वन संरक्षण से होगा वर्षा जल का संग्रह

सहरसा। वन संरक्षण के कई फायदे हैं, परंतु प्राचीन ग्रंथों में वन संरक्षण का दूसरा अर्थ जल संग्रहण बतल

By JagranEdited By: Publish:Fri, 30 Apr 2021 06:36 PM (IST) Updated:Fri, 30 Apr 2021 06:36 PM (IST)
वन संरक्षण से होगा वर्षा जल का संग्रह
वन संरक्षण से होगा वर्षा जल का संग्रह

सहरसा। वन संरक्षण के कई फायदे हैं, परंतु प्राचीन ग्रंथों में वन संरक्षण का दूसरा अर्थ जल संग्रहण बतलाया गया है। वन्य क्षेत्र में वर्षा का अनुपात दूसरे क्षेत्रों से अधिक होता है। वनों में वर्षा का पानी धीरे धीरे जमीन में जाता है क्योंकि वन के पेड़ पौधे वर्षा को तितर-बितर कर देते हैं। तब यह भूमिगत जल कुओं, झीलों और नदियों में जाता है। प्राचीन भारत में लोगों का मत था कि वन 'नदियों की माता है'। लोग इन जलस्त्रोतों की आराधना किया करते थे।

बढ़ती आबादी, बढ़ता औद्योगिकीकरण और विस्तार करती कृषि ने अब पानी की मांगों को बढ़ा दिया है। जल संग्रहण के लिए बांध, जलाशय और कुआं का निर्माण का प्रयास किया जा रहा है, परंतु जलसंग्रहण के साथ साथ एक अच्छे जल प्रबंधन के बिना जल संकट से उबर पाना कठिन है। इस सबंध में मेध पाईन अभियान के तहत जल संग्रहण की तकनीक बताने वाले 98 वर्षीय रामजी पोद्दार ने बताया कि शहरी क्षेत्रों में वर्षा जल का संग्रह मूलरूप से इमारत की छत पर या टैंक बनाकर किया जाता है जिसका प्रयोग आगामी समय में विभिन्न प्रकार के कार्यों में किया जाता है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षा से आनेवाले बाढ़ के पानी को तालाब, आहर, चर, झील एवं कुंआ में रोककर किया जाता है। वर्षा रूकने के बाद बाढ़ जल्द ही सूख जाता है तब इस संग्रहित जल का प्रयोग कृषि कार्यों में किया जाता है। वहीं कोशी सेवा सदन के सचिव राजेन्द्र झा ने बताया कि प्राचीन काल से मानव इतिहास में जल संग्रहण के प्रमाण मिलते हैं। भारतीय संस्कृति में विभिन्न प्रकार के पेड़ों की पूजा का विधान है जिससे जीवनदायनी हवा (ऑक्सीजन) के अतिरिक्त जीवनदायनी रस अर्थात जल की प्राप्ति होती है। साथ ही स्वस्थ्य जीवन के लिए विभिन्न प्रकार की औषधि भी प्राप्त होती है इसलिए जल संग्रहण के लिए वन क्षेत्र में वृद्धि लाना उतना ही आवश्यक है जितना जीवन के लिए जल संरक्षित करना।

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