कोसी में रासायनिक खाद बढ़ा रहा आर्थराइटिस की बीमारी

सहरसा। कोसी क्षेत्र मे आर्थराइटिस के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसकी कई वजह हैं लेकिन खाद्यान्न में सल्फर और बोरोन की कमी इसका प्रमुख कारण माना जा रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 06:59 PM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 06:59 PM (IST)
कोसी में रासायनिक खाद बढ़ा रहा आर्थराइटिस की बीमारी
कोसी में रासायनिक खाद बढ़ा रहा आर्थराइटिस की बीमारी

सहरसा। कोसी क्षेत्र मे आर्थराइटिस के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसकी कई वजह हैं लेकिन खाद्यान्न में सल्फर और बोरोन की कमी इसका प्रमुख कारण माना जा रहा है।

कृषि विज्ञानी का कहना है कि रासायनिक खाद के प्रयोग के कारण मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी होती है। मिट्टी के नमूनों की जांच में यह बात सामने आ रही है कि नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम के अलावा सल्फर और बोरोन की मिट्टी में कमी होती जा रही है। चिकित्सक मानते हैं कि इससे आर्थराइटिस, बाल झड़ऩे, याददाश्त की कमी, रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने की समस्या उत्पन्न होती है। हाल के दिनों में इन बीमारियों के मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है, वहीं इस इलाके में कृषि विभाग ने जैविक खाद्य उत्पादन की योजना को भी लगभग ठप कर दिया है। ऐसे में आनेवाले दिनों में जमीन की पोषक तत्वों के कारण लोगों की समस्या और बढ़ सकती है।

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इस क्षेत्र के मिट्टी जांच में 12 पोषक तत्वों की पाई जा रही है कमी

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मिट्टी जांच प्रयोगशाला के विगत कुछ वर्षों की रिपोर्ट पर अगर गौर किया जाए तो इलाके की मिट्टी में अलग- अलग क्षेत्र में 12 पोषक तत्वों की कमी पाई जाती है। जिसमें जैविक कार्बन, पोटेशियम, आयरन, कापर आदि शामिल हैं परंतु, लगभग सभी क्षेत्र में विशेष रूप से जिक, बोरोन और सल्फर की कमी पाई जा रही है। जिला कृषि पदाधिकारी दिनेश प्रसाद सिंह कहते हैं कि मिट्टी जांच के दौरान उस क्षेत्र की मिट्टी में जिन तत्वों की कमी पाई जाती है, उसे पूरा करने के लिए सलाह के साथ मृदा स्वास्थ्य कार्ड संबंधित किसान को दिया जाता है। ताकि वे मिट्टी की जरूरत के हिसाब से खाद आदि का प्रयोग कर सकें।

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क्या कहते हैं चिकित्सक

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हड्डी रोग विशेषज्ञ डा. भुवन सिंह का कहना है कि बोरोन की कमी से हड्डी में कमजोरी, आस्टियोपोरोसिस, आर्थराइटिस, बुढ़ापे में हड्डी कमजोर होने की समस्या उत्पन्न होती है। उनका मानना है कि इस इलाके में इन बीमारियों में बढ़ोतरी हो रही है। डा. विनय कुमार सिंह कहते हैं कि सल्फर की कमी से मुहांसे, आर्थराइटिस, नाखून विकृत होने, शरीर में ऐंठन, याददाश्त की कमी, गैस्ट्रिक, जख्म भरने में देरी और मोटापा की समस्या उत्पन्न होती है। जबकि जिक की कमी से कुपोषण, रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने की समस्या उत्पन्न होती है। उनका कहना है कि आए दिन इस तरह की समस्याओं के ग्रसित लोगों की संख्या बढ़ रही है।

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तीन वर्षों से ठप है वर्मी कांपोस्ट का निर्माण

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सरकार एक तरफ जैविक कारिडोर बनाकर जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है, वहीं दूसरी ओर कोसी क्षेत्र में विगत तीन वर्षों से वर्मी खाद का निर्माण ठप पड़ा हुआ है। पूर्व में जिले के दर्जनों गांवों में जैविक खाद का निर्माण होता था। कुछ गांवों का जैविक ग्राम के रूप में चयन भी किया गया था, परंतु तीन वर्षों से इसके लिए अनुदान मद में एक पैसा भी जिले को नहीं मिला। पूर्व में जिन किसानों ने वर्मी पीट का निर्माण भी किया, उन्हें अनुदान का भुगतान नहीं हो सका। ऐसे में जिले में जैविक खाद का उत्पादन ठप है। जिले में रबी, खरीफ और गरमा को मिलाकर लगभग डेढ़ लाख हेक्टेयर भूमि में रसायनिक खाद के भरोसे खेती हो रही है। कृषि वैज्ञानिक डा. आरसी यादव कहते हैं कि मृदा स्वास्थ्य कार्ड से मिट्टी का तात्कालिक इलाज संभव है, परंतु इसका स्थायी समाधान जैविक खाद का प्रयोग ही है। इसकी बदौलत ही जमीन को नवजीवन मिल सकता है।

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