बीत गए छह माह, नहीं सुलझी सेविका चयन की गुत्थी

सहरसा। वर्षों के खींचतान के बाद जिले में आंगनबाड़ी सेविका- सहायिका के चयन की प्रक्रिया प्रार

By JagranEdited By: Publish:Thu, 25 Jun 2020 07:17 PM (IST) Updated:Thu, 25 Jun 2020 07:17 PM (IST)
बीत गए छह माह, नहीं सुलझी
सेविका चयन की गुत्थी
बीत गए छह माह, नहीं सुलझी सेविका चयन की गुत्थी

सहरसा। वर्षों के खींचतान के बाद जिले में आंगनबाड़ी सेविका- सहायिका के चयन की प्रक्रिया प्रारंभ तो हुई परंतु एक वर्ष पहले शुरू हुई आमसभा की पूरी प्रक्रिया अबतक संपन्न नहीं हो सकी है। जहां आमसभा हुआ, वहां से शिकायतों की बाढ़ आ गई। पूर्व जिलाधिकारी ने टीम गठित कर सभी शिकायतों की जांच का आदेश दिया, परंतु इसका निष्पादन आजतक नहीं हो सका है। में प्रशासन बेहद ही सुस्ती बरत रहा है। जांच के नाम पर हर दिन नया-नया बहाना खोजकर तारीखें बढ़ाई जा रही है, जिसके कारण लोगों में असंतोष गहरा रहा है। जिन केन्द्रों के मामले की जांच चल रही है। उसमें बेवजह विलंब कर केन्द्रों का भी संचालन प्रारंभ कर दिया गया। जांच में विलंब होने से मामलों के उच्च न्यायालय में जाने की संभावना बढ़ गई है। जिससे अंतत:जिला प्रशासन के वरीय अधिकारियों को कटघरे में खड़े होने की नौबत उत्पन्न हो जाएगी।

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अधर में लटका है 136 मामलों की जांच

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जिलाधिकारी व अन्य वरीय अधिकारियों को प्राप्त शिकायतों के आधार पर 136 मामलों की जांच छह महीने पहले शुरू हुई। इसके लिए संचिका तो खोला गया,परंतु जांच पर अधिकारी ही कुंडली मारकर बैठे हुए हैं। इस बीच कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन का बहाना बनाकर इसे रोज टाला जा रहा है। प्रतिदिन प्रमंडलीय आयुक्त से लेकर जिलाधिकारी तक आवेदन पड़ रहा है। आइसीडीएस निदेशक से लेकर जिलाधिकारी तक के निदेश की परवाह किए बगैर मनमाने तरीके से चयन प्रक्रिया को अंजाम दिया गया। अनियमितता के कारण जिले भर में आमसभा के दौरान हंगामा हुआ, कई जगह महिला पर्यवेक्षिकाओं के साथ मारपीट हुई। आमसभा के वीडियो के आधार पर कई पर्यवेक्षिकाओं की भूमिका की भी जांच चल रही थी। वह भी अचानक गुम हो चुका है। बावजूद इसके महिला पर्यवेक्षिकाओं के व्यवहार में कोई तब्दीली नहीं आई। दोबारा हुए आमसभा में अनियमितताओं की सीमा टूट गई। हर जगह आमसभा में हंगामा और मारपीट हुई इसी तरह वर्ष 2013 में सेविका-सहायिका चयन में वरीय अधिकारियों के सचेत नहीं रहने के कारण पूरे जिले में रुपए और पैरवी का दौड़ चला, जिसके कारण जिला प्रशासन उच्च न्यायालय में डेढ़ सौ से अधिक मामले को झेल रहा है। अगर अभी भी बाल विकास परियोजना और जिला प्रशासन गंभीर नहीं हुआ तो वर्तमान समय में चल रही बहाली भी सिरदर्द बन सकता है।

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दो दर्जन से अधिक केन्द्रों का अभी बाकी है आमसभा

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मैपिग पंजी बनाने,ऑनलाइन आवेदन करने, मेधा सूची बनाने में अनियमितता बरते जाने के साथ-साथ बड़े पैमाने पर संस्कृत और उर्दू के फर्जी प्रमाणपत्रों का खेल बहाली के नाम पर किया गया। सूत्र बताते हैं कि बहाली की प्रक्रिया प्रारंभ होते ही फर्जी प्रमाणपत्र बनानेवाला गिरोह भी सक्रिय हो जाता है। इस प्रमाणपत्र का उपयोग कर वास्तविक प्रमाणपत्र वाले आवेदकों को मात देने में लगे हैं। कहीं संस्कृत बोर्ड का प्रमाणपत्र कहीं फर्जी दिव्यांग प्रमाणपत्र का उपयोग किया जा रहा है, तो कहीं गलत जाति प्रमाणपत्र के पैसे के भरोसे बहाली करवाई गई है। सेविका चयन की हड़बड़ी में नाबालिग से भी शादी का मामला उजागर हो चुका है। ऐसा नहीं है कि विभागीय अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं है, परंतु वे लोग जानकर भी अंजान बने हुए हैं। दूसरी ओर 416 केन्द्र की सेविका- सहायिका चयन के लिए अबतक लगभग साढ़े तीन सौ के लिए ही आमसभा किया जा सका। जहां आमसभा संपन्न हुआ, उसके शिकायतों की जांच अधर में लटका लटक गया है।

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चयन मामले में अधिकांश जगहों से प्रमाणपत्रों की शिकायत मिली है। उसकी जांच कराई जा रही है। संबंधित बोर्ड को प्रमाणपत्र सत्यापन के लिए भेजा गया है। बोर्ड द्वारा समय पर इसका सत्यापन कर अबतक नहीं भेजा गया है। लॉकडाउन के कारण भी कामकाज पर प्रभाव पड़ा। सत्यापन के लिए पुन: बोर्ड को पत्र भेजा जा रहा है। जल्द ही सभी शिकायतों का निष्पादन कर लिया जाएगा।

रीता सिन्हा

डीपीओ, आईसीडीएस, सहरसा।

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