गेहूं की खेती से टूट रहा किसानों का मन, अब मक्का फसल पर जोर
सहरसा। गेहूं की खेती को लेकर जिले के किसान जहां उदासीन हैं वहीं मक्का को नकदी फसल मा
सहरसा। गेहूं की खेती को लेकर जिले के किसान जहां उदासीन हैं, वहीं मक्का को नकदी फसल मानकर अधिक खेती करने लगे हैं। यही वजह है कि जिले में इसवर्ष लक्ष्य से करीब 14 हजार हेक्टेयर भूमि पर गेहूं की खेती कम हुई। हालांकि मक्का की खेती लक्ष्य के दोगुनी से भी अधिक भूमि पर हुई है।
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फसल का नाम-क्या था लक्ष्य- कितने में हो रही खेती
गेहूं- 52000 हेक्टेयर- 38294 हेक्टेयर
मक्का- 11000 हेक्टेयर- 24966 हेक्टेयर
चना- 500 हेक्टेयर- 292 हेक्टेयर
मसूर- 1500 हेक्टेयर- 1482 हेक्टेयर
मटर- 1200 हेक्टेयर- 1200 हेक्टेयर
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क्या कहते हैं किसान
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महिषी के किसान श्यामानंद सिंह कहते हैं कि गेहूं की खेती में लागत अधिक लगती है। लेकिन समय पर गेहूं का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। जबकि मक्का की खेती में लागत कम आती है। बाहर से खरीदार आने के कारण इसकी कीमत भी सही मिल जाती है। हालांकि सरकारी स्तर पर मक्का की खरीदारी की व्यवस्था नहीं रहने से परेशानी होती है। किसान इंद्रदेव प्रसाद कहते हैं कि खेती में जो लागत लगती है उसका सही मूल्य नहीं मिल पाता है। गेहूं की खेती करने के बाद उसे स्टॉक करना पड़ता है। तब जाकर सही कीमत मिल पाती है। जबकि इलाके में 97 फीसद किसान ऐसे हैं जो खेती के बाद तुरंत बेचकर दूसरी खेती में अपना पूंजी लगाते हैं। इसी वजह से मक्का की खेती अधिक होने लगी है। किसान गुणेश्वर पंडित कहते हैं कि खेती अब तकनीक पर आधारित होती जा रही है, लेकिन इस इलाके में अब भी तकनीक की कमी है। जिसके कारण मक्का की खेती अधिक हो रही है। इस फसल की खेती में तकनीक की अधिक जरूरत नहीं होती है।
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नकदी फसल माना जाता है मक्का
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मक्का को इस इलाके में नकदी फसल कहा जाता है। मक्का के सीजन में पंजाब, हरियाणा से लेकर अन्य जगहों से खरीदार आते हैं और मक्का खरीदकर उसे रेलवे के रैक से बाहर ले जाते हैं। बाहर के खरीदार की आने के वजह से लोग इस फसल पर अधिक जोर देते हैं। वैसे कोरोना काल में मक्का फसल की भी अच्छी कीमत नहीं मिल पाई थी।
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पशुचारा की किल्लत
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इस इलाके में पशुचारा का उत्पादन नहीं के बराबर की जाती है। कृषि विभाग के लक्ष्य को देखे तो जौ की खेती तीन सौ हेक्टेयर में करने का लक्ष्य है। जिले में इस वर्ष 292 हेक्टेयर में खेती भी हुई है। लेकिन वर्तमान समय में हालत ऐसे हैं कि गेहूं से अधिक कीमत पर भूसा लोगों को मिल रहा है। भूसे की कीमत 28 सौ रुपये प्रति क्विटल तक चला जाता है। जिस कारण पशुपालकों को काफी परेशानी होती है। विभाग के पास भूसे के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं रहने के कारण अधिक दिक्कत हो रही है।
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कोट
इसवर्ष गेहूं की खेती लक्ष्य से कम हुई है, लेकिन मक्का की फसल अच्छी हुई है। किसानों को खेती में हरसंभव सहयोग किया जाता है।
दिनेश प्रसाद सिंह, जिला कृषि पदाधिकारी, सहरसा।