भगवान इंद्र ने बंधवाई थी राखी और दानवों पर पाया था विजय

सहरसा। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा कोरोना काल को लेकर रक्षाबंधन के अव

By JagranEdited By: Publish:Mon, 03 Aug 2020 06:55 PM (IST) Updated:Mon, 03 Aug 2020 06:55 PM (IST)
भगवान इंद्र ने बंधवाई थी राखी 
और दानवों पर पाया था विजय
भगवान इंद्र ने बंधवाई थी राखी और दानवों पर पाया था विजय

सहरसा। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा कोरोना काल को लेकर रक्षाबंधन के अवसर पर सैकड़ों लोगों के बीच राखी व मिठाई का वितरण किया गया। सेवा केंद्र प्रभारी स्नेहा बहन ने कहा कि वर्तमान समय रक्षाबंधन का विशेष महत्व हो गया है। जब लोग किसी-न-किसी रूप से असुरक्षित महसूस करते हैं तो परम रक्षक भगवान की छत्रछाया एवं रक्षा-कवच की अति आवश्यकता होती है। इसलिए रक्षाबंधन पर राखी बांधकर लोगों ने सुरक्षा कवच को अपनाया है। केंद्र के अवधेश भाई, सदानंद भाई, सत्येंद्र भाई, नवल किशोर भाई, सुबोध भाई ने राखी बांटने में अपनी भूमिका निभाई।

संसू, बनमाईटहरी : रक्षाबंधन पर बहनों ने भाई की कलाई पर राखी बांधकर लंबी उम्र की कामना की। रक्षाबंधन का त्योहार, सुगमा, ठढि़या, महारस, घोरदौर, कुसमी, तेलियाहाट, ईटहरी, सहुरिया, रसलपुर में धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान हर जगह चहल पहल रही।

संसू, महिषी: कोरोना संकट के बीच भाई बहन के प्रेम का प्रतीक राखी का त्योहार मनाया गया। न

सत्तरकटैया: प्रखंड क्षेत्र मे भाई - बहन का पर्व रक्षाबंधन सोमवार को संपन्न हुआ। बहन अपने भाई को रक्षा सूत्र बांध दीर्घायु होने की कामना की।

नवहट्टा: भाई बहन की प्रेम एवं रक्षा का पर्व मनाया गया। वहीं रक्षाबंधन को लेकर पंडित अरूण कुमार चौधरी बताते है. कि भविष्य पुराण की कथा के अनुसार एक बार देवता और दानवों में 12 सालों तक युद्ध हुआ लेकिन देवता जीत नहीं पाए । इंद्र देव अपनी हार के डर से दुखी होकर देवगुरु बृहस्पति के पास गए । उनके सुझाव पर इंद्र की पत्नी महारानी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधि-विधान के साथ व्रत करके रक्षा सूत्र तैयार की । इसके बाद उन्होंने इंद्र की दाहिनी कलाई में रक्षा सूत्र बांधा और समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई । द्रोपदी और श्रीकृष्ण की कथा का जिक्र करते हुए कहा महाभारत काल में कृष्ण और द्रोपदी का एक वृत्तांत मिलता है. जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रोपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उसे उनकी अंगुली पर पट्टी की तरह बांध दिया । यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था । श्रीकृष्ण ने बाद में द्रोपदी के चीर-हरण के समय उनकी लाज बचाकर भाई का धर्म निभाया था ।

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