बांस की खेती से खुशहाल होंगे कोसी के किसान
सहरसा। राष्ट्रीय बांस मिशन कार्यक्रम असम, राजस्थान समेत देश के अनेक राज्यों के आर्थिक उन्नय
सहरसा। राष्ट्रीय बांस मिशन कार्यक्रम असम, राजस्थान समेत देश के अनेक राज्यों के आर्थिक उन्नयन का कारण बन रहा है। लेकिन, इसकी सबसे अधिक संभावना और आवश्यकता वाले कोसी क्षेत्र में अबतक यह योजना धरातल पर नहीं उतर पाई है। कृषि एवं जल विशेषज्ञों का मानना है कि बाढ़ की विभीषिका व कटाव रोकने में बांस सबसे बड़ी भूमिका अदा कर सकती है। विभाग ने व्यापक पैमाने पर इसके खेती की योजना बनाई है। आने वाले दिनों में कोसी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बांस की खेती होगी। इससे क्षेत्र का आर्थिक उन्नयन हो सकता है। पहले चरण में कोसी में डेढ़ हजार हेक्टेयर में इसके खेती की तैयारी की गयी है। प्रतिवर्ष दो से तीन लाख प्रति हेक्टेयर हो सकती है आमदनी बांस मिशन के तहत सरकार ने उद्यान विभाग के माध्यम से किसानों को मुफ्त में बांस का पौधा उपलब्ध कराने व खेती पर आने वाले खर्च का पचास फीसद अनुदान देने की योजना बनाई है। प्रथम चरण में कोसी क्षेत्र में डेढ़ हजार हेक्टेयर में बांस लगाने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें किसानों को प्रति हेक्टेयर आठ हजार का अनुदान प्राप्त होगा। जानकारों का कहना है कि अगर सही तरीके से बांस निर्मित उत्पादों की बिक्री होने लगे तो असम, राजस्थान की तरह कोसी के किसान भी प्रतिवर्ष दो से तीन लाख रुपये प्रति हेक्टेयर कमा सकते हैं। बाजार की कमी से बांस की खेती हुई प्रभावित वर्ष 2008 में कुसहा त्रासदी के बाद तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त हेमचन्द्र सिरोही ने बाढ़ की विभिषिका को कम करने और किसानों को लाभांवित करने के लिए बांस के बने उत्पाद के लिए किसानों को प्रशिक्षण भी दिया। उत्पाद के बिक्री के लिए योजना भी बनाई गई। इस कार्य में काडा से राशि भी व्यय किया गया। परंतु उनके स्थानांतरण पश्चात बांस निर्मित उत्पाद की बिक्री की योजना धरी रह गई। फलस्वरूप बांस की खेती को बढ़ावा नहीं मिल पाया। बांस की खेती अभी भी लाभकारी है, परंतु इसके उत्पादों की बिक्री की व्यवस्था कर की जाती है तो इससे इलाके की तकदीर बदल सकती है। हाल के महीने में केंद्रीय कृषि मंत्री ने कोसी में मखाना व बांस की खेती की संभावना तलाशने के लिए एक टीम यहां भेजा था।
कोट
कोसी क्षेत्र में बांस के उत्पादन भौगोलिक व आर्थिक दोनो दृष्टि से लाभकारी है। अगर बाजार का प्रबंध हो तो परंपरागत खेती की अपेक्षा यह किसानों को काफी लाभ पहुंचाएगा। इससे बाढ़ और कटाव की संभावना भी कम होगी। यह क्षेत्र के आर्थिक उन्नयन का कारण भी बनेगा। -संतोष कुमार सुमन, जिला उद्यान निदेशक, सहरसा।