन प्रजातियों को रखा जा सके, जो इंसानी नफरत के कारण विलुप्ति के कगार पर हैं।
जंतु विज्ञान से बीएसी तक पढ़ाई करने वाले बैजनाथ ने बताया कि ठंड के समय में अक्सर गेहुवन प्रजाति के सांप अपने ठिकाने से बाहर निकल जाते हैं। उस समय अपने नाजुक संरचना के कारण उसके शरीर में फुर्ती कम हो जाती है और इसका फायदा उठाकर लोग उसे आसानी से मार डालते हैं। लेकिन इंसानों द्वारा अपना शत्रु समझकर जिस सर्प को मारा जाता है वो किसानों का बहुत बड़ा मित्र भी है। इसलिए सनातन धर्म में इसकी पूजा करने की चर्चा भी कई शास्त्रों में मिल जाती है। वो कहते हैं कि हिन्दू धर्म शास्त्रों में पालनहार भगवान श्री विष्णु की शय्या सर्प पर ही मानी जाती है। देवों के देव महादेव जिसे अपनी गर्दन में धारण करते हों, वो इंसानों का दुश्मन कैसे हो सकता है। मिथिला क्षेत्र में तो सर्प पूजन के लिए गांवों में विषहारा मंदिर भी बनवाए जाते हैं। नाग पंचमी से मैना पंचमी तक जिस नाग देव की पूजा घर घर की जाती हो वो इंसानों को प्रकृति का वरदान ही हो सकता है।
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किसानों के मित्र होते हैं सर्प
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किसानों की फसल को चूहों से बहुत ज्यादा नुकसान होता है लेकिन सर्प का प्रिय भोजन चूहा को माना जाता है। इस प्रकार चूहों से फसल की रक्षा करता है सांप। वहीं भारतीय आयुर्वेद चिकित्सा में सांपों के जहर का उपयोग कर कई प्रकार की औषधि के निर्माण की भी चर्चा मिलती है।
बैजनाथ का कहना है कि प्रकृति में सभी जीवों के अपने निश्चित कार्य हैं किसी का भी जन्म व्यर्थ नहीं होता है।